Buxar News: महाराज दशरथ के निधन से अयोध्या में शोक

किला मैदान में रामलीला समिति के तत्वावधान में चल रहे 22 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के 12 वें दिन गुरुवार की रात रामलीला में दशरथ मरण, चित्रकूट में भरत मिलाप का मंचन किया गया.

By RAVIRANJAN KUMAR SINGH | September 25, 2025 9:18 PM

बक्सर.

किला मैदान में रामलीला समिति के तत्वावधान में चल रहे 22 दिवसीय विजयादशमी महोत्सव के 12 वें दिन गुरुवार की रात रामलीला में दशरथ मरण, चित्रकूट में भरत मिलाप का मंचन किया गया. जबकि दिन में श्रीकृष्ण लीला के सुदामा चरित्र-2 जीवंत हुआ. वृंदावन के श्री राधा माधव रासलीला एवं रामलीला मंडल के स्वामी श्री सुरेश उपाध्याय “व्यास जी ” के निर्देशन में दोनों लीलाओं को साकार किया गया. रामलीला के उक्त प्रसंग में दिखाया गया कि प्रभु श्रीराम, लक्ष्मण एवं सीता को गंगा के समीप छोड़कर व्यथित मन से लौटते हैं. निषाद राज मंत्री सुमन्त को दुखित व व्याकुल देख उन्हें समझाते हैं और उनको सकुशल अयोध्या पहुंचाने के लिए उनके रथ पर अपना सारथी लगा देते हैं. मंत्री सुमंत विलाप करते हुए अयोध्या पहुंचते हैं और महाराज दशरथ से जाकर सारा हाल सुनाते हैं. मंत्री सुमंत की बात सुनकर महाराज व्यथित हो जाते हैं और पूर्व में घटित श्रवण कुमार की घटना को रानी कौशल्या से जाकर बताते हैं. श्री राम की चिंता में महाराजा दशरथ की हालत काफी बिगड़ जाती है और उनका देहांत हो जाता है. महाराज दशरथ के देहांत की खबर सुनकर गुरु वशिष्ठ जी आते हैं और भरत को बुलाने के लिए दूत उनके ननिहाल भेजते हैं. भरत जी अपने ननिहाल से आते हैं और वह राम, लक्ष्मण को नहीं देखकर उनके बारे में पूछते हैं. सारा वृत्तांत जानकारी होने पर मां कैकई को कड़वा वचन सुनाते हैं और अपने पिता दशरथ जी का अंतिम संस्कार करते हैं. संस्कार के पश्चात भरत जी श्री राम को मनाने के लिए चित्रकूट के लिए रवाना होते हैं. मार्ग में उनसे निषाद राज से भेंट होती है. निषादराज उन्हें साथ लेकर प्रभु श्री राम के पास पहुंचते हैं. जहां भगवान श्री राम एवं भरत जी का भावभरा मिलन होता है. प्रभु श्री राम को भाई भरत से जब यह पता चला कि उनके पिता का देहांत हो गया तो वे दुखित होते हैं और नदी के किनारे जाकर पिता को श्रद्धांजलि देते हैं. भरत जी उनसे अयोध्या लौटने की बारंबार विनती करते हैं, परंतु श्री राम पिता के वचनों द्वारा वचनबद्ध होने की बात कह लौटने से इनकार कर देते हैं और भरत जी पर कृपा करते हुए अपनी चरण पादुका प्रदान करते हैं. भरत जी चरण पादुका को लेकर अयोध्या लौटते हैं और राज सिंहासन में पादुका को स्थापित कर देते हैं. दो मुट्ठी चावल चबाकर श्रीकृष्ण ने दिया दो लोकश्रीकृष्ण लीला के दौरान “सुदामा चरित्र भाग -2 ” प्रसंग में दिखाया गया कि शिक्षा पूरी होने के बाद श्रीकृष्ण व सुदामा जी गुरु संदीपनि के आश्रम से घर लौटते हैं. सुदामा जी का विवाह वसुंधरा नामक स्त्री से होता है और समय बितने के साथ ही सुदामा अत्यंत गरीब हो जाते हैं. इधर श्रीकृष्ण द्वारकापुरी के राजा हो जाते हैं. बहुत बार पत्नी के हठ करने के पश्चात सुदामा एक दिन अपने बचपन के मित्र श्री कृष्ण के पास मदद मांगने के लिए जाने को तैयार होते हैं. ब्राह्मणी श्रीकृष्ण को भेंट में देने के लिए पड़ोस से चावल लेकर आती है. चावल की पोटली लेकर सुदामा द्वारकापुरी के लिए चल देते हैं. मार्ग में नदी मिलती है, जहां श्रीकृष्ण केवट के भेष में उन्हें नदी पार कराते है. चलते चलते रात हो जाती है, काफी थकान होने पर सुदामा एक वृक्ष के नीचे सो जाते हैं, तब श्री कृष्ण अपने योग माया से सुदामा को महल के प्रथम द्वार तक पहुंचा देते हैं. जैसे ही श्रीकृष्ण को द्वारपाल द्वारा सुदामा के आने की जानकारी मिलती है, प्रभु अपने बचपन के मित्र सुदामा से मिलने महल से द्वार तक नंगे पांव दौड़ कर आते हैं और महल में ले जाकर अपने आसन पर बिठाते हैं वह अपने मित्र का अपने हाथों से पांव पखारते हैं और सुदामा द्वारा भेंट में लाए हुए चावल को मुठ्ठी में लेकर खाने लगते हैं. यह देखकर सुदामा संकोच वश श्रीकृष्ण से कुछ भी नहीं मांग पाते हैं. उनके कुछ नहीं मांगने पर भी श्री कृष्ण मुट्ठी भर चावल के बदले दो लोक की संपत्ति प्रदान कर देते हैं.

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