कटोरा लिए पाकिस्तान पहुंचा ADB के दरवाजे, ‘आयरन ब्रदर’ ने दिखाई औकात, ML-1 का सपना चकनाचूर
Pakistan CPEC ML1 Project Shift To ADB: पाकिस्तान के लिए बड़ा मोड़, CPEC का अहम ML-1 प्रोजेक्ट अब चीन से हटकर ADB के पास, रेको डिक खदान से जुड़ी अहमियत और कूटनीतिक संतुलन पर नई बहस. जानिए क्यों यह फैसला पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और विदेश नीति की दिशा तय करेगा.
Pakistan CPEC ML1 Project Shift To ADB: हाल ही में चीन के तियानजिन में शंघाई सहयोग संगठन (SCO) का शिखर सम्मेलन आयोजित हुआ. दो दिवसीय इस समिट में गैर-पश्चिमी देशों के 20 से अधिक नेताओं ने हिस्सा लिया. इसे बीजिंग की उस महत्वाकांक्षा के रूप में देखा गया, जिसके तहत वह एक नई वैश्विक सुरक्षा और आर्थिक व्यवस्था खड़ी करना चाहता है. सम्मेलन से ठीक पहले चीनी विदेश मंत्री वांग यी भारत दौरे पर थे. इसी दौरान यह संकेत मिला कि चीन ने भारत को उर्वरक, रेयर अर्थ मैग्नेटिक खनिज और सुरंग खोदने वाली मशीनों के निर्यात पर लगाया गया प्रतिबंध हटा लिया है. इसे दोनों देशों के बीच रिश्तों में नरमी की दिशा में अहम कदम माना जा रहा है.
दूसरी ओर, पाकिस्तान के लिए रेल नेटवर्क का आधुनिकीकरण अंतरराष्ट्रीय राजनीति का नया विषय बन गया है. मेन लाइन-1 (ML-1) प्रोजेक्ट, जिसे कभी चीन-पाकिस्तान इकोनॉमिक कॉरिडोर (CPEC) का सबसे बड़ा और महत्वाकांक्षी हिस्सा बताया जाता था, अब एशियन डेवलपमेंट बैंक (ADB) के हाथों में जा रहा है. चीन के पीछे हटने के बाद पाकिस्तान ने ADB से कराची–रोहड़ी सेक्शन के आधुनिकीकरण के लिए करीब 2 अरब डॉलर का कर्ज मांगा है. पाकिस्तान अक्सर चीन के साथ “करीबी रिश्तों” का दावा करता रहा है, लेकिन ML-1 प्रोजेक्ट में आए इस बदलाव ने दोनों देशों के बीच बदलते समीकरणों को उजागर कर दिया है. एक तरफ चीन अंतरराष्ट्रीय मंचों पर अपनी ताकत दिखा रहा है, वहीं दूसरी तरफ पाकिस्तान को अपने बुनियादी ढांचे के विकास के लिए अब नए साझेदारों की तलाश करनी पड़ रही है.
Pakistan CPEC ML1 Project Shift To ADB: CPEC से अलग राह क्यों?
2015 में CPEC की शुरुआत के वक्त चीन ने पाकिस्तान में ऊर्जा और परिवहन ढांचे पर करीब 60 अरब डॉलर निवेश का वादा किया था. इनमें कराची से पेशावर तक फैली 1,800 किलोमीटर लंबी ML-1 रेलवे लाइन का आधुनिकीकरण सबसे अहम हिस्सा था. लेकिन लगभग एक दशक की बातचीत के बाद भी फंडिंग आगे नहीं बढ़ पाई. बीजिंग के पीछे हटने की मुख्य वजह पाकिस्तान की कमजोर आर्थिक स्थिति और कर्ज चुकाने की क्षमता पर संदेह रहा. खासकर ऊर्जा क्षेत्र में चीनी कंपनियों के बकाया भुगतान ने भरोसा और घटा दिया.
ईटी के अनुसार, चीन अब बेल्ट ऐंड रोड इनिशिएटिव (BRI) के प्रोजेक्ट्स में अधिक सतर्क हो गया है. अपनी धीमी अर्थव्यवस्था और बढ़ते वैश्विक जोखिमों के चलते बीजिंग ऐसे देशों में बड़े इंफ्रास्ट्रक्चर निवेश से पीछे हट रहा है जहां कर्ज वापसी की संभावना कमजोर हो. पाकिस्तान, जो लगातार IMF बेलआउट पर निर्भर रहा है, इस श्रेणी में आता है.
वित्तीय और भू-राजनीतिक असर
CPEC से चीन का पीछे हटना पाकिस्तान के लिए सिर्फ आर्थिक नहीं बल्कि भू-राजनीतिक झटका भी है. “आयरन ब्रदरहुड” वाली दोस्ती तब कमजोर पड़ती दिखी जब मामला अरबों डॉलर की फंडिंग का आया. 2015 से 2019 तक पाकिस्तान में हाइवे, पावर प्लांट और पोर्ट जैसे कई प्रोजेक्ट बने. लेकिन 2022 में ग्वादर ईस्ट बे एक्सप्रेसवे के बाद प्रगति रुक गई. अब ML-1 में ADB की भागीदारी पाकिस्तान के भविष्य की दिशा तय करेगी.
China Exit Reko Diq Impact: रेको डिक खदान से जुड़ी अहमियत
बलूचिस्तान की रेको डिक कॉपर-गोल्ड माइन पाकिस्तान के लिए संभावित गेम-चेंजर मानी जा रही है. कनाडाई कंपनी बैरिक गोल्ड के साथ मिलकर विकसित हो रही यह खदान दुनिया की सबसे बड़ी अप्रयुक्त खनिज संपदाओं में से एक है. लेकिन यहां से निकले खनिज को बंदरगाह तक पहुंचाने के लिए आधुनिक रेल ढांचा जरूरी है. मौजूदा लाइनें इस दबाव को झेलने में सक्षम नहीं हैं. इसी वजह से ADB ने ML-1 के साथ-साथ रेको डिक से जुड़ी परियोजनाओं के लिए 410 मिलियन डॉलर देने का वादा किया है.
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कूटनीति में संतुलन की कोशिश
ADB जैसे पश्चिम समर्थित संस्थान से मदद लेना पाकिस्तान के लिए संवेदनशील कदम था. रॉयटर्स की रिपोर्ट के मुताबिक, इस फैसले पर चीन से पहले ही सहमति ली गई ताकि रिश्तों में तनाव न आए. पाकिस्तान सेना प्रमुख असीम मुनीर ने हाल ही में कहा कि हम एक दोस्त के लिए दूसरे को कुर्बान नहीं करेंगे. यह बयान पाकिस्तान की उस रणनीति को दर्शाता है जिसमें वह चीन और पश्चिम दोनों के साथ संतुलन साधना चाहता है. अमेरिका भी पाकिस्तान की खनिज संपदा में रुचि दिखा रहा है. अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप तक ने रेको डिक जैसी संपदाओं को लेकर दिलचस्पी जताई थी.
भारत-चीन संबंध और SCO का संकेत
भारत और चीन ने हाल में तनाव कम करने के कुछ कदम उठाए हैं—सीधी उड़ानों की बहाली, वीजा पाबंदियों में ढील और व्यापार को प्रोत्साहन. SCO समिट में प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और राष्ट्रपति शी जिनपिंग ने संदेश दिया कि भारत और चीन “डेवलपमेंट पार्टनर हैं, प्रतिद्वंदी नहीं.” हालांकि इसका पाकिस्तान की बुनियादी ढांचा परियोजनाओं पर कोई सीधा असर नहीं दिखा. भारत लगातार CPEC परियोजनाओं का विरोध करता रहा है. कारण यह है कि यह गलियारा पाकिस्तान अधिकृत कश्मीर (PoK) से होकर गुजरता है. नई दिल्ली ने इन्हें “अस्वीकार्य” करार दिया है और इन पर सख्ती से निगरानी रखने का ऐलान भी किया है.
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आगे की राह
ML-1 जैसे प्रोजेक्ट में ADB की भागीदारी पाकिस्तान के लिए नई राह खोल सकती है. इससे उसकी वित्तीय निर्भरता विविध होगी और कूटनीतिक संतुलन साधने का मौका भी मिलेगा. हालांकि, अमेरिका-चीन तनाव और भारत-चीन संबंधों में उतार-चढ़ाव के बीच पाकिस्तान के लिए यह राह आसान नहीं होगी. फिर भी, अगर रणनीति सफल रही तो यह पाकिस्तान की अर्थव्यवस्था और बुनियादी ढांचे को नई दिशा दे सकती है.
