शेख हसीना को मौत की सजा, बांग्लादेश में किसी महिला को नहीं मिली फांसी, भारत पर बढ़ा दवाब!

Sheikh Hasina Death Sentence: शेख हसीना को बांग्लादेश की ICT कोर्ट से मिली मौत की सजा के बाद भारत से प्रत्यर्पण की मांग तेज हो गई है. लेकिन भारत के पास कई कानूनी आधार हैं, जिनसे वह हसीना को सौंपने से इनकार कर सकता है. बांग्लादेश के कानून में महिलाओं को फांसी की सजा का प्रावधान है, लेकिन आज तक ऐसी कोई घटना नहीं हुई है.

By Govind Jee | November 18, 2025 2:44 PM

Sheikh Hasina Death Sentence: बांग्लादेश इस समय राजनीति और कानून दोनों के उलझे हुए मोड़ पर खड़ा है. एक तरफ अपदस्थ प्रधानमंत्री शेख हसीना को इंटरनेशनल क्राइम्स ट्रिब्यूनल (ICT) ने “मानवता के खिलाफ अपराध” में मौत की सजा दे दी है. दूसरी तरफ बांग्लादेश की अंतरिम सरकार भारत पर दबाव डाल रही है कि वह उन्हें सौंप दें. लेकिन असली कहानी इससे कहीं ज्यादा जटिल है क्योंकि बांग्लादेश के इतिहास में आज तक किसी महिला को फांसी नहीं दी गई और भारत के पास इस प्रत्यर्पण से बचने के कई कानूनी रास्ते मौजूद हैं. यह पूरा मामला राजनीति, कानून और कूटनीति तीनों को मिलाकर एक बड़ी भूचाल जैसी स्थिति बनाता है.

ICT के फैसले पर शेख हसीना का बड़ा आरोप- ‘फैसला पहले से तय था’

फैसले के बाद शेख हसीना ने साफ शब्दों में ICT पर हमला बोला. उन्होंने कहा कि यह पूरा फैसला “धांधली”, “पक्षपात” और “राजनीतिक बदला” है. हसीना के अनुसार, 2024 के अगस्त में हुए छात्र विरोध प्रदर्शन को बहाना बनाकर उन्हें निशाना बनाया गया. उन्होंने कहा कि ट्रिब्यूनल एक गैर-निर्वाचित सरकार के नियंत्रण में है, जिसका कोई जनादेश नहीं है. हसीना ने यह भी माना कि उस समय सरकार स्थिति संभाल नहीं पाई थी, लेकिन उन्होंने कहा कि इसे किसी भी हाल में “पहले से सोचा-समझा हमला” नहीं कहा जा सकता. उन्होंने अपने कार्यकाल की उपलब्धियां भी गिनाईं जैसे कि ICC में शामिल होना, रोहिंग्या शरणार्थियों को जगह देना, बिजली और शिक्षा में सुधार तथा लाखों लोगों को गरीबी से बाहर निकालना.

अंतरिम सरकार की दलील- ‘कानून के सामने कोई भी बड़ा नहीं

इधर, बांग्लादेश की अंतरिम सरकार इस फैसले को “ऐतिहासिक” बता रही है. डेली स्टार के अनुसार, अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस ने कहा कि यह फैसला 2024 के आंदोलन में प्रभावित हजारों लोगों के लिए राहत की बात है. यूनुस का कहना है कि यह साबित करता है कि देश में कोई भी व्यक्ति कानून से ऊपर नहीं है. उन्होंने कहा कि युवाओं और बच्चों पर बल प्रयोग का आदेश लोकतंत्र और नागरिकों के भरोसे का उल्लंघन था. उनके अनुसार, बांग्लादेश अब कानून के राज और मानवाधिकारों को मजबूत करने की दिशा में आगे बढ़ेगा.

Sheikh Hasina Death Sentence in Hindi: क्या भारत को हसीना को लौटाना ही होगा?

बांग्लादेश ने भारत से आधिकारिक तौर पर शेख हसीना और पूर्व गृह मंत्री असदुज्जमान खान कमाल का प्रत्यर्पण मांगा है. यह अनुरोध 2013 की भारत-बांग्लादेश प्रत्यर्पण संधि के तहत किया गया है. लेकिन सवाल यह है कि क्या भारत कानूनी तौर पर बाध्य है उन्हें सौंपने के लिए? इसका सीधा जवाब है नहीं. डुअल क्रिमिनैलिटी का नियम भारत कह सकता है कि अपराध हमारे कानून में नहीं बनता

संधि के Article 1 और 2 के अनुसार, किसी व्यक्ति को तभी सौंपा जा सकता है, जब उसका अपराध दोनों देशों में अपराध माना जाता हो. बांग्लादेश हसीना पर “क्राइम अगेंस्ट ह्यूमैनिटी” का आरोप लगा रहा है, लेकिन भारत ऐसे आरोपों को अंतरराष्ट्रीय मामलों में मानता है, घरेलू राजनीतिक घटनाओं में नहीं. यानी भारत यह कह सकता है कि यह अपराध भारतीय कानून के तहत नहीं बनता.

राजनीतिक मामला होने पर प्रत्यर्पण रोका जा सकता है

संधि का Article 6(1) साफ कहता है कि अगर मामला “राजनीतिक” लगे, तो भारत सीधे मना कर सकता है. मौजूदा हालात में यह है कि हसीना को सत्ता से बेदखल किया गया, अंतरिम सरकार की वैधता पर सवाल हैं और ICT पर “एक साल में फास्ट-ट्रैक फैसला” होने का आरोप है. ये सब इसे राजनीतिक मामला साबित करते हैं. यूनुस सरकार Article 6(2) का सहारा ले सकती है, पर उन्हें साबित करना होगा कि आरोप सद्भावना में लगाए गए हैं. जो मौजूदा स्थिति में बेहद कठिन है.

अंतरराष्ट्रीय मंच पर कोई हस्तक्षेप नहीं 

यह संधि पूरी तरह द्विपक्षीय है. इसलिए UN इसमें दखल नहीं देगा. इंटरनेशनल कोर्ट ऑफ जस्टिस (ICJ) तभी सुनवाई करेगा जब दोनों देश सहमत हों. यानी मामला पूरी तरह भारत और बांग्लादेश के बीच का है. भारत का Extradition Act 1962 भी देता है छूट. भारत का कानून कहता है कि अगर मामला राजनीतिक है, अगर आरोपी की निष्पक्ष सुनवाई की गारंटी नहीं, या अगर आरोप संदिग्ध हों तो भारत किसी को प्रत्यर्पित करने के लिए मजबूर नहीं है. इसलिए भारत के पास पूरी कानूनी गुंजाइश है कि वह हसीना को न सौंपे.

बांग्लादेश में महिलाओं की फांसी का कानून में प्रावधान है, लेकिन आज तक एक भी घटना नहीं

बांग्लादेशी न्यूज प्लेटफॉर्म व्यूज बांग्लादेश और अन्य चैनलों के अनुसार 17 नवंबर तक देश में 2,594 मौत की सजा पाए कैदी हैं. इनमें 94 महिलाएं भी शामिल हैं. लेकिन 54 साल में किसी महिला को फांसी नहीं दी गई. IG प्रिजन्स ब्रिगेडियर जनरल सैयद मोहताेर हुसैन ने बताया कि महिला कैदियों के लिए अलग सेल होता है, लेकिन अभी तक किसी महिला की फांसी लागू नहीं हुई. पूर्व DIG शमसुल हायदर सिद्दीकी का कहना है कि कानून में ऐसी कोई छूट नहीं कि महिलाओं को फांसी नहीं दी जा सकती बस किसी महिला का मामला कानूनी प्रक्रिया पूरी करके फांसी तक पहुंचा ही नहीं. इन 94 महिला कैदियों में सबसे ज्यादा 54 महिलाएं काशिंपुर वीमेंस सेंट्रल जेल में बंद हैं.

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