इस देश में डिमेंशिया ने मचाया कहर! बुजुर्ग घर का रास्ता भूल रहे, सरकार रोबोट और टेक्नोलॉजी से बचाव में लगी

Japan Dementia Crisis: जापान में डिमेंशिया से ग्रस्त बुजुर्ग घर से भटकने लगे हैं. सरकार और समुदाय ने GPS, AI और रोबोट्स की मदद से संकट कम करने की कोशिश की है. छोटे रोबोट, ह्यूमनॉइड केयरगिवर और सामाजिक हस्तक्षेप मिलकर बुजुर्गों की सुरक्षा, सक्रियता और भावनात्मक सहयोग सुनिश्चित करते हैं. तकनीक और मानव जुड़ाव दोनों जरूरी हैं.

By Govind Jee | December 7, 2025 3:17 PM

Japan Dementia Crisis: जापान दुनिया का सबसे उम्रदराज देश, अब एक नई चुनौती का सामना कर रहा है. हर साल हजारों बुजुर्ग, जो डिमेंशिया जैसी बीमारी से ग्रस्त हैं, अपने घर से बाहर निकल जाते हैं और खो जाते हैं. पिछले साल 18,000 से ज्यादा लोग भटक गए, जिनमें से लगभग 500 बाद में मृत पाए गए. पुलिस का कहना है कि ऐसे मामले 2012 के बाद दोगुने हो गए हैं. बुजुर्गों की बढ़ती संख्या, काम करने वाले लोगों की कमी और विदेशी देखभाल कर्मचारियों की सख्त सीमाओं ने इसे और भी गंभीर बना दिया है. जापानी सरकार ने डिमेंशिया को अपनी सबसे बड़ी नीतिगत चुनौतियों में से एक मान लिया है. स्वास्थ्य मंत्रालय का अनुमान है कि 2030 तक डिमेंशिया से जुड़ी स्वास्थ्य और सामाजिक देखभाल की लागत 14 ट्रिलियन येन ($90 अरब) तक पहुंच जाएगी, जो 2025 में 9 ट्रिलियन येन थी. इस संकट को कम करने के लिए सरकार ने नई रणनीति बनाई है, जिसमें तकनीक का इस्तेमाल बढ़ाने की बात कही गई है.

Japan Dementia Crisis in Hindi: देशभर में GPS आधारित सिस्टम अपनाए जा रहे हैं

देशभर में GPS आधारित सिस्टम अपनाए जा रहे हैं. कुछ इलाके पहनने योग्य GPS टैग देते हैं, जो जैसे ही कोई तय सीमा से बाहर जाता है, अधिकारियों को तुरंत सूचित कर देते हैं. कई शहरों में कॉन्वीनियंस स्टोर के कर्मचारी भी रीयल-टाइम नोटिफिकेशन पाते हैं. यह एक तरह का सामुदायिक सुरक्षा जाल है, जिससे भटक गए बुजुर्गों को कुछ घंटों में ढूंढा जा सकता है. डिमेंशिया की शुरुआती पहचान के लिए तकनीक का इस्तेमाल भी हो रहा है. फुजित्सु का फुजित्सु एआईगेट एआई के जरिए चलने की मुद्रा और पैटर्न का विश्लेषण करता है. यह डिमेंशिया के शुरुआती संकेत पकड़ता है, जैसे धीरे-धीरे चलना या खड़े होने में कठिनाई और डॉक्टरों को स्केलेटल आउटलाइन देता है. 

भविष्य के ह्यूमनॉइड रोबोट 

वासेडा विश्वविद्यालय के शोधकर्ता AIREC, 150 किलो का ह्यूमनॉइड रोबोट बना रहे हैं. यह मोजे पहनने, अंडे फेंटने और कपड़े तह करने में मदद कर सकता है. भविष्य में इसे डायपर बदलने और बिस्तर के घाव रोकने जैसे काम के लिए भी तैयार किया जाएगा. पहले से ही कई रोबोट केयर होम में संगीत बजाने, हल्के व्यायाम में मार्गदर्शन और रात में मरीजों की निगरानी के लिए इस्तेमाल हो रहे हैं. Assistant Professor Tamon Miyake के अनुसार, इन रोबोट्स का इंसानों के साथ सुरक्षित इंटरैक्शन करने में कम से कम पांच साल लगेंगे.

छोटे रोबोट और भावनात्मक सहयोग

छोटे रोबोट भी अकेले रहने वाले बुजुर्गों की मदद कर रहे हैं. Poketomo, 12cm का रोबोट, बैग या पॉकेट में रखा जा सकता है. यह दवा लेने की याद दिलाता है, मौसम की जानकारी देता है और बातचीत कर सामाजिक अलगाव को कम करता है. टोक्यो के Sengawa में Restaurant of Mistaken Orders इसका बेहतरीन उदाहरण है. यहां डिमेंशिया से ग्रस्त लोग ग्राहकों को सर्व करते हैं. इसके संस्थापक Akiko Kanna, अपने पिता के अनुभव से प्रेरित हैं. Toshio Morita, एक सर्वर, फूलों की मदद से याद रखते हैं कि किस टेबल ने क्या ऑर्डर किया. उनके लिए यह काम मजेदार और सक्रिय रखने वाला है. उनके पत्नी के लिए यह एक राहत का जरिया भी है. काना का कैफे दिखाता है कि तकनीक मदद तो कर सकती है, लेकिन असली सहयोग और इंसानी जुड़ाव ही लोगों को जीवंत और खुश रख सकता है. 

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