‘बैटल ऑफ बेगम्स’ खत्म, एक सत्ता दूसरी दुनिया से दूर, जानें ‘दोस्तों में दुश्मनी’ कैसे हुई? खालिदा की मौत पर क्या बोलीं हसीना?
Battle of Begums Khaleda Zia Sheikh Hasina: बांग्लादेश में शेख हसीना और खालिदा जिया की राजनीतिक लड़ाई को ‘बैटल ऑफ बेगम्स’ नाम दिया गया था. कभी साथ मिलकर दोनों दोस्तों ने लोकतंत्र बहाल करवाया था, लेकिन बाद में दुश्मनी इतनी गहरी हुई कि इलाज के लिए भी एक ने दूसरे पर रहम नहीं किया. अब वक्त की ऐसी मार पड़ी कि एक सत्ता से दूर हैं, तो दूसरी दुनिया से रुखसत हो गई हैं.
Battle of Begums Khaleda Zia Sheikh Hasina: बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया का 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया. खालिदा जिया तीन बार बांग्लादेश की प्रधानमंत्री रहीं. ढाका के एवरकेयर अस्पताल में इलाज के दौरान स्थानीय समयानुसार सुबह करीब 6 बजे उन्होंने अंतिम सांस ली. बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री रहीं बेगम खालिदा जिया के निधन के बाद पूरे देश में शोक की लहर है. अंतरिम सरकार के प्रमुख मोहम्मद यूनुस के साथ-साथ उनकी लंबे समय तक राजनीतिक प्रतिद्वंद्वी रहीं शेख हसीना ने भी उनके निधन पर दुख जताया है. बांग्लादेश की राजनीति में दोनों नेताओं की लड़ाई को ‘बैटल ऑफ बेगम्स’ नाम दिया गया था. ये दोनों महिलाएं दशकों तक केंद्रीय भूमिका में रहीं. देश ने उनके बीच कभी सहयोग तो कभी तीखी दुश्मनी के दौर भी देखे. आज, जब इनमें से एक का जीवन समाप्त हो गया है, तब दूसरी ने सार्वजनिक रूप से उनके योगदान को स्वीकार किया है. उनके देहांत पर पूर्व प्रधानमंत्री शेख हसीना ने शोक व्यक्त करते हुए कहा कि देश के लिए उनका योगदान बेहद अहम रहा है.
अवामी लीग की ओर से जारी एक पोस्ट में शेख हसीना ने कहा, “मैं बीएनपी की चेयरपर्सन और पूर्व प्रधानमंत्री बेगम खालिदा जिया के निधन पर अपनी गहरी संवेदनाएं व्यक्त करती हूं. बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री होने के नाते और लोकतंत्र की स्थापना के संघर्ष में उनकी भूमिका के लिए देश में उनका योगदान महत्वपूर्ण रहा है और उसे हमेशा याद किया जाएगा. उनका निधन बांग्लादेश की राजनीतिक ज़िंदगी और बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी के नेतृत्व के लिए एक बड़ी क्षति है. मैं बेगम खालिदा जिया की आत्मा की शांति और मग़फिरत के लिए दुआ करती हूं. उनके बेटे तारिक रहमान और शोकाकुल परिवार के सभी सदस्यों के प्रति अपनी हार्दिक संवेदना व्यक्त करती हूं. साथ ही बीएनपी परिवार के प्रति भी मेरी संवेदनाएं हैं. मैं अल्लाह तआला से दुआ करती हूं कि वह उन्हें इस कठिन समय में सब्र, हिम्मत और संबल प्रदान करें.”
दोस्ती से दुश्मनी तक का सफर
आज भले ही शेख हसीना और खालिदा जिया को एक-दूसरे का सबसे बड़ा राजनीतिक विरोधी माना जाता हो, लेकिन एक समय ऐसा भी था, जब दोनों ने कंधे से कंधा मिलाकर सड़कों पर आंदोलन किया था. यह दौर सैन्य तानाशाह हुसैन मोहम्मद इरशाद के खिलाफ संघर्ष का था. 1981 में जियाउर रहमान की हत्या के बाद खालिदा जिया ने बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) की कमान संभाली और यहीं से दोनों नेताओं के बीच तीखी प्रतिद्वंदिता शुरू हुई. 1990 के दशक और 2000 के शुरुआती वर्षों में सत्ता बार-बार दोनों के बीच बदलती रही, लेकिन हर चुनाव के साथ राजनीतिक ध्रुवीकरण और गहराता गया. संसद का बहिष्कार, देशव्यापी हड़तालें, सड़क हिंसा और संस्थानों का राजनीतिक इस्तेमाल आम बात बन गया. इस टकराव ने लोकतांत्रिक ढांचे को कमजोर किया और देश लंबे समय तक अस्थिरता से जूझता रहा.
हालांकि 1980 के दशक के अंत में एक ऐसा दौर भी आया, जब शेख हसीना और खालिदा जिया ने सैन्य शासक हुसैन मोहम्मद इरशाद को हटाने के लिए एकजुट होकर आंदोलन किया. यह आंदोलन 1990 में चरम पर पहुंचा, जब लगातार प्रदर्शनों और छात्र आंदोलनों ने देश को लगभग ठप कर दिया. अंततः 6 दिसंबर 1990 को इरशाद को इस्तीफा देना पड़ा. यह बांग्लादेश के राजनीतिक इतिहास का एक निर्णायक क्षण था. दोनों बेगमों की यह अस्थायी एकता सैन्य शासन के अंत का कारण बनी.
लोकतंत्र की बहाली के लिए दोनों बेगमें एक ही मंच पर खड़ी थीं. उस समय शायद ही किसी ने सोचा होगा कि यही दो महिलाएं आगे चलकर बांग्लादेश की राजनीति को दो खेमों में बांट देंगी. इरशाद के पतन के बाद सत्ता की होड़ शुरू हुई और यहीं से उनकी दोस्ती धीरे-धीरे दुश्मनी में बदल गई. इसके बाद प्रतिशोध और टकराव की राजनीति ने फिर जोर पकड़ लिया. यह सिलसिला पिछले साल शेख हसीना के सत्ता से बाहर होने और अब खालिदा जिया के निधन के साथ समाप्त हो गया.
सत्ता ने रिश्तों को कैसे बदल दिया
1991 में खालिदा जिया पहली बार प्रधानमंत्री बनीं. उनके शासनकाल में शेख हसीना की अवामी लीग ने उन पर राजनीतिक प्रतिशोध की राजनीति करने के आरोप लगाए. खालिदा जिया का प्रधानमंत्री कार्यकाल 1991-96 और 2001-06 तक रहा. बीच में सत्ता बदली, जब 1996-2001 तक शेख हसीना की सरकार रही. इसके बाद का चुनाव वो हार गईं. इस दौरान उनकी जान लेने की भी कोशिश की गई. लेकिन 2000 में शेख हसीना सत्ता में लौटीं तो आरोपों की दिशा भी बदल गई. जब शेख हसीना सत्ता में आईं, तो बीएनपी ने दावा किया कि अब उनके नेताओं को निशाना बनाया जा रहा है. हसीना ने 2009 से 2014 तक शासन चलाया. समय के साथ बांग्लादेश की राजनीति वैचारिक बहस से हटकर व्यक्तिगत टकराव का मैदान बनती चली गई. संसद, सड़कें और अदालतें हर जगह संघर्ष की झलक दिखने लगी. राजनीति नीतियों से ज्यादा व्यक्तियों के इर्द-गिर्द घूमने लगी.
निजी त्रासदियों से राजनीति तक
दोनों बेगमों के राजनीतिक सफर की शुरुआत निजी दुखद घटनाओं से जुड़ी रही है. शेख हसीना ने अपने पिता शेख मुजीबुर रहमान को खोया, जिन्हें बांग्लादेश का राष्ट्रपिता माना जाता है. उनकी 1975 में एक सैन्य तख्तापलट के दौरान हत्या कर दी गई थी. उस हिंसक घटना में उनके परिवार के अधिकांश सदस्यों की भी जान चली गई. हसीना निर्वासन इसी दर्द के साथ राजनीति में लौटीं. दूसरी ओर, खालिदा जिया ने अपने पति जियाउर रहमान को एक सैन्य विद्रोह में खो दिया. सत्ता के शिखर से अचानक अकेलेपन तक का यह सफर उन्हें सक्रिय राजनीति में ले आया. इन दोनों के लिए राजनीति सिर्फ सत्ता हासिल करने का साधन नहीं रही, बल्कि न्याय और प्रतिशोध की भावना से भी जुड़ गई.
तल्ख हुए रिश्ते- इलाज के लिए भी इजाजत नहीं
‘बैटल ऑफ द बेगम्स’ का टकराव सिर्फ सत्ता की होड़ तक सीमित नहीं था, बल्कि इसमें व्यक्तिगत शत्रुता, मुकदमे, जेल और सत्ता के कथित दुरुपयोग तक शामिल थे. शेख हसीना के कार्यकाल के दौरान ही वर्ष 2018 में खालिदा जिया को भ्रष्टाचार के मामलों में जेल भेजा गया था. 2018 के बाद खालिदा जिया जेल में रहीं और उनकी पार्टी लगातार उनकी खराब सेहत का हवाला देते हुए विदेश में इलाज की मांग करती रही, लेकिन शेख हसीना सरकार ने इसकी अनुमति नहीं दी.
एक बेगम दुनिया से रुखसत, एक सत्ता से दूर
वहीं शेख हसीना को भी 2024 में सत्ता से बाहर होना पड़ा और देश से एक बार फिर निर्वासित होना पड़ा. हालांकि अब खालिदा जियाक के निधन के साथ ही बांग्लादेश की राजनीति में दशकों से चली आ रही ‘दो बेगमों की लड़ाई’ का भी अंत हो गया है. उल्लेखनीय है कि शेख हसीना स्वयं पिछले साल अगस्त से भारत में रह रही हैं. शेख हसीना और खालिदा जिया के बीच चली लंबी राजनीतिक प्रतिद्वंदिता को बांग्लादेश की राजनीति में ‘बैटल ऑफ द बेगम्स’ कहा जाता रहा है.
बीएनपी को वापसी की उम्मीद
बांग्लादेश में फिर से चुनावों का ऐलान कर दिया गया है. 12 फरवरी को होने वाले चुनाव में बीएनपी को वापसी की उम्मीद है. इसका सबसे बड़ा कारण खालिदा जिया के बेटे, तारिक रहमान हैं. 25 दिसंबर को 17 साल का निर्वासन खत्म करके तारिक ढाका लौटे हैं. आते ही उन्होंने राजनीति में अपनी पकड़ को मजबूत करना शुरू कर दिया है. उन्होंने ढाका-17 सीट से नामांकन भी कर दिया है. वहीं शेख हसीना की अवामी लीग को चुनावों में भाग लेने से ही प्रतिबंधित कर दिया गया है. बैटल्स ऑफ बेगम में एक दुनिया से जा चुकी हैं, तो एक की राजनीति पर ही ब्रेक लग गया है.
पीएम मोदी ने भी शोक संदेश दिया
भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने भी बांग्लादेश की पूर्व प्रधानमंत्री के निधन पर शोक जताया. अपने संदेश में पीएम मोदी ने कहा कि बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में खालिदा जिया ने देश के विकास और भारत-बांग्लादेश संबंधों में अहम योगदान दिया. उन्होंने कहा, “बांग्लादेश की पहली महिला प्रधानमंत्री के रूप में देश के विकास और भारत-बांग्लादेश रिश्तों को मजबूत करने में उनका योगदान हमेशा याद किया जाएगा. मुझे 2015 में ढाका में उनसे हुई अपनी गर्मजोशी भरी मुलाकात याद है. हमें उम्मीद है कि उनकी सोच और विरासत हमारे द्विपक्षीय संबंधों को आगे भी दिशा देती रहेगी. ईश्वर उनकी आत्मा को शांति प्रदान करे.”
कब हुआ बेगम खालिदा का निधन?
बेगम खालिदा जिया का मंगलवार तड़के ढाका के एवरकेयर अस्पताल में इलाज के दौरान 80 वर्ष की आयु में निधन हो गया. बीएनपी के अनुसार, उनका निधन सुबह करीब 6 बजे (स्थानीय समय) फजर की नमाज के तुरंत बाद हुआ. खालिदा जिया को 23 नवंबर को फेफड़ों में संक्रमण के चलते ढाका के एवरकेयर अस्पताल में भर्ती कराया गया था. पूर्व प्रधानमंत्री लंबे समय से हृदय रोग, मधुमेह, गठिया, लिवर सिरोसिस और किडनी से जुड़ी समस्याओं सहित कई बीमारियों से पीड़ित थीं. इसी महीने की शुरुआत में बेहतर इलाज के लिए उन्हें लंदन भी भेजा गया था.
मोहम्मद यूनुस ने भी जताया शोक
बांग्लादेश की अंतरिम सरकार के मुख्य सलाहकार मोहम्मद यूनुस ने भी पूर्व प्रधानमंत्री और बीएनपी चेयरपर्सन बेगम खालिदा जिया के निधन पर गहरा शोक व्यक्त किया. उन्होंने उन्हें देश की “महान संरक्षक” और बांग्लादेश के लोकतांत्रिक इतिहास की एक विशाल शख्सियत बताया. एक्स पर जारी अपने शोक संदेश में यूनुस ने कहा कि वह तीन बार की पूर्व प्रधानमंत्री के निधन से “बेहद दुखी और शोकग्रस्त” हैं और यह देश के लिए अपूरणीय क्षति है. उन्होंने कहा, “बेगम खालिदा जिया सिर्फ़ एक राजनीतिक दल की नेता नहीं थीं, बल्कि वह बांग्लादेश के इतिहास का एक महत्वपूर्ण अध्याय थीं. उनका लंबा राजनीतिक संघर्ष और उनसे जुड़ी जनभावनाएं हमेशा सम्मान के साथ याद की जाएंगी.” बेगम खालिदा जिया के निधन पर बांग्लादेश में तीन दिन का राजकीय शोक घोषित किया गया है और एक दिन का आम अवकाश भी घोषित किया गया है.
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