काशी में एक अधिकारी ऐसे भी: बच्चों के ‘पुलिस अंकल’ अनिल मिश्र की कोशिश जानकर आप भी करेंगे उन्हें सलाम

खास बात यह है कि बच्चों के मन में पुलिस की फ्रेंडली इमेज बनाने की कोशिश की जा रही है. ऐसी ही कोशिश वाराणसी के कपसेठी थानाध्यक्ष अनिल कुमार मिश्र ने किया है. उन्होंने गरीब बच्चों को टॉफी, बिस्कुट, कॉपी-किताब ,पेन, पेंसिल देना क्या शुरू किया वो बच्चों के ‘पुलिस अंकल’ बन गए.

By Prabhat Khabar | November 15, 2021 10:02 PM

Prabhat Khabar Positive Story: पुलिस के बारे में अक्सर कहा जाता है ना तो उनकी दोस्ती भली है और ना दुश्मनी. लेकिन, आज के बदलते दौर में पुलिस का मानवीय चेहरा अक्सर दिख जाता है. खास बात यह है कि बच्चों के मन में पुलिस की फ्रेंडली इमेज बनाने की कोशिश की जा रही है. ऐसी ही कोशिश वाराणसी के कपसेठी थानाध्यक्ष अनिल कुमार मिश्र ने किया है. उन्होंने गरीब बच्चों को टॉफी, बिस्कुट, कॉपी-किताब ,पेन, पेंसिल देना क्या शुरू किया वो बच्चों के पुलिस अंकल बन गए.

अनिल कुमार मिश्र पेट्रोलिंग के दौरान अक्सर गांव के स्कूल के बाहर बच्चों को गिफ्ट बांटते दिखते हैं. वो बच्चों को पढ़ाई करने की खास हिदायत देते हैं. थानाध्यक्ष अनिल मिश्र ने बालमन में पुलिस की मददगार छवि भरने के साथ उन्हें नैतिक मूल्यों की शिक्षा देने का बीड़ा उठाया है. उनका कहना है कि किताबी ज्ञान तो बच्चों को स्कूल से मिल जाता है. नैतिक ज्ञान के लिए उन्हें मानवीय संबंधों की सीख देनी जरूरी है.

इन बच्चों के माता-पिता मजदूरी करते हैं. इनके पास इतना पैसा नहीं कि वो बच्चों की पढ़ाई का इंतजाम कर सकें. इसके बाद अनिल कुमार मिश्र आगे आए. वो कहते हैं कि हमारी आने वाली जेनरेशन को यह बताना जरूरी है कि पुलिस उनकी दुश्मन नहीं दोस्त है. बच्चों को यह भी पता होना चाहिए कि पुलिस उनके समाज का अहम हिस्सा है. बच्चे मासूम होते हैं. आपराधिक तत्व उनको आसानी से निशाना बना लेते हैं. बच्चों को सही-गलत की पहचान बताना जरूरी है. अगर वो अपने आसपास कहीं पर भी अपराध होता देखें तो वो इसकी जानकारी तुंरत अपने पैरेंट्स और टीचर के अलावा पुलिस को दें.

अनिल मिश्र कपसेठी से पहले कोतवाली थाना में तैनाती के दौरान शाम में बच्चों के लिए स्कूल लगाते थे. इस पाठशाला में वो बच्चों को ना सिर्फ पढ़ाते थे, उन्हें 1857 के स्वतंत्रता संग्राम से लेकर 1947 में देश के आजाद होने तक अंग्रेजों से लोहा लेने वाले अमर शहीदों और महापुरुषों की कहानियां सुनाते थे. इसके साथ ही वो बच्चों को समझाते हैं कि वो अपने आसपास होने वाली गलत गतिविधियों का विरोध करके आपराधिक गतिविधियों पर शिकंजा कसने में पुलिस की मदद करें. पुलिस उनकी मित्र है.

(रिपोर्ट: विपिन सिंह, वाराणसी)

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