अमेरिका से टकराव खत्म! साउथ कोरिया ने टैरिफ 25% से घटाकर 15% किया, करेगा 350 अरब डॉलर की मोटी डील

US South Korea Tariff Deal: अमेरिका और दक्षिण कोरिया ने ऑटो पर टैरिफ 25% से घटाकर 15% करने पर सहमति जताई है. बदले में सियोल अमेरिका में 350 अरब डॉलर का बड़ा निवेश करेगा. जानिए सौदे की राजनीतिक और आर्थिक पेंच, विशेषज्ञों की राय और आगे की चुनौती.

By Govind Jee | October 29, 2025 5:19 PM

US South Korea Tariff Deal: अमेरिका और दक्षिण कोरिया के बीच टैरिफ को लेकर चल रही खींचतान में एक नई हलचल दिखी है. दक्षिण कोरिया के राष्ट्रपति ली जे-म्युंग के शीर्ष सलाहकार किम योंग-बॉम के अनुसार दोनों देशों ने ऑटोमोबाइल और ऑटो पार्ट्स पर लगने वाले शुल्क को 25 प्रतिशत से घटाकर 15 प्रतिशत करने पर सहमति बना ली है. किम ने यह जानकारी APEC समिट के दौरान मीडिया से बातचीत में साझा की.

US South Korea Tariff Deal: डील के बदले बड़ी कीमत

किम योंग-बॉम ने बताया कि इस टैरिफ कटौती के बदले दक्षिण कोरिया ने अमेरिका में 350 अरब डॉलर निवेश करने की योजना पर हामी भरी है. इसमें दो बड़े हिस्से शामिल हैं,

पहला, 200 अरब डॉलर का सीधा नकद निवेश, और दूसरा, 150 अरब डॉलर शिपबिल्डिंग सेक्टर में सहयोग के रूप में. हालांकि अभी साफ नहीं है कि यह समझौता ट्रंप और ली के बीच बातचीत से निकला अनौपचारिक कॉमन ग्राउंड है या फिर कोई दस्तख़त किया हुआ औपचारिक करार.

ट्रंप का 25% टैरिफ वार

डोनाल्ड ट्रंप के राष्ट्रपति कार्यकाल में दक्षिण कोरिया पर 25 प्रतिशत ‘रिसिप्रोकल टैरिफ’ लगाया गया था. इसके अलावा स्टील और एल्यूमिनियम पर 50 प्रतिशत तक भारी शुल्क भी लगाया गया था. बाद में दोनों पक्षों के बीच इस टैरिफ को 15 प्रतिशत तक कम करने की सहमति बनी, पर कभी किसी कागज पर औपचारिक साइन नहीं हुए. यही कारण है कि टैरिफ का बोझ लगातार बना रहा.

सियोल के लिए बड़ा बोझ

इस निवेश राशि को लेकर दक्षिण कोरिया के अंदर सवाल उठ रहे हैं. कई अर्थशास्त्री इसे देश की अर्थव्यवस्था के लिए अत्यधिक दबाव वाला सौदा मानते हैं. सियोल की सुकमयोंग यूनिवर्सिटी के सम्मानित अर्थशास्त्री शिन से-डॉन ने निक्केई एशिया से कहा कि राष्ट्रपति ली 350 अरब डॉलर जैसे विशाल बोझ को स्वीकार नहीं कर सकते.

उनका कहना है किली की कोशिश होगी कि रकम को 200 या 250 अरब डॉलर तक नीचे लाया जाए, हालांकि यह भी काफी ज्यादा है.” उनके अनुसार इस सौदे का असली पेंच यह है कि क्या ट्रंप अपने कड़े रुख से पीछे हटने को तैयार होंगे. कई विशेषज्ञों की नजर में यह घोषणा एक कूटनीतिक संदेश भर हो सकती है. क्योंकि जब तक समझौते पर हस्ताक्षर नहीं होते, तब तक हर दावा सवालों के घेरे में है.

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