आसिम मुनीर के साथ होने वाला है खेल! शरीफ भाइयों और एयरफोर्स चीफ के बीच पक रही खिचड़ी, कौन बनेगा CDF?
Pakistan CDF tussle: पाकिस्तान में इन दिनों सत्ता के शीर्ष पर पहुंचने का नया खेल चल रहा है. 27वें संविधान संशोधन के बाद आसिम मुनीर देश के पहले CDF बन सकते हैं, लेकिन इसके लिए सरकार को नोटिफिकेशन जारी करना पड़ेगा और शहबाज शासन इसी में देरी कर रहा है. इसी बीच पाक एयर चीफ मार्शल जहीर अहमद बाबर सिद्धू की मुलाकात ने नवाज शरीफ से मुलाकात करके एक नया दांव चल दिया है.
Pakistan CDF tussle: पाकिस्तान इन दिनों जिस भारी राजनीतिक और सैन्य उथल-पुथल से गुजर रहा है, वह सिर्फ एक नए रक्षा प्रमुख (CDF) की नियुक्ति का मसला नहीं है. असल कहानी इससे कहीं ज्यादा गहरी लग रही है. यह पाकिस्तान में सत्ता के पूर्ण रीसेट की तैयारी लग रही है, जिसमें आसिम मुनीर, शहबाज शरीफ, नवाज शरीफ, इस्लामाबाद, रावलपिंडी और सेना के शीर्ष अधिकारी अपनी-अपनी चालें चल रहे हैं.
पाकिस्तान में बीते 12 नवंबर को 27वां संविधान संशोधन विधेयक पारित किया गया. इससे ऐसा पद निकला, जिसे चीफ ऑफ डिफेंस फोर्सेज (CDF) कहा गया, जो एक तरह से पाकिस्तान का सर्वोच्च पद हो गया. इस पद पर पाकिस्तान के वर्तमान आर्मी चीफ आसिम मुनीर को दिया जाना तय लग रहा है. लेकिन इस विधेयक को पास हुए 20 से ज्यादा दिन बीत गए हैं. इसके नोटिफिकेशन पर अब तक प्रधानमंत्री ने साइन नहीं किया है. उनके पद विस्तार का नोटिफिकेशन भी जारी नहीं हुआ है, जबकि 5 दिन बीत गए. इसके साथ ही एयर चीफ मार्शल जहीर अहमद बाबर सिद्धू ने मुनीर के CDF बनने का खुलकर विरोध कर दिया है. यह पाकिस्तान की सियासत और सत्ता के खेल का एक और पक्ष सामने आ रहा है.
न नोटिफिकेशन न सिग्रेनचर की उम्मीद
पाकिस्तान की संसद ने 12 नवंबर को कानून में बदलाव कर यह नया पद बनाया था ताकि आर्मी चीफ को और शक्तियाँ दी जा सकें. अगर नोटिफिकेशन समय पर जारी हो जाता, तो आसिम मुनीर को देश के परमाणु हथियारों पर भी सीधा नियंत्रण मिल जाता और वे पाकिस्तान के सबसे प्रभावशाली व्यक्ति बन जाते. लेकिन प्रधानमंत्री शहबाज शरीफ ने अभी तक इस दस्तावेज पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं. नोटिफिकेशन जारी होते ही मुनीर तीनों सेनाओं थल, वायु और नौसेना के सर्वोच्च सैन्य कमांडर बन जाते.
आसिम मुनीर को मिला 3 साल का सेवा विस्तार वैसे 5 साल का कर दिया गया है, ऐसे में उनकी कुर्सी तो सेफ है. लेकिन नोटिफिकेशन जारी करने से एक दिन पहले उससे पहले 26 नवंबर को शहबाज शरीफ बहरीन गए थे और अगले दिन अचानक लंदन के लिए रवाना हो गए. 1 दिसंबर को उनकी वतन वापसी होनी थी, मगर उनकी मौजूदगी को लेकर अब तक कोई आधिकारिक जानकारी नहीं दी गई है. हालांकि सूचना आई कि वे पाकिस्तान लौट आए हैं, लेकिन उनका जहाज सत्ता केंद्र वाले स्थान पर नहीं उतरा. कई मीडिया रिपोर्ट्स में दावा है कि शहबाज शरीफ ने जानबूझकर खुद को इस प्रक्रिया से दूर कर लिया ताकि उन्हें मुनीर की नई नियुक्ति पर साइन करने की बाध्यता न रहे.
असली लड़ाई एक पद की नहीं, पूरे ‘कमांड स्ट्रक्चर’ की
सेना प्रमुख फील्ड मार्शल असीम मुनीर के कार्यकाल खत्म होने के बाद उम्मीद थी कि उन्हें CDF बना दिया जाएगा. संविधान को इसी साल संशोधित करके यह रास्ता तैयार भी कर दिया गया था. लेकिन पाँच दिन तक खामोशी छाई रही ना सरकार कोई घोषणा कर रही और ना ही GHQ से कोई संकेत आया. यहीं से खेल में ट्विस्ट आया. पूर्व सैन्य अधिकारी आदिल राजा के अनुसार, एयरफोर्स चीफ मार्शल जहीर अहमद बाबर सिद्धू ने सीधे नवाज शरीफ से मुलाकात कर खुद को CDF बनाने का दावा पेश किया. उन्होंने वही तर्क दिया, जिसे असीम मुनीर ने अपने पक्ष में इस्तेमाल किया था. भारत के साथ मई में हुई झड़प के दौरान पाकिस्तान की सैन्य सफलता एयरफोर्स के नेतृत्व और क्षमता से जुड़ी थी. अर्थात मुनीर का कार्ड, मुनीर के खिलाफ इस्तेमाल.
नवाज-सिद्धू निकटता: ‘पंजाब फैक्टर’ भी खेल में
शहबाज शरीफ CDF नियुक्ति का नोटिफिकेशन साइन करने से पहले अचानक लंदन चले गए. यह संकेत देता है कि CDF की कुर्सी पर कौन बैठेगा, यह फैसला कहीं और यानी लंदन में लिखा जा रहा है. सूत्रों की मानें तो नवाज के दिमाग में यह विकल्प भी तैर रहा है कि क्या CDF सिर्फ आर्मी से होना चाहिए? या क्या अब पाकिस्तान में एक ट्राई-फोर्स मॉडल लाने का समय है? इसी सवाल ने पूरे पावर स्ट्रक्चर को अनिश्चितता में डाल दिया है. पाकिस्तान के पूर्व सैनिक आदिल राजा दावा करते हैं कि सिद्धू के परिवार का पीएमएल-एन से पुराना नाता है. पंजाब चुनाव में उनके छोटे भाई को PML-N टिकट देकर जिताया गया था. इससे सिद्धू, नवाज कैंप के ‘नेचुरल चॉइस’ के रूप में देखे जा रहे हैं. क्या नवाज अपने भरोसेमंद चेहरे को CDF बनाकर रावलपिंडी की परंपरागत सत्ता संरचना को बदलने की तैयारी में हैं?
मुनीर का संकट: पावरफुल जनरल से चारों ओर घिरी कुर्सी
मुनीर का कार्यकाल पहले ही तीन से बढ़ाकर पाँच साल किया जा चुका है, इसलिए उनकी वर्तमान स्थिति सुरक्षित है, लेकिन CDF बनते ही उनकी अवधि 2030 तक बढ़ जाती. रक्षा मंत्री ख्वाजा आसिफ का कहना है कि CDF नियुक्ति की प्रक्रिया शुरू कर दी गई है और शहबाज शरीफ के इस्लामाबाद लौटते ही नोटिफिकेशन को अंतिम रूप दिया जाएगा. वहीं असीम मुनीर के पास अभी भी पाकिस्तान सेना का सबसे मजबूत संस्थागत सपोर्ट है. अगर उन्हें CDF बनाया जाता है, तो वे जीवनभर फील्ड मार्शल की उपाधि रखेंगे, तीनों सेनाओं पर निर्णय ले सकेंगे और उनके खिलाफ कभी कानूनी कार्रवाई नहीं हो सकेगी यानी संवैधानिक तानाशाह की स्थिति. लेकिन सिद्धू का विद्रोह और नवाज की चुप्पी बता रही है कि रास्ता इतना आसान नहीं रहने वाला.
एयरफोर्स से मिल रही तगड़ी चुनौती यानी चीफ vs चीफ
कई विश्लेषकों का कहना है कि CDF नियुक्ति में हो रही देरी यह दिखाती है कि सत्ता के ऊपरी स्तरों पर अभी भी गंभीर मतभेद बने हुए हैं. कानूनी विशेषज्ञों के अनुसार, जब तक औपचारिक आदेश जारी नहीं होता, तकनीकी रूप से यह स्थिति बनती है कि आसिम मुनीर का आर्मी चीफ के रूप में तीन साल का मूल कार्यकाल पूरा हो चुका है. संविधान संशोधन के बाद CJCSC का पुराना पद 27 नवंबर को खत्म हो गया और उसी दिन शाहिद शमशाद मिर्जा रिटायर भी हो गए, लेकिन उनकी जगह नया CDF अभी तक नियुक्त नहीं हो पाया है, जबकि 28 या 29 नवंबर तक यह कदम उठाया जाना जरूरी था. पाक मीडिया के अनुसार मिर्जा के रिटायरमेंट प्रोग्राम में भी इस बात पर प्रश्न उठाया गया था कि सीडीएफ का पोस्ट केवल आर्मी से ही क्यों होना चाहिए.
अब दिखने वाली तस्वीर बहुत साफ है- आर्मी चीफ मुनीर सत्ता संरचना को अपने नियंत्रण में रखना चाहते हैं. एयर चीफ सिद्धू पहली बार एयरफोर्स को सर्वोच्च भूमिका देने की कोशिश कर रहे हैं. नवाज शरीफ शायद इस टकराव का फायदा उठाकर CDF पद को अपने हिसाब से री-डिफाइन करना चाहते हैं. इस तरह पाकिस्तान में पहली बार सैन्य नेतृत्व के भीतर ओपन कॉम्पटीशन दिख रहा है.
पाकिस्तान ‘डुअल पावर सेंटर’ की ओर बढ़ रहा है
27वें संशोधन का सबसे अहम पहलू यह है कि नेशनल स्ट्रैटेजिक कमांड (NSC) का गठन किया गया है. यह संस्था अब पाकिस्तान के परमाणु हथियारों और मिसाइल कार्यक्रम की पूरी निगरानी और कमांड संभालेगी. पहले यह जिम्मेदारी नेशनल कमांड अथॉरिटी (NCA) के पास थी, जिसकी अध्यक्षता प्रधानमंत्री करते थे. लेकिन अब यह अधिकार NSC को दे दिया गया है. NSC के प्रमुख की नियुक्ति भले ही प्रधानमंत्री की मंजूरी से होगी, लेकिन नाम CDF की सिफारिश पर ही तय किया जाएगा. और यह पद सिर्फ आर्मी के वरिष्ठ अधिकारी को ही मिलेगा. यानी भविष्य में पाकिस्तान के परमाणु हथियारों पर संपूर्ण नियंत्रण सेना के हाथों में केंद्रीकृत हो जाएगा. ऐसे में अगर सिद्धू को CDF बनाने की बात आगे बढ़ती है, तो संविधान में फिर संशोधन करना पड़ेगा. यानी पाकिस्तान के इतिहास में सत्ता संतुलन का सबसे बड़ा रीसेट आज नहीं तो कल होगा, क्योंकि इस पद को केवल आर्मी से आना तय किया गया है.
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