US Venezuela Crisis: अमेरिका-वेनेजुएला जंग के मुहाने पर, ट्रंप ने भेजी सेना, मदुरो ने दी खूनखराबे की चेतावनी

US Venezuela Crisis: अमेरिका और वेनेजुएला के बीच तनाव चरम पर है. ट्रंप के आदेश पर अमेरिकी सेना ने कैरिबियन में युद्धपोत और सैनिक तैनात किए, तो राष्ट्रपति मदुरो ने चेताया कि वे संप्रभुता की रक्षा करेंगे. असली टकराव वेनेजुएला के तेल भंडार और अमेरिकी दबदबे को लेकर है.

By Aman Kumar Pandey | August 30, 2025 12:03 PM

US Venezuela Crisis: अमेरिका और वेनेजुएला के बीच हालात लगातार तनावपूर्ण होते जा रहे हैं. खबर है कि डोनाल्ड ट्रंप के आदेश पर अमेरिकी सेना वेनेजुएला पर हमला करने की तैयारी में है. इसी बीच वेनेजुएला के राष्ट्रपति निकोलस मदुरो ने साफ शब्दों में कहा है कि चाहे हालात कितने भी गंभीर क्यों न हों, अमेरिकी सैनिकों को वेनेजुएला की धरती पर कदम रखने की इजाजत नहीं दी जाएगी.

यह चेतावनी उस समय आई जब अमेरिका ने कैरिबियन क्षेत्र में अपने दर्जनों युद्धपोत और चार हजार से अधिक सैनिकों को भेज दिया. अमेरिकी प्रशासन का दावा है कि यह कदम ड्रग्स की तस्करी रोकने के लिए उठाया गया है. हालांकि, कई संकेत ऐसे हैं जो यह दर्शाते हैं कि अमेरिका वास्तव में वेनेजुएला के खिलाफ सैन्य अभियान छेड़ने की योजना बना रहा है.

इसके जवाब में वेनेजुएला ने भी अपनी सैन्य ताकत दिखानी शुरू कर दी है. उसने समुद्र में युद्धक ड्रोन और नौसैनिक जहाज तैनात कर दिए हैं. मदुरो का कहना है कि उनकी सरकार पूरी तरह तैयार है और देश की शांति, संप्रभुता और क्षेत्रीय अखंडता की रक्षा किसी भी कीमत पर की जाएगी.

मदुरो का भारत से जुड़ाव और साईं बाबा के प्रति आस्था (US Venezuela Crisis)

निकोलस मदुरो को आम तौर पर कठोर वामपंथी नेता के रूप में देखा जाता है, लेकिन उनकी निजी जिंदगी का एक अहम पहलू भारत से भी जुड़ा हुआ है. साल 2005 में भारत दौरे के दौरान उन्होंने प्रसिद्ध आध्यात्मिक गुरु सत्य साईं बाबा से मुलाकात की थी. इस मुलाकात का उन पर गहरा प्रभाव पड़ा और उन्होंने खुद को साईं बाबा का अनुयायी घोषित किया.

यही नहीं, 2013 में दिए गए एक साक्षात्कार में मदुरो ने खुलासा किया था कि उनके दादा-दादी यहूदी थे, जिन्होंने बाद में कैथोलिक धर्म अपनाया. इस तरह उनका निजी धार्मिक सफर बहुआयामी रहा है यहूदी पृष्ठभूमि, कैथोलिक परंपरा और भारतीय आध्यात्मिक गुरु के प्रति आस्था.

अमेरिका की रणनीति और आरोप (US Venezuela Crisis)

अमेरिका लंबे समय से वेनेजुएला की सरकार पर दबाव बनाता रहा है. चाहे ट्रंप प्रशासन हो या फिर जो बाइडेन का दौर, दोनों ही समय में अमेरिका ने मदुरो सरकार पर मानवाधिकार हनन, चुनाव में धांधली और तानाशाही जैसे आरोप लगाए. यही रणनीति अमेरिका ने कई अन्य देशों जैसे बांग्लादेश, पाकिस्तान और भारत के खिलाफ भी अपनाई है.

वेनेजुएला का दावा है कि इन आरोपों को आधार बनाकर अमेरिका बार-बार वहां गृहयुद्ध जैसी स्थिति पैदा करने की कोशिश करता रहा है, ताकि सत्ता परिवर्तन किया जा सके. लेकिन इन सभी प्रयासों के बावजूद मदुरो ने सत्ता पर अपनी पकड़ बनाए रखी है.

हाल ही में वेनेजुएला ने कई अमेरिकी एजेंटों को गिरफ्तार किया था, जिन पर गृहयुद्ध भड़काने की साजिश रचने के आरोप लगे थे. दूसरी ओर, अमेरिका का कहना है कि राष्ट्रपति मदुरो ड्रग कार्टेल से जुड़े हुए हैं. ट्रंप प्रशासन ने तो यहां तक किया कि मदुरो के सिर पर इनाम बढ़ाकर 50 मिलियन डॉलर घोषित कर दिया.

तेल भंडार और असली विवाद (US Venezuela Crisis)

अमेरिका और वेनेजुएला के बीच टकराव की जड़ सिर्फ राजनीतिक विचारधारा नहीं, बल्कि आर्थिक हित भी हैं. वेनेजुएला दुनिया के सबसे बड़े तेल भंडारों में से एक है. राष्ट्रपति मदुरो के सत्ता में आने के बाद उन्होंने तेल कंपनियों का राष्ट्रीयकरण कर दिया था. इसका सीधा असर अमेरिकी कंपनियों पर पड़ा और वे वेनेजुएला के विशाल तेल संसाधनों से बाहर हो गईं. यही आर्थिक चोट अमेरिका के लिए सबसे बड़ी वजह बनी, जिसके बाद से ही वह वेनेजुएला में सत्ता परिवर्तन करवाने की कोशिशें तेज करता रहा. अमेरिका अब भी चाहता है कि इस देश के तेल भंडार पर उसका सीधा नियंत्रण हो, ताकि वह वैश्विक ऊर्जा बाजार में अपनी ताकत बरकरार रख सके.

संयुक्त राष्ट्र से मदुरो की अपील (US Venezuela Crisis)

अमेरिका की बढ़ती सैन्य तैनाती को लेकर राष्ट्रपति मदुरो ने संयुक्त राष्ट्र से भी अपील की है. उन्होंने कहा है कि अमेरिका को तुरंत कैरिबियन से अपने सैनिकों और युद्धपोतों को हटाना चाहिए. मदुरो का आरोप है कि यह तैनाती सिर्फ ड्रग्स रोकने के नाम पर की गई है, जबकि असली मकसद उनकी सरकार को गिराना और वेनेजुएला के संसाधनों पर कब्जा करना है. अमेरिका और वेनेजुएला के बीच तनातनी किसी नए मोड़ पर खड़ी दिखाई दे रही है. एक तरफ अमेरिका है, जो अपने सैन्य और आर्थिक हित साधना चाहता है, वहीं दूसरी तरफ मदुरो हैं, जो देश की संप्रभुता और संसाधनों की रक्षा करने की बात कर रहे हैं. ऐसे में दुनिया की नजरें अब इस पर टिकी हैं कि क्या यह संघर्ष वास्तव में युद्ध का रूप लेगा या फिर कूटनीति के जरिए सुलझ जाएगा.

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