बांग्लादेश बवाल के ‘मास्टरमाइंड’ ने चुनाव से पहले छोड़ी अपनी ही पार्टी, क्यों किया ये फैसला?
Bangladesh rebellion Mahfuz Alam left NCP: बांग्लादेश में पिछले वर्ष तत्कालीन सरकार को सत्ता से हटाने वाले हिंसक विद्रोह के प्रमुख नेताओं में शामिल महफूज आलम ने रविवार को नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) से खुद को अलग कर लिया. पार्टी नेतृत्व ने जमात-ए-इस्लामी के साथ चुनावी गठबंधन की दिशा में आगे बढ़ने का फैसला किया. इसके जवाब में फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिए आलम ने स्पष्ट किया कि अब उनका एनसीपी से कोई संबंध नहीं है.
Bangladesh rebellion Mahfuz Alam left NCP: बांग्लादेश की राजनीति में जुलाई विद्रोह के बाद उभरे नए दलों और गठबंधनों के बीच अंदरूनी मतभेद अब खुलकर सामने आने लगे हैं. आगामी संसदीय चुनावों से पहले गठबंधन की राजनीति ने नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) को भी संकट में डाल दिया है. इसी कड़ी में पिछले साल सरकार विरोधी हिंसक आंदोलन का चेहरा रहे महफूज आलम का फैसला देश के राजनीतिक घटनाक्रम में अहम माना जा रहा है. बांग्लादेश में पिछले वर्ष तत्कालीन सरकार को सत्ता से हटाने वाले हिंसक विद्रोह के प्रमुख नेताओं में शामिल महफूज आलम ने रविवार को नेशनल सिटिजन पार्टी (एनसीपी) से खुद को अलग कर लिया.
यह कदम ऐसे समय उठाया गया, जब पार्टी नेतृत्व ने जमात-ए-इस्लामी के साथ चुनावी गठबंधन की दिशा में आगे बढ़ने का फैसला किया. सोशल मीडिया मंच फेसबुक पर एक पोस्ट के जरिए आलम ने स्पष्ट किया कि अब उनका एनसीपी से कोई संबंध नहीं है. गठबंधन को लेकर पार्टी के भीतर बढ़ते विरोध के बीच 30 वरिष्ठ नेताओं ने एक हस्ताक्षरित पत्र जारी कर असहमति जताई है, जबकि दो शीर्ष नेताओं ने इस्तीफे की घोषणा भी कर दी है. उन्होंने अपने पत्र में जमात के ऊपर लोकतंत्र को दबाने का आरोप लगाया. इसके साथ ही 1971 के युद्ध में जमात ने पाकिस्तान का साथ दिया था, इस बात को भी प्रमुखता से उठाया गया है.
गौरतलब है कि पिछले साल ‘स्टूडेंट्स अगेंस्ट डिस्क्रिमिनेशन’ (एसएडी) के बैनर तले जो हिंसक आंदोलन हुआ था, वही ‘जुलाई विद्रोह’ के नाम से जाना गया. इस आंदोलन के बाद शेख हसीना सरकार गिर गई और पूर्व प्रधानमंत्री को अपनी जान बचाते हुए भारत आना पड़ा. इसी आंदोलन से जुड़े एक बड़े राजनीतिक समूह ने इस साल फरवरी में अंतरिम सरकार के
प्रमुख मोहम्मद यूनुस के समर्थन में नेशनल सिटिजन पार्टी के रूप में संगठित रूप लिया. महफूज आलम इस दौरान प्रभावी रूप से मंत्री स्तर की भूमिका में रहे और सूचना एवं प्रसारण सलाहकार के तौर पर काम किया. हालांकि, 11 दिसंबर को चुनाव आयोग द्वारा 13वें संसदीय चुनावों का कार्यक्रम घोषित किए जाने से ठीक पहले उन्होंने इस पद से इस्तीफा दे दिया था, जिसके बाद उनके चुनावी मैदान में उतरने की अटकलें तेज हो गई थीं.
अपने पोस्ट में आलम ने लिखा कि मौजूदा परिस्थितियों के बावजूद जुलाई आंदोलन से जुड़े अपने साथियों के प्रति उनका सम्मान, स्नेह और दोस्ती बनी रहेगी, लेकिन अब वह एनसीपी का हिस्सा नहीं हैं. उन्होंने यह भी स्पष्ट किया कि यह दावा सही नहीं है कि उन्हें जमात-एनसीपी गठबंधन की ओर से कोई प्रस्ताव मिला था. साथ ही उन्होंने कहा कि ढाका की किसी भी सीट से जमात-एनसीपी गठबंधन का उम्मीदवार बनने की तुलना में अपने लंबे समय से चले आ रहे राजनीतिक रुख पर कायम रहना उनके लिए ज्यादा अहम है.
नाहिद इस्लाम ने की गठबंधन की घोषणा
आलम की यह घोषणा ऐसे समय सामने आई है, जब एनसीपी संयोजक नाहिद इस्लाम ने कुछ ही घंटे पहले यह ऐलान किया था कि पार्टी ने चुनाव से पहले व्यापक राजनीतिक एकता के तहत जमात-ए-इस्लामी के नेतृत्व वाले गठबंधन में शामिल होने का फैसला लिया है. ढाका ट्रिब्यून की रिपोर्ट के मुताबिक यह गठबंधन केवल चुनावी है, वैचारिक नहीं. नाहिद ने कहा कि उस्मान हादी की हत्या के बाद परिस्थितियां बदल गई हैं. आंदोलन के बाद भी देश में अब भी वर्चस्ववादी ताकतें मौजूद हैं, इसलिए गठबंधन करना जरूरी बन गया.
तारिक रहमान की वापसी ने भी किया मजबूर
वहीं बांग्लादेश में इस गठबंधन का केवल यही कारण नहीं है. दरअसल बांग्लादेश नेशनलिस्ट पार्टी (बीएनपी) के कार्यकारी चीफ तारिक रहमान की वापसी के बाद भी परिस्थितियां काफी बदली हुई हैं. खालिदा जिया की खराब हालत ने तारिक के कंधों पर बड़ी जिम्मेदारी सौंपी है, ऐसे में शेख हसीना और उनकी पार्टी अवामी लीग की अनुपस्थिति में बीएनपी की ही परचम बुलंद दिख रहा है. तारिक रहमान ने ढाका-17 सीट से अपना नामांकन भी दाखिल कर दिया है. ऐसे में एनसीपी के युवा छात्र और महत्वाकांक्षी नेताओं के पास जमात से गठबंधन के अलावा और कोई चारा नहीं था.
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