Bihar Election से पहले NDA में सीट बंटवारे की जंग! BJP-JDU बराबरी पर अड़े, Chirag Paswan की डिमांड पर संकट

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 से पहले एनडीए में सीट बंटवारे को लेकर खींचतान तेज हो गई है. भाजपा और जेडीयू बराबरी पर चुनाव लड़ने की तैयारी में हैं. जबकि चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) 40 सीटों की मांग कर रही है, लेकिन उसे आधी यानी करीब 20 सीटें मिलने की संभावना है. वहीं मुकेश सहनी की वीआईपी NDA में वापसी करती है तो समीकरण और उलझ सकते हैं.

By Abhinandan Pandey | August 24, 2025 7:18 PM

Bihar Election 2025: बिहार विधानसभा चुनाव 2025 की उलटी गिनती शुरू हो चुकी है. अक्टूबर-नवंबर में होने वाले चुनाव को लेकर सभी राजनीतिक दलों ने अपनी रणनीतियां तेज़ कर दी हैं. एक ओर कांग्रेस-राजद सहित पूरा विपक्ष ‘वोटर अधिकार यात्रा’ निकालकर माहौल बनाने में जुटा है, तो दूसरी ओर एनडीए (राष्ट्रीय जनतांत्रिक गठबंधन) में सीट बंटवारे को लेकर गहमागहमी चरम पर है.

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के लगातार बिहार दौरों और एनडीए नेताओं की सक्रियता इस बात का संकेत है कि भाजपा और उसके सहयोगी दल चुनावी जंग को लेकर बेहद गंभीर हैं. लेकिन सीट शेयरिंग का मसला अब भी उलझा हुआ है, और सूत्र बताते हैं कि इसका सबसे बड़ा नुकसान चिराग पासवान की लोजपा (रामविलास) को झेलना पड़ सकता है.

भाजपा-जेडीयू के बीच बराबरी का फॉर्मूला

सूत्रों के मुताबिक, एनडीए में सबसे अहम साझेदारी भाजपा और जेडीयू के बीच तय होनी है. दोनों ही दल 243 सदस्यीय विधानसभा में लगभग बराबर सीटों पर चुनाव लड़ सकते हैं. चर्चा है कि भाजपा और जेडीयू को 100 से 105 सीटें मिल सकती हैं. इस हिसाब से कुल मिलाकर गठबंधन की बड़ी लड़ाई इन्हीं दो दलों के कंधों पर टिकी रहेगी.

लेकिन जेडीयू इस बार 100 से कम सीटों पर मानने को तैयार नहीं है. पार्टी का कहना है कि चुनाव मुख्यमंत्री नीतीश कुमार के नेतृत्व में लड़ा जा रहा है और पूरा प्रचार अभियान उन्हें दोबारा सत्ता में लाने पर केंद्रित है. ऐसे में उनकी सीटें भाजपा से कम होना किसी भी तरह स्वीकार्य नहीं होगा.

चिराग पासवान को कम सीटें मिलने के आसार

सबसे बड़ी चुनौती लोजपा (रामविलास) को लेकर है. चिराग पासवान की पार्टी 40 सीटों पर चुनाव लड़ने की मांग कर रही है, लेकिन एनडीए का शीर्ष नेतृत्व इसे अव्यावहारिक बता रहा है. भाजपा नेताओं का कहना है कि लोजपा को 40 सीटें देना गठबंधन की गणित को बिगाड़ सकता है, क्योंकि मांझी और उपेंद्र कुशवाहा जैसे अन्य सहयोगियों को भी जगह देनी है.

अनुमान है कि चिराग पासवान को उनकी मांग की आधी यानी करीब 20 सीटें ही मिल पाएंगी. यही नहीं, अगर आखिरी वक्त में मुकेश सहनी की वीआईपी पार्टी एनडीए में लौट आती है, तो चिराग के हिस्से में और भी कम सीटें आ सकती हैं.

पिछली बार का अनुभव (Bihar Election 2025)

2020 के विधानसभा चुनाव में भाजपा ने 110 और जेडीयू ने 115 सीटों पर चुनाव लड़ा था. उस समय वीआईपी को 11 और हम (सेक्युलर) को 7 सीटें दी गई थीं. जबकि लोजपा ने गठबंधन छोड़कर अकेले 135 सीटों पर उम्मीदवार उतारे थे. नतीजा यह हुआ कि लोजपा केवल एक सीट (मटिहानी) जीत सकी, लेकिन उसने जेडीयू को गहरी चोट पहुंचाई.

दरअसल, 64 सीटों पर लोजपा ने इतने वोट काटे कि वह सीधे तौर पर एनडीए की हार का कारण बन गई. इनमें 27 सीटें ऐसी थीं, जहां लोजपा दूसरे नंबर पर रही और जेडीयू हार गई. यही वजह है कि इस बार एनडीए नेतृत्व लोजपा को अधिक सीटें देने से बचना चाहता है.

लोकसभा प्रदर्शन का तर्क

चिराग पासवान की दलील है कि 2024 के लोकसभा चुनाव में उनकी पार्टी ने दमदार प्रदर्शन किया. लोजपा (रामविलास) ने अपनी लड़ी सभी 5 लोकसभा सीटों पर जीत दर्ज की और 6% से अधिक वोट शेयर हासिल किया. पार्टी का कहना है कि जिन 30 विधानसभा क्षेत्रों में उसने बढ़त पाई, उनमें से 29 में लोजपा आगे रही. इसी आधार पर वह 40 सीटों की मांग कर रही है.

लेकिन जेडीयू नेताओं का कहना है कि लोकसभा और विधानसभा चुनावों की परिस्थितियां अलग होती हैं. लोकसभा चुनाव नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में लड़े जाते हैं, जबकि विधानसभा चुनावों में स्थानीय कारक और पार्टी की जमीनी पकड़ ज़्यादा मायने रखती है.

एनडीए का समीकरण और वीआईपी का फैक्टर

इस बार एनडीए की सीट शेयरिंग में वीआईपी यानी मुकेश सहनी की भी अहम भूमिका हो सकती है. सहनी अभी इंडिया गठबंधन में हैं, लेकिन राजनीतिक हलकों में चर्चा है कि अगर चुनाव से पहले वह एनडीए में लौटते हैं, तो सीटों का नया बंटवारा करना पड़ेगा. सहनी 2020 में एनडीए के साथ चुनाव लड़ चुके हैं और उस वक्त उन्हें 11 सीटें मिली थीं.

अगर वीआईपी एनडीए में शामिल होती है, तो चिराग पासवान के लिए सीटों की संख्या और कम हो सकती है. एनडीए नेतृत्व यह भी मानता है कि सहनी की पकड़ मछुआरा समुदाय और कुछ अति पिछड़े वर्गों में मज़बूत है, जो कई सीटों पर निर्णायक साबित हो सकता है.

नीतीश कुमार की शर्तें

नीतीश कुमार इस बार सीट बंटवारे को लेकर और अधिक सख्त दिख रहे हैं. उन्होंने साफ कर दिया है कि जेडीयू भाजपा से कम सीटों पर चुनाव नहीं लड़ेगी. पार्टी के नेताओं का तर्क है कि 2020 के चुनाव में लोजपा ने जेडीयू को नुकसान पहुंचाया था, जिसके कारण उसके आंकड़े गिरे. लेकिन अब जब लोजपा गठबंधन में है, तो जेडीयू का प्रदर्शन बेहतर हो सकता है. इसलिए सीटों का बंटवारा जेडीयू की ताकत को देखते हुए होना चाहिए.

भाजपा का संतुलन साधने का प्रयास

भाजपा नेतृत्व की सबसे बड़ी चुनौती है सभी सहयोगियों को साथ लेकर चलना. पार्टी यह जानती है कि अकेले दम पर बिहार जीतना मुश्किल होगा. इसलिए उसे जेडीयू, लोजपा, हम और संभवतः वीआईपी को भी खुश रखना होगा. हालांकि भाजपा यह भी नहीं चाहती कि चिराग पासवान को जरूरत से ज्यादा सीटें देकर भविष्य में असंतुलन पैदा हो.

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