गांधी, ओशो और मूसो में क्या है फर्क? जानने पर हिल जाएगा अमेरिका-चीन-पाकिस्तान
Mahatma Gandhi Osho Yukio Mishima: गांधी, ओशो और मूसो तीन ऐसे विचारक थे जिन्होंने सिर्फ समाज को नहीं, बल्कि वैश्विक राजनीति, तानाशाही और धार्मिक कट्टरता को भी चुनौती दी. जानिए कैसे इनकी सोच पाकिस्तान, चीन और अमेरिका के लिए असहज बन गई.
Mahatma Gandhi Osho Yukio Mishima: दुनिया में कुछ ऐसे विचारक हुए हैं जिन्होंने न सिर्फ लोगों की सोच को बदला बल्कि वैश्विक राजनीति और सभ्यताओं को भी झकझोर कर रख दिया. इनमें से गांधी, ओशो और मूसो तीन ऐसे नाम जिन्होंने अपने दृष्टिकोण से व्यापक प्रभाव डाला. इनकी विचारधारा ऐसी थी कि कई देशों में इसका जबरदस्त देखने को मिला था, खासकर आंतक को पनाह देने वाला पाकिस्तान और चीन. आइए समझते हैं कि आखिर इन तीनों में ऐसा क्या फर्क है.
महात्मा गांधी की विचारधारा वैश्विक आंदोलनों के लिए बना प्रेरणा
गांधी का दर्शन मुनरो के बिल्कुल विपरीत था. उन्होंने सत्ता नहीं, आत्मबल और नैतिकता पर विश्वास किया. उनका “सत्याग्रह” और “स्वराज” का विचार भारत के स्वतंत्रता संग्राम के लिए ही नहीं, बल्कि वैश्विक आंदोलनों के लिए प्रेरणा बना. उनका प्रभाव इस कदर हुआ कि उनके उपनिवेशवाद की विचारधारा को वैश्विक स्तर पर चुनौती मिली. उनके विचारों से मार्टिन लूथर किंग जूनियर से लेकर नेल्सन मंडेला तक प्रभावित हुए. उनकी सोच का ही नतीजा था कि अमेरिका में नस्लभेद के खिलाफ संघर्ष को नई दिशा मिली तो वहीं चीन को नैतिक रूप से जबरदस्त झटका लगा.
ओशो धर्म के बंधन को नहीं मानते थे
ओशो यानी रजनीश का दृष्टिकोण चेतना की स्वतंत्रता और मानसिक क्रांति का था. वे न धर्म के बंधन को मानते थे, न ही राजनीति की सीमाओं को. उनका विश्वास था कि व्यक्ति अगर भीतर से मुक्त हो जाए, तो समाज स्वतः बदल जाएगा. उनके विचारों का प्रभाव इस कदर हुआ कि पश्चिमी सोच, पूंजीवाद और संगठित धर्मों की नींव हिल गयी. अमेरिका ने उन्हें निर्वासित कर दिया. वहीं, चीन में उनका साहित्य प्रतिबंधित और पाकिस्तान में उन्हें ‘नास्तिकता’ का प्रतीक माना गया.
यूकियो मूसो का विचार आत्मबलिदान, देशभक्ति और शारीरिक अनुशासन पर आधारित था
युकियो मूसो एक जापानी लेखक, कवि और सैन्य दर्शनशास्त्री थे. उनका विचार आत्मबलिदान, देशभक्ति और शारीरिक अनुशासन पर आधारित था. वे ‘बुशिडो’ को आधुनिक जीवन में लाना चाहते थे. उनके विचार ने जापानी नवजागरण में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई. ये उनके विचारों का ही नतीजा था कि पश्चिमी लोकतंत्र के खिलाफ सैन्य नैतिकता का एजेंडा चला. जिससे अमेरिका और चीन, दोनों की वैचारिकताओं पर सवाल उठा.
