Choked Review: नोटबंदी के बैकग्राउंड पर रिश्तों की कहानी

choked review saiyami kher roshan mathew amruta subhash rajshri: निर्माता निर्देशक अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap) ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को एन्जॉय कर रहे हैं. इस बार वह इस प्लेटफार्म के लिए फुल लेंथ की फ़िल्म चोक्ड (Choked review) लेकर आए हैं. नोटबंदी के बैकग्राउंड पर बनी यही फ़िल्म रिलेशनशिप के उतार चढ़ाव पर फोकस करती है.

By Prabhat Khabar Print Desk | June 5, 2020 4:03 PM

फ़िल्म : चोक्ड पैसा बोलता है

निर्देशक: अनुराग कश्यप

कलाकार: सैयामी खेर, रोशन मैथ्यू, अमृता सुभाष और अन्य

रेटिंग: तीन

निर्माता निर्देशक अनुराग कश्यप (Anurag Kashyap) ओटीटी प्लेटफॉर्म्स को एन्जॉय कर रहे हैं. इस बार वह इस प्लेटफार्म के लिए फुल लेंथ की फ़िल्म चोक्ड (Choked review) लेकर आए हैं. नोटबंदी के बैकग्राउंड पर बनी यही फ़िल्म रिलेशनशिप के उतार चढ़ाव पर फोकस करती है. नेटफ्लिक्स पर रिलीज एक घंटे 54 मिनट की इस फ़िल्म की कहानी सरिता (सैयामी खेर)और सुशांत (रोशन मैथ्यू) की है.

सरिता बैंक में काम करती है और घर भी संभालती है. पति कुछ काम नहीं करता है. हर छह महीने में उसकी जॉब चली जाती है. उसने कुछ कर्ज भी ले रखे हैं. जिसे लेने के लिए लेनदार भी आते रहते हैं. सरिता अपने इस रिश्ते में चोक्ड है. ऐसा नहीं है कि वह अपने पति से प्यार नहीं करती है लेकिन आटा दाल चावल का जुगाड़ उसे निक्कमे पति के करीब भी नहीं जाने नहीं देता है.

इसी बीच सरिता के घर की नाली चोक्ड हो जाती है. उसमें से नोट के बंडल निकलने लगते हैं. उसे लगता है कि उसकी सारी परेशानियां अब दूर हो जाएंगी लेकिन फिर 8 नवंबर 2016 को प्रधानमंत्री मोदी का स्पीच नोटबंदी को लेकर आता है और कहानी एक अलग ही रफ्तार पकड़ लेती है.

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फ़िल्म की कहानी को रिलेशनशिप और नोटबंदी के ऐतिहासिक फैसले के साथ परोसा गया है. 2016 की नोटबंदी से जुड़ी यादों को यह फ़िल्म ताज़ा कर जाती है. फ़िल्म इस बात पर ज़ोर भी देती है कि नोटबंदी को लेकर जैसा असर सोचा गया था. वैसा हुआ नहीं था. यहां भी मार मिडिल क्लास परिवारों को ही लगी थी. काले धन रखने वाले नए नोट में भी उसे रखने में कामयाब रहे थे.

फ़िल्म की कहानी जिस तरह से पेश की गयी है. वह आपको बांधे रखती है लेकिन फ़िल्म का क्लाइमेक्स कमज़ोर रह गया है. फ़िल्म को देखते हुए लगता है कि जैसे उसे जल्दीबाज़ी में खत्म करना था. सैयामी का किरदार का बार बार अपने अतीत में जाना भी अखरता है. वह फ़िल्म की गति को प्रभावित करता है.

फ़िल्म की सिनेमाटोग्राफी बेहतरीन है. मिडिल क्लास वाली मुम्बई को बखूबी दर्शाया गया है. अदाकारी के लिहाज से सैयामी खेर इस फ़िल्म को सहेजकर रख सकती हैं. वह बेहतरीन रही हैं. उनकी भूमिका बहुत ही सशक्त है जिसे उन्होंने बखूबी निभाया भी है. रोशन भी जमे हैं. कई बार उनके किरदार को देखकर गुस्सा भी आता है. जो एक एक्टर के तौर पर उनकी खूबी को दर्शाता है. अमृता सुभाष का किरदार रमन राघव वाले नवाज़ुद्दीन सिद्दीकी की याद दिलाता है. बाकी के कलाकारों का काम भी अच्छा है.

फ़िल्म के संवाद सशक्त हैं बैंक में पैसे मिलते हैं सिम्प्थी नहीं. उनके हाथ जोड़िए जिन्हें वोट दिए थे. कई संवाद चुटीले भी हैं जो फ़िल्म के मूड को हल्का बनाते हैं. फ़िल्म का बैकग्राउंड म्यूजिक भी अच्छा है. कुलमिलाकर यह एक एंगेजिंग फ़िल्म है. कुछ खामियों के बावजूद मनोरंजन करने में सफल होती है.

उर्मिला कोरी

posted by: Budhmani Minj

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