Nepal Violence: नेपाल में किसने लगाई आग? अमेरिका या चीन
Nepal Violence: नेपाल में सोशल मीडिया प्रतिबंध से शुरू हुआ विरोध अब बड़े राजनीतिक संकट में बदल गया है. पीएम केपी शर्मा ओली ने इस्तीफा दे दिया. संसद और सुप्रीम कोर्ट तक में आगजनी हुई. हालात पर विदेशी दखल की आशंका और श्रीलंका-बांग्लादेश जैसी तस्वीरें उभर रही हैं.
Nepal Violence: भारत के पड़ोसी देशों में बीते तीन वर्षों के भीतर बड़े राजनीतिक और आर्थिक बदलाव देखने को मिले हैं. पाकिस्तान के प्रधानमंत्री इमरान खान की सत्ता से बेदखली से शुरू हुआ यह सिलसिला श्रीलंका के आर्थिक संकट और राष्ट्रपति गोटबाया राजपक्षे के देश छोड़ने तक जा पहुंचा. इसके बाद बांग्लादेश में सत्ता परिवर्तन ने दक्षिण एशिया की राजनीति को हिला दिया. अब इस कड़ी में नेपाल भी शामिल हो गया है.
नेपाल के प्रधानमंत्री केपी शर्मा ओली ने सोमवार को अपने पद से इस्तीफा दे दिया. यह कदम उस समय उठाया गया जब देशभर में ‘जेन-जी विरोध प्रदर्शनों’ ने हिंसक रूप ले लिया. प्रदर्शनकारियों ने राजधानी काठमांडू समेत कई शहरों में सांसदों और मंत्रियों के घरों पर हमला किया, सरकारी भवनों को आग के हवाले कर दिया. संसद भवन और सुप्रीम कोर्ट तक को प्रदर्शनकारियों ने नहीं छोड़ा.
कैसे शुरू हुआ विरोध? ( Nepal Violence)
नेपाल में यह विरोध सबसे पहले सरकार द्वारा सोशल मीडिया पर लगाए गए प्रतिबंध के खिलाफ शुरू हुआ. हालांकि प्रदर्शनकारियों का दावा है कि असली वजह लंबे समय से जारी भ्रष्टाचार और भाई-भतीजावाद है. उनका आरोप है कि नेताओं और अफसरों के परिवारों को ही सारे संसाधन और अवसर मिलते हैं, जबकि आम जनता को हक से वंचित किया जा रहा है. न्यायपालिका पर भी सरकार का दबाव होने के आरोप लगाए गए. ओली सरकार ने सोमवार रात सोशल मीडिया पर से प्रतिबंध हटा लिया, लेकिन तब तक हालात काबू से बाहर हो चुके थे.
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विदेशी ताकतों की भूमिका? (GEN Z Protest)
नेपाल की मौजूदा उथल-पुथल को लेकर सवाल उठ रहे हैं कि क्या यह केवल सोशल मीडिया प्रतिबंध की वजह से हुआ या फिर इसमें बाहरी ताकतों की भी भूमिका है. नेपाल लंबे समय से चीन और अमेरिका के बीच रस्साकशी का मैदान बना हुआ है. अधिकांश सरकारें चीन समर्थक रही हैं, जबकि अमेरिका लगातार दबाव डालता रहा है. ओली को भी चीन समर्थक नेता माना जाता है. वह हाल ही में बीजिंग की सैन्य परेड और एससीओ शिखर सम्मेलन में शामिल हुए थे.
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बांग्लादेश और श्रीलंका का दोहराव (GEN Z Protest)
विश्लेषकों का कहना है कि नेपाल में दिखा विरोध प्रदर्शन बांग्लादेश (2024) और श्रीलंका (2022) की याद दिलाता है. वहां भी भ्रष्टाचार और आर्थिक संकट से उपजे आंदोलनों ने सरकारों को गिरा दिया था. युवाओं के नेतृत्व में हुए इन प्रदर्शनों में नेताओं के घरों में तोड़फोड़ और आगजनी हुई थी. ठीक वैसी ही तस्वीरें अब नेपाल से भी सामने आ रही हैं. नेपाल का यह संकट न सिर्फ उसकी आंतरिक राजनीति बल्कि पूरे दक्षिण एशिया के भू-राजनीतिक समीकरणों को प्रभावित कर सकता है. अब नजरें इस बात पर हैं कि ओली के इस्तीफे के बाद सत्ता का संतुलन किसके हाथ में जाता है और पड़ोसी ताकतें अमेरिका और चीन इस स्थिति को किस तरह भुनाती हैं.
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