Yama Deepak 2025: क्यों जलाते हैं यम का दीपक? जाने शुभ मुहूर्त, नियम और सही मंत्र

Yama DeepaK 2025: धनतेरस के दिन शाम को मां लक्ष्मी, कुबेर भगवान की पूजा करने के साथ यमराज की पूजा करने का विधान है.

By Radheshyam Kushwaha | October 11, 2025 12:06 PM

Yama Deepak 2025: हिंदू पंचाग के अनुसार, पांच दिनों तक चलने वाला दिवाली का पर्व धनतेरस के साथ आरंभ हो जाता है. धनतेरस के दिन शाम को मां लक्ष्मी, कुबेर भगवान की पूजा करने के साथ यमराज की पूजा करने का विधान है, इस दिन शाम के समय दक्षिण दिशा में एक चौमुखा दीपक जलाया जाता है, जिसे यम दीपक के नाम से जाना जाता हैं. इस बार दिवाली 20 अक्टूबर और धनतेरस 19 अक्टूबर को मनाई जाने वाली है. इस बार त्रयोदशी तिथि 9 अक्टूबर को है, इसी दिन यम का दीपक जलाया जाएगा. ऐसे में आइए जानते है यम दीपक जलाने का तरीका, शुभ मुहूर्त और इसके पीछे का धार्मिक मान्यता.

यम का दीपक जलाना कब रहेगा शुभ

धनतेरस पर खरीदारी, दीपदान और पूजा का शुभ मुहूर्त शाम 05 बजकर 46 मिनट से शाम 07 बजकर 42 मिनट तक रहेगा. इस बार शुभ मुहूर्त के लिए कुल अवधि 1 घंटा 56 मिनट का होगा. वहीं प्रदोष काल की शुरुआत सुबह 05 बजकर 29 मिनट से 08 बजकर 07 मिनट तक रहेगा. वहीं वृषभ काल की शुरुआत 05 बजकर 46 मिनट से 07 बजकर 42 मिनट तक रहेगा. इस दौरान यम का दीपक जलाना शुभ होता है.


यम का दीपक जलाने के नियम

ज्योतिष शास्त्रों के अनुसार, यम का दीपक धनतेरस के दिन जलाना काफी शुभ माना जाता है. वहीं कुछ लोग धनतेरस के दिन की जगह छोटी दीपावली को भी यम दीपक जलाते हैं. क्योंकि ये दीपक यम देव को समर्पित होता है और उनकी दिशा शास्त्रों में दक्षिण मानी गई है तो इसे सिर्फ दक्षिण दिशा में ही जलाएं. यम का दीपक को कभी भी घर के अंदर नहीं जलाना चाहिए, मान्यता है कि ऐसा करने पर जातक के जीवन में कई तरह की समस्या उत्पन्न होने लग जाती है. यदि आप यम दीपक जलाते हैं तो घर के बार ही जलाएं और इसे दक्षिण दिशा में रखना न भूले. यम दीपक जलाने के बाद परिवार के किसी भी सदस्य को उसके बाद घर से बाहर नहीं निकलने देना चाहिए, जब घर के सभी सदस्य घर आ जाएं तभी यम दीपक जलाएं. यम दीपक को सूर्यास्त के बाद संध्याकाल में ही जलाएं.

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यम का दीया जलाने से अकाल मृत्यु से मिलती है मुक्ति

शास्त्रों के अनुसार, धनतेरस की देर रात को एक दीया और जलाना चाहिए, जिससे अकाल मृत्यु को भी टाला जा सकता है. घर के किसी भी बुजुर्ग द्वारा इसे जलाकर घर के बाहर रखा जाता है. इसे यम का दीया कहा जाता है, इसमें चार बत्ती होनी चाहिए और सरसों के तेल से इसे जलाकर आप घर के बाहर रख सकते हैं. मान्यता है कि इससे अकाल मृत्यु भी टल जाती है.

यम दीपक का पितरो से है संबंध

पौराणिक मान्यता के अनुसार, हम जो भी पूजा से संबंधित कर्मकांड अपने पितरों के निमित्त करते हैं. उससे वह तृप्त होकर परिवार को आशीर्वाद देते हैं. यम दीपक जहां आकाल मृत्यु के संकट को रोकता है. वहीं इसके पीछे ये भी मान्यता है कि यदि धनतेरस की शाम सूर्यास्त के बाद यम दीपक जलाया जाए तो उससे पितरों के मार्ग को प्रकाश मिलता है. वो अपने स्वर्ग लोक की यात्रा इसी प्रकाश के माध्यम से करते हैं. ऐसा भी माना जाता है कि यम दीपक दक्षिण दिशा की और जलाना चाहिए और शास्त्रों में वर्णित है कि दक्षिण दिशा में पितरों का निवास होता है. धनतेरस की रात ऐसा करने से पितृ प्रसन्न हो जाते है और जातक के जीवन में कई सारे मंगलकारी रास्ता खोल देते है.

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क्यों जलाते हैं यम का दीपक?

धार्मिक मान्यताओं के अनुसार, धनतेरस के दिन यम दीपक जलाने के पीछे एक पौराणिक कथा है. इसके अनुसार किसी राज्य में एक हेम नामक राजा था. देव की कृपा से उसे पुत्र की प्राप्ति हुई. पंडितों को जब पुत्र की कुंडली दिखाई गई तो पता चला कि शादी के चार साल बाद राजकुमार की मृत्यु हो जाएगी. ऐसे में राजा ने उसे ऐसी जगह भेज दिया, जहां पर किसी कन्या की परछाई तक उस पर न पड़े. लेकिन वहीं उसने विधिवत तरीके से एक राजकुमारी से शादी कर ली. विधि के अनुसार शादी के चौथे दिन यमराज के दूत राजकुमार को लेन आ गए. यह देख राजकुमारी खूब रोई. यह सब बातें दूतों ने यमराज को बता दी और एक यमदूत ने कहा- हे यमराज कोई ऐसा तरीका नहीं है, जिससे व्यक्ति अकाल मृत्यु से मुक्त पा सकें. तब यमराज ने कहा कि कार्तिक मास के कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि की शाम के समय दक्षिण दिशा में मेरे नाम से जो दीपक जलाएगा, उसे अकाल मृत्यु से मुक्ति मिल जाएगी. इसी कारण हर साल इस दिन यम का दीपक जलाने की प्रथा शुरू हो गयी.

इस मंत्र से निकाले यम दिया

मृत्युनां दण्डपाशाभ्यां कालेन श्यामया सह।

त्रयोदश्यां दीपदानात् सूर्यजः प्रीयतां मम्