ट्रंप प्रशासन ने दिया बड़ा झटका! अमेरिका में ये प्रोफेशनल डिग्रियां बाहर, क्या भारतीय छात्रों पर भी पड़ेगा असर?
Trump Admin Removes Professional Degrees: अमेरिका में ट्रंप प्रशासन ने प्रोफेशनल डिग्री की परिभाषा बदलकर कुछ ग्रेजुएट प्रोग्राम्स को बाहर रखा है. इससे नर्सिंग, पब्लिक हेल्थ और अन्य छात्रों के छात्र कर्ज और फंडिंग पर असर पड़ेगा, जिससे शिक्षा महंगी और चुनौतीपूर्ण हो सकती है.
Trump Admin Removes Professional Degrees: अमेरिका में राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के प्रशासन ने यह तय करना शुरू किया है कि कौन-सी ग्रेजुएट डिग्रियां प्रोफेशनल मानी जाएंगी. इस फैसले ने कई छात्रों को चिंतित कर दिया है क्योंकि इससे उनके शिक्षा के खर्च और कर्ज पर सीधा असर पड़ सकता है.
प्रोफेशनल डिग्री क्या होती है?
संघीय कानून 1965 के अनुसार, प्रोफेशनल डिग्री वह होती है जो किसी पेशे में शुरुआत के लिए जरूरी अकादमिक योग्यता पूरी करती है और स्नातक डिग्री से अधिक पेशेवर कौशल देती है. शिक्षा विभाग ने कुछ डिग्रियों को इस श्रेणी में रखा है, जिनमें फार्मेसी (Pharm.D.), डेंटिस्ट्री (D.D.S. या D.M.D.), पशु चिकित्सा (D.V.M.), कायरोप्रैक्टिक (D.C. या D.C.M.), कानून (L.L.B. या J.D.), मेडिसिन (M.D.), ऑप्टोमेट्री (O.D.), ऑस्टियोपैथिक मेडिसिन (D.O.), पॉडियाट्री (D.P.M., D.P., या Pod.D.), और थियोलॉजी (M.Div. या M.H.L.) शामिल हैं. हालांकि यह सूची पूरी नहीं है और पेशेवर लाइसेंस की आवश्यकता भी होती है.
Trump Admin Removes Professional Degrees: कौन सी डिग्रियां अब प्रोफेशनल नहीं मानी जा रही?
यूएसए टोडे के अनुसार, अमेरिका में कई ग्रेजुएट प्रोग्राम अब प्रोफेशनल डिग्री की लिस्ट से बाहर हैं, जिसमें नर्सिंग भी शामिल है. इससे नेशनल ऑर्गनाइजेशन और पेशेवर ग्रुप्स की तरफ से प्रतिक्रिया आई है, जो इस लिस्ट में और अधिक डिग्रियों को शामिल करने की वकालत कर रहे हैं. 28 अगस्त को ऑफिस ऑफ पोस्टसेकेंडरी एजुकेशन को लिखे गए एक पत्र में, अमेरिकन काउंसिल ऑन एजुकेशन ने डेफिनिशन बदलने और नर्सिंग, आर्किटेक्चर, अकाउंटिंग, ऑक्यूपेशनल थेरेपी, फिजिकल थेरेपी, स्पेशल एजुकेशन, पब्लिक हेल्थ, सोशल वर्क जैसी डिग्रियों को जोड़ने पर जोर दिया. अमेरिकन नर्सेस एसोसिएशन ने भी मौजूदा डेफिनिशन पर चिंता जताई. एसोसिएशन की प्रेसिडेंट जेनिफर मेनसिक केनेडी ने कहा कि नर्सिंग को लिस्ट से बाहर करने से ग्रेजुएट नर्सिंग एजुकेशन के लिए जरूरी फंडिंग तक पहुंच बहुत कम हो जाएगी. इससे नर्सिंग वर्कफोर्स को बढ़ाने और बनाए रखने की कोशिशों को नुकसान होगा.
यूएसए टोडे के अनुसार, मेनसिक केनेडी ने बताया कि ऐसे समय में जब देश में हेल्थकेयर नर्सों की ऐतिहासिक कमी और बढ़ती मांग है, फंडिंग तक नर्सों की पहुंच सीमित करना मरीजों की देखभाल की बुनियाद को ही खतरे में डाल सकता है. उन्होंने कहा कि ग्रामीण और कम सुविधा वाले इलाकों में एडवांस्ड प्रैक्टिस रजिस्टर्ड नर्स की मौजूदगी हाई-क्वालिटी केयर तक पहुंच सुनिश्चित करती है, जो अन्यथा मुमकिन नहीं हो पाती.
इसका स्टूडेंट्स पर क्या असर होगा?
इस समय यह परिभाषा ट्रंप प्रशासन के “Big Beautiful Bill” में छात्र कर्ज की सीमा तय करने में इस्तेमाल हो रही है. इस बिल के तहत ग्रेड प्लस लोन प्रोग्राम खत्म हो जाएगा, जो अब तक मेडिसिन, लॉ और अन्य प्रशिक्षण-सघन करियर के छात्रों के लिए मददगार रहा है. पेरेंट प्लस प्रोग्राम की सीमा भी 20,000 डॉलर प्रति वर्ष और 65,000 डॉलर कुल तक सीमित कर दी गई है.
प्रोफेशनल डिग्री सूची में शामिल छात्र प्रति वर्ष 50,000 डॉलर तक और कुल 200,000 डॉलर तक कर्ज ले सकते हैं. लेकिन सूची में नहीं शामिल छात्रों के लिए लोन 20,500 डॉलर प्रति वर्ष और कुल 100,000 डॉलर तक सीमित है. इसका मतलब है कि जो प्रोग्राम सूची में नहीं हैं, उनके छात्र कम कर्ज की सीमा का सामना करेंगे. ये बदलाव 1 जुलाई 2026 से लागू होंगे.
भारतीय छात्रों की पहली पसंद
अगर भारत की बात करें तो अमेरिका भारतीय छात्रों के लिए उच्च शिक्षा का प्रमुख केंद्र बन गया है. इसका कारण अमेरिका की विश्व स्तरीय यूनिवर्सिटी, आधुनिक शोध सुविधाएं और व्यावहारिक टीचिंग मेथड लॉजी है. यहां के कॉलेज और विश्वविद्यालय केवल अकादमिक शिक्षा तक सीमित नहीं हैं, बल्कि छात्रों को प्रैक्टिकल अनुभव और करियर की दिशा में मार्गदर्शन भी देते हैं. तकनीकी नवाचार और विज्ञान में अग्रणी होने के कारण अमेरिका छात्रों को अपने क्षेत्र में नवीनतम अवसर और अनुभव प्रदान करता है. भारतीय छात्र अमेरिका में कंप्यूटर साइंस और आईटी, इंजीनियरिंग, बिजनेस एडमिनिस्ट्रेशन (MBA), हेल्थकेयर और नर्सिंग, इकोनॉमिक्स और फाइनेंस, बायोटेक्नोलॉजी और बायोमेडिकल साइंसेज जैसे प्रमुख कोर्स और स्पेशलाइजेशन के लिए जाते हैं.
ऐसे में ट्रंप प्रशासन ने यह तय करना शुरू किया है कि कौन-सी ग्रेजुएट डिग्रियां प्रोफेशनल मानी जाएंगी और कौन सी नहीं. इस फैसले ने कई छात्रों, अमेरिका के साथ-साथ भारतीय छात्रों को लिए भी चिंता करने का विषय बन गया है और इसका सीधा असर उनके शिक्षा पर पड़ सकता है. फिलहाल अभी तक भारतीयों छात्रों पर लेकर इसपर कोई अधिकारिक पुष्टी नहीं आया है कि क्या इससे भारतीय छात्रों पर क्या असर होगा.
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