शाक्त तंत्र में उग्रतारा संपूर्ण चराचर की अधिष्ठात्री देवी
पर्यटन मंत्रालय व जिला प्रशासन के द्वारा आयोजित श्री उग्रतारा सांस्कृतिक महोत्सव के दूसरे दिन मंडन धाम पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन हुआ.
मंडन धाम पर राष्ट्रीय सेमिनार में भगवती उग्रतारा व महिषी के मंडन व मुरारी मिश्र पर चर्चा
महिषी. पर्यटन मंत्रालय व जिला प्रशासन के द्वारा आयोजित श्री उग्रतारा सांस्कृतिक महोत्सव के दूसरे दिन मंडन धाम पर राष्ट्रीय सेमिनार का आयोजन हुआ. जिला प्रशासन के प्रतिनिधि नगर आयुक्त प्रभात कुमार झा व कला संस्कृति अधिकारी स्नेहा झा के संग वक्ता अतिथि दिल्ली विश्वविद्यालय के सेंट स्टीफन कॉलेज के ख्याति प्राप्त प्राध्यापक डॉ पंकज कुमार मिश्र, लाल बहादुर संस्कृत केंद्रीय विश्वविद्यालय दिल्ली के साहित्य विभागाध्यक्ष डॉ सुमन कुमार झा, केंद्रीय विश्वविद्यालय दक्षिण विहार के डॉ सुमित कुमार पाठक, कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्व विद्यालय के प्राध्यापक डॉ ध्रुव मिश्र सहित अन्य ने संयुक्त रूप से दीप प्रज्ज्वलित कर कार्यक्रम का श्री गणेश किया. मंचासीन सभी अतिथियों को पाग व चादर भेंट कर सम्मानित किया गया. मुख्यालय स्थित श्री उग्रतारा भारती मंडन संस्कृत महाविद्यालय के प्राचार्य डॉ नंद किशोर चौधरी की अध्यक्षता व प्रो आनंद दत्त झा के संचालन में संचालित भगवती उग्रतारा व मीमांशा दर्शन में महिष्मति की पांडित्य परंपरा में मंडन व मुरारी मिश्र विषयक संगोष्ठी के प्रथम वक्ता के रूप में कामेश्वर सिंह संस्कृत विश्व विद्यालय के डॉ ध्रुव मिश्र ने उग्रतारा पर आख्यान देते कहा कि शाक्त तंत्र में उग्रतारा संपूर्ण चराचर की अधिष्ठात्री देवी हैं. इनमें सभी देवों का तेज समाहित है. शाक्त हीं शिव रूप में संसार में भ्रमण कर रहे हैं.मंडन विरचित सभी साहित्य ज्ञान कर्म व भक्ति को मोक्ष का मार्ग
केंद्रीय विश्व विद्यालय दक्षिण बिहार के इतिहासकार डॉ सुमित कुमार पाठक ने कहा कि धर्म व्यक्ति के जीवन से पृथक नहीं हो सकता. अध्यात्म को विज्ञान से अलग नहीं किया जा सकता. बौद्ध परंपरा की उत्पत्ति सनातन के बाद हुई है. सांस्कृतिक धरोहर हमारी पहचान है व हमें इनसे संबंधित प्रामाणिक साक्ष्यों को संरक्षित रखना होगा ताकि अगली पीढ़ी को अपने ऐतिहासिक गौरव पर कोई शंका ना बने. केंद्रीय विश्व विद्यालय दिल्ली के विभागाध्यक्ष डॉ सुमन कुमार झा ने कहा कि मंडन विरचित सभी साहित्य ज्ञान कर्म व भक्ति को मोक्ष का मार्ग बताया है. अंतिम वक्ता के रूप में डॉ पंकज मिश्र ने कहा कि मिथिला न्याय व मीमांशा की नगरी रही है. मिथिला ज्ञान का प्रथम पाठशाला रहा है. प्रथम मार्ग कुमारिल भट्ट का है. मंडन तो महिषी के थे हीं इनके परवर्ती काल में यहां मुरारी मिश्र भी मीमांशक हुए. कार्यक्रम की समाप्ति पर मंदिर न्यास के सचिव केशव कुमार चौधरी ने धन्यवाद ज्ञापन किया.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
