FILM REVIEW: फिल्‍म देखने से पहले जानें कैसी है ”नोटबुक”

उर्मिला कोरी फिल्म : नोटबुक निर्माता : सलमान खान निर्देशक: नीतिन कक्कड़ कलाकार: प्रनूतन बहल, जहीर इकबाल और अन्य रेटिंग : तीन डिजिटल इंडिया के इस युग में टिंडर और फेसबुक के जरिए डिजिटल रोमांस की कहानी चल रही है. ऐसे दौर में सलमान खान ने बतौर निर्माता नोटबुक वाली प्रेमकहानी लेकर आएं हैं. जहां […]

By Prabhat Khabar Print Desk | March 29, 2019 3:20 PM

उर्मिला कोरी

फिल्म : नोटबुक

निर्माता : सलमान खान

निर्देशक: नीतिन कक्कड़

कलाकार: प्रनूतन बहल, जहीर इकबाल और अन्य

रेटिंग : तीन

डिजिटल इंडिया के इस युग में टिंडर और फेसबुक के जरिए डिजिटल रोमांस की कहानी चल रही है. ऐसे दौर में सलमान खान ने बतौर निर्माता नोटबुक वाली प्रेमकहानी लेकर आएं हैं. जहां दो लोग आपस में कभी मिले नहीं. न बात की है. एक दूसरे को देखा तक नहीं है सिर्फ उनका लिखा हुआ नोटबुक पढ़कर एक दूसरे को दिल हार बैठे हैं. फिल्म की कहानी की बात करें तो फिल्म की कहानी कबीर (जहीर इकबाल) और फिरदौस (प्रनूतन बहल) की है.

कबीर सेना की नौकरी में था लेकिन एक हादसे की वजह से वह सेना की नौकरी छोड़ चुका है. अपने पिता के बनाए स्कूल को बचाने के लिए वह वहां पढ़ाने पहुंच जाता है. वहां स्कूल में उसे एक डायरी मिलती है टीचर फिरदौस की डायरी.

मालूम पडता है कि अपनी तरह जीने की सोच की वजह से फिरदौस को इस गुमनाम सी जगह में बने स्कूल में बच्चों को पढाने के लिए भेज दिया गया है लेकिन वह हालातों से परेशान नहीं होती बल्कि उन्ही में वह अपनी खुशी ढूंढ लेती है. कहानी आगे बढ़ती है अपने प्रेमी की वजह से फिरदौस को स्कूल छोड़ना पड़ता है. कुछ महीने बाद उसकी शादी है. क्या उसकी शादी हो जाएगी. फिरदौस कबीर के प्यार को कैसे जानेगी इसके लिए आपको फ़िल्म देखनी होगी.

थाई फ़िल्म की यह ऑफिशियल रीमेक फ़िल्म 2008 के दौर में बुनी गयी है. ताज़े हवा के झोंके की तरह यह धीमी गति से चलती हुई प्रेमकहानी है लेकिन प्रेमकहानी भर नहीं है साथ-साथ कश्मीर के ज्वलंत मुद्दों को भी फिल्म में बखूबी से उकेरा गया है. कश्मीरी पंडितों पर हुए अत्याचार, शिक्षा ही वहां के बच्चों के भविष्य के अंधेरें को खत्म कर सकती है बंदूक नहीं, इन बातों को भी बखूबी कहानी के साथ जोड़ा गया है. इन बातों पर कोई ज्ञानवाणी या बयानबाजी नहीं की गयी है. यह फिल्म का अच्छा पहलू है.

कहानी के कमजोर पहलुओं की बात करें तो फिल्म का कांसेप्ट बहुत ही अच्छा है लेकिन स्क्रीनप्ले उत्सुकता जगा नहीं पाता है. सेकेंड हाफ के बाद थोड़ी खींचती हुई भी जान पड़ती है और क्लाइमेक्स पर भी और काम करने की ज़रूरत महसूस होती है. ऐसा लगता है कि इसे जल्दी में निपटा दिया गया है.

अभिनय की बात करें तो यह जहीर इकबाल और प्रनूतन बहल की पहली है लेकिन जिस आत्मविश्वास के साथ वह परदे पर नजर आते हैं उसकी तारीफ करनी होगी. जहीर इकबाल की संवाद अदाएगी, एक्सप्रेशन और डांस सभी में उनकी मेहनत दिखती है. प्रनूतन अपने अभिनय की विरासत को बखूबी आगे बढ़ाती दिखती हैं. फिल्म में उनके किरदार के अनुरुप उनका अभिनय एकदम सहज है. फिल्म में बच्चे अपने किरदार से एक अलग ही रंग भरा हैं. हर बच्चा खास है.

फिल्म की कहानी को और ज्यादा खूबसूरत इसकी कमाल की सिनेमाटोग्राफी बनाती है. एक अलग ही कश्मीर को फिल्म में दिखाया गया है. जो अब तक बॉलीवुड के रुपहले परदे पर नजर नहीं आया है. फिल्म का गीत संगीत औसत है बुमरो गीत और सफर याद रह जाता है. फिल्म के संवाद अच्छे बन पड़े हैं.

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