प्रभात खबर डॉट कॉम लाइव में बोलीं रेखा भारद्वाज, झारखंडी संगीत पर भी काम करने की इच्छा

गायक रेखा भारद्वाज टाटा स्टील झारखंड लिटररी मीट में हिस्सा लेने के लिए रांची आयी थी. रात तकरीबन दस बजे उन्होंने होटल में प्रभात खबर डॉट कॉम से विशेष बातचीत की. इस बातचीत में उन्होंने झारखंड के लोकसंगीत पर काम करने की इच्छा जतायी. उन्होंने कहा, अगर यहां के लोग मुझे यहां की संगीत से […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 10, 2018 2:40 PM

गायक रेखा भारद्वाज टाटा स्टील झारखंड लिटररी मीट में हिस्सा लेने के लिए रांची आयी थी. रात तकरीबन दस बजे उन्होंने होटल में प्रभात खबर डॉट कॉम से विशेष बातचीत की. इस बातचीत में उन्होंने झारखंड के लोकसंगीत पर काम करने की इच्छा जतायी. उन्होंने कहा, अगर यहां के लोग मुझे यहां की संगीत से परिचय करायेंगे तो जरूर मैं उसे आगे लेकर जाने की कोशिश करूंगी. पढ़ें रेखा भारद्वाज से पंकज कुमार पाठक की बातचीत जिसे फेसबुक पर लाइव आपतक पहुंचायाअरविंद सिंह ने.

आप पहली बार रांची आयीं हैं. शहर कैसा लगा, यहां के सुनने वाले कैसे लगे ?
सुनने वाले बहुत कमाल के थे. इतनी सरदी में भी उनके प्यार की गर्माहट ही हमें शो करने में मदद की. हमने सवा घंटों गाया लेकिन हमारा और लोगों का मन नहीं भरा. बाहर ओस गिर रही थी अगर कार्यक्रम इंडोर होता तो मैं और गाती और सुनने वाले भी और सुनते. मुझे भी इस बार अधूरा सा महसूस हुआ है मैं अगली बार आऊंगी तो यह कमी जरूर पूरी करूंगी.
"एक वो दिन भी थे " चाची 420 का गाना था जिससे आपको पहचान मिली. आप बॉलीवुड संगीत में नहीं आना चाहती थी फिर कैसे आना हुआ ?
बचपन से मैंने उस तरफ रुख नहीं किया. मुझे लगता था मेरी आवाज हटकर है. लता, आशा, अनुराधा अब श्रेया हैं उनकी आवाज दूसरे तरह की है मुझे लगा मेरी आवाज वैसी नहीं है. मैं शास्त्रीय संगीत की तरफ रूची रखती थी लेकिन विशाल के साथ जब मैं उनके संघर्ष में भागीदार बनी तो मैंने पूरा प्रोसेस देखा. मैं विशाल की डबिंग देखती थी फिर विशाल मुझे कुछ गाने गवाने लगे कि वह सुन सकें कि कैसा लग रहा है. इसमें ट्रेंनिग भी होती रही. उस वक्त का जो ट्रेंड था मैं उसमें खुद को नहीं देखती थी.
पहला जो गीत गाया वह विशाल के लिए गाया, "जहां तुम ले चलो" फिल्म में गाया. इस नगमें को बहुत कम लोगों ने गाया. लता के लिए अक्सर डमी गाने गाये जाते थे ताकि शुटिंग हो जाए फिर लता जी को वक्त मिलता था उसे गाती थीं. लेकिन इसे लोगों ने पसंद किया और यह फिल्म में रह गया. इसी गाने के बाद मुझे चाची 420 में गाने का मौका मिला. इस गाने को बेहद खूबसूरती से फिल्माया गया. इसके बाद मैंने मकबूल में गीत गाया. ओमकारा में मैंने नमक इश्क का गाया तो चीजें बदल गयी.
आपके लिए सुफी संगीत क्या है, आप इसे नये म्यूजिक से जोड़कर युवाओं तक पहुंचा रही हैं यह कैसे सोचा ?
मैंने सोचकर कुछ नहीं किया. मैंने अपने गुरुओं से सीखा है. विशाल की वजह से गुलजार साहब मिले. ओशो कम्यून जाने से मुझे बेहद फायदा हुआ. मैंने जीवन के बारे में बहुत कुछ सीखा. ओशो को सुन के पढ़कर बहुत कुछ जाना. हर एक इंसान में खूबी है कमियां हैं. स्ट्रगल सिर्फ करियर की नहीं होती अंदर भी यह सब चल रहा होता. मैंने इस दौरान बहुत कुछ सीखा. मैंने जो गीत गाया है बहुत सिद्धत के साथ गाती हूं.
मैंने यह सुफीज्म में सीखा है हम जो गाते हैं उसके हम सिर्फ माध्यम हैं बाकि सबकुछ मां सरस्वती को जो जाती है. गुरु को जाती है. मैं दिल से सोचता हूं, अब दिमाग थोड़ा चलने लगा है. मैंने सुफियाना रास्ता जिंदगी के तौर तरीके के रूप में चुना है. दिल की बात है, अपनों के लिए प्यार हो. आपको अच्छाई दिखने लगती है.
छोटे शहरों में आपने ज्यादा चाहने वाले हैं ?
मैंने कभी नहीं सोचा था कि मैं रांची गाने के लिए आऊंगी. कुछ अरसे से मैं रायगढ़, रायपुर, वर्धा, कोरबा तक हो आयें. संगीत जैसे तैयार हो रहे हैं वहां तक पहुंच पा रहे हैं हर महीने घर में एक महफिर होती थी जहां मेरे पिता के दोस्त आते थे. हम गाते थे. हम पांच भाई बहन हैं, मुझे ज्यादा मिला. मैं शुरुआत से ही क्लियर थी कि मैं क्या गा सकती हूं.
मैंने कभी किसी की आवाज का नकल करने की कोशिश नहीं की. मैं छह सात साल की थी तब भी लता के गाने सुनकर रोती थी. मेरे गुरु कहते थे कि तुम रो रही हो गाने में आधा सीखना तो यहीं हो गया. अब बस रियाज करना है. मैं संगीत को एक जिम्मेदारी के तौर पर लेती हूं.
आपके सपने क्या हैं आप आगे क्या करेंगी
मैं कंपोज करती हूं मैंने 14 सालों का वक्त दिया है. मैं अमृता पृतम की एक किवता कंपोज की है. उसे जल्द रिलीज करूंगी. इसके अलावा भी कई चीजें हैं जिस पर काम कर रही हूं. मेरे अपने सफर पर एक गीत है जिसे तैयार कर रही हूं. एमटीवी एनप्लग पर काम हो रहा है उसकी सीरीज भी जल्द रिलीज होगी.
झारखंड लोकसंगीत के क्षेत्र में धनी है क्या आप आपने यहां का संगीत सुना है ?
मैं यहां की संगीत को बहुत कम जानती हूं. उम्मीद करती हूं कि यहां के लोग मेरी मदद करेंगे. अगर मुझे कोई अच्छी कविता, गीत , लोकगीत मिलेगा तो जरूर करूंगी. उम्मीद करती हूं कि यहां के लोग मेरी मदद करेंगे. लोकसंगीत में जो आनंद है उसे सबतक पहुंचना चाहिए.
प्रभात खबर डॉट कॉम आपकी रचना रेखा भारद्वाज तक पहुंचाने की कोशिश करेगा. अगर आपकी रचना में झारखंडी मिट्टी की महक है तो हमें ईमेल करें – internet@prabhatkhabar.in

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