”अदालती आदेश के बावजूद रैनबैक्सी के पूर्व प्रवर्तक मालविंदर और शिविंदर ने फंड में की हेराफेरी”

नयी दिल्ली : जापान की कंपनी दाइची सांक्योय ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि रैनबैक्सी के पूर्व प्रवर्तकों मालविंदर और शिविंदर सिंह ने अदालत के कई आदेशों के बावजूद कोष में हेराफेरी की. जापानी कंपनी ने कहा कि दोनों पूर्व प्रवर्तकों को फोर्टिस हेल्थकेयर में अपनी हिस्सेदारी बरकरार रखने को कहा गया था. […]

By Prabhat Khabar Print Desk | April 11, 2019 10:13 PM

नयी दिल्ली : जापान की कंपनी दाइची सांक्योय ने गुरुवार को सुप्रीम कोर्ट में कहा कि रैनबैक्सी के पूर्व प्रवर्तकों मालविंदर और शिविंदर सिंह ने अदालत के कई आदेशों के बावजूद कोष में हेराफेरी की. जापानी कंपनी ने कहा कि दोनों पूर्व प्रवर्तकों को फोर्टिस हेल्थकेयर में अपनी हिस्सेदारी बरकरार रखने को कहा गया था. सिंह बंधुओं को जापानी कंपनी को 4,000 करोड़ रुपये का भुगतान करना है.

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मुख्य न्यायाधीश रंजन गोगोई, न्यायमूर्ति दीपक गुप्ता तथा न्यायमूर्ति संजीव खन्ना की पीठ ने रैनबैक्सी के पूर्व प्रवर्तकों तथा अन्य के खिलाफ दायर अवमानना की याचिका पर अपना आदेश सुरक्षित रखा है. दाइची की ओर से उपस्थित वरिष्ठ अधिवक्ता एफएस नरिमन ने आरोप लगाया कि सुप्रीम कोर्ट द्वारा सिंह बंधुओं को फोर्टिस हेल्थेकयर में हिस्सेदारी को बरकरार रखने के कई आदेशों के बावजूद सिंह बंधुओं ने अपनी हिस्सेदारी को कम किया.

उन्होंने कहा कि सिंह बंधुओं की फोर्टिस हेल्थकेयर में 11 अगस्त, 2017 को 40 फीसदी से अधिक हिस्सेदारी थी, जो अब घटकर एक फीसदी से कम रह गयी है. सुप्रीम कोर्ट ने इससे जापान की दाइची को 4,000 करोड़ रुपये का भुगतान करने के बारे में मालविंदर और शिविंदर सिंह से उनकी योजना के बारे में जवाब देने को कहा था. अदालत ने सिंह बंधुओं के दिये गये जवाब पर नाराजगी जतायी.

उल्लेखनीय है कि सिंगापुर के न्यायाधिकरण ने सिंह बंधुओं को दाइची को 4,000 करोड़ रुपये का भुगतान करने के बारे में फैसला दिया था. सुप्रीम कोर्ट ने कहा है कि यदि यह पाया गया कि सिंह बंधुओं ने उसके आदेश का उल्लंघन किया है, तो वह उन्हें जेल भेज देगा. इससे पहले 14 मार्च को सुप्रीम कोर्ट ने दोनों भाइयों को दाइची को 4,000 करोड़ रुपये का भुगतान करने के बारे में ठोस योजना सौंपने को कहा था. साथ ही, उन्हें अपने लेखाकारों और वित्तीय एवं कानूनी सलाहकारों के साथ भी विचार-विमर्श कर अदालत को जानकारी देने को कहा था.

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