बीजेपी के इतने मौजूदा विधायकों का हो सकता है पत्ता साफ, जानें क्या होगा फैक्टर, दो दिन होगी महाबैठक

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव को लेकर बीजेपी एक्शन मोड में आ चुकी है. 4 और 5 अक्टूबर को पटना में एक बड़ी बैठक होने वाली है. इसमें सीटों और संभावित उम्मीदवारों पर चर्चा होगी. इस बार कई मौजूदा विधायकों के टिकट कटने की संभावना है.

By Paritosh Shahi | October 3, 2025 9:58 PM

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव की तारीखों के एलान से पहले बीजेपी ने तैयारियां तेज कर दी है. दशहरे के बाद अब पार्टी सीट बंटवारे की प्रक्रिया शुरू करने जा रही है. इसी क्रम में 4 और 5 अक्टूबर को पटना में बीजेपी की एक बड़ी बैठक होगी. इसमें सीटों और संभावित उम्मीदवारों पर बात होगी.

उत्तर प्रदेश के डिप्टी सीएम और चुनाव सह-प्रभारी केशव प्रसाद मौर्य पटना पहुंच चुके हैं. यहां उन्होंने राष्ट्रीय पिछड़ा वर्ग आयोग के अध्यक्ष हंसराज अहीर, भुवन भूषण कमल, डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और पूर्व प्रदेश अध्यक्ष डॉ. संजय जायसवाल के साथ चर्चा की और संगठन की बैठक में चुनावी तैयारियों का जायजा लिया.

बीजेपी साथी दलों से करेगी बात

बीजेपी केवल अपनी इंटरनल सर्वे तक सीमित नहीं है, बल्कि सहयोगी दलों के साथ सीट शेयरिंग पर भी जल्द ही बात करने वाली है. दिल्ली में चिराग पासवान की लोजपा (रा), जीतनराम मांझी की हम पार्टी और उपेंद्र कुशवाहा की रालोमो के साथ होने वाली बैठक की आधिकारिक घोषणा किसी भी वक्त हो सकती है.

सख्त होगी चयन प्रक्रिया

इस बार बीजेपी में उम्मीदवारों के चयन की प्रक्रिया काफी सख्त रखी गई है. एक दर्जन से अधिक मौजूदा विधायकों के टिकट काटे जाने की संभावना है. 4-5 अक्टूबर को होने वाली बैठक में चुनाव प्रभारी धर्मेंद्र प्रधान, सह प्रभारी केशव प्रसाद मौर्य और सीआर पाटिल, बिहार बीजेपी प्रदेश चीफ दिलीप जायसवाल और डिप्टी सीएम सम्राट चौधरी और विजय कुमार सिन्हा सीटों और संभावित उम्मीदवारों पर चर्चा करेंगे.

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सभी दल मिलकर तय करेंगे कौन किस सीट से लड़ेगा

इसके बाद दिल्ली में होने वाली बिहार बीजेपी की कोर ग्रुप की बैठक में इस सूची को अंतिम रूप दिया जाएगा. अंत में केंद्रीय चुनाव समिति नामों पर मुहर लगाएगी. टिकट काटने का मुख्य आधार उन विधायकों को बनाया जा सकता है जिनकी उम्र एक फैक्टर होगी या जिनके खिलाफ जनता में भारी असंतोष है.

टिकट कटने के बनेंगे यह आधार

  • एंटी-इनकंबेंसी और लोगों में असंतोष .
  • संगठन के प्रति सक्रियता और भागीदारी की कमी.
  • स्थानीय स्तर पर विकास कार्यों की धीमी रफ्तार.
  • विपक्ष को घेरने में नाकामी और कमजोर छवि.
  • जातीय समीकरण और सामाजिक संतुलन.
  • नया चेहरे लाने की रणनीति या बंटवारे में सीट का जाना.

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