Poonch Attack: शहीद करण सिंह का पार्थिव शरीर पहुंचा कानपुर, बिठूर घाट पर होगा अंतिम संस्कार

शहीद करण सिंह का पार्थिव शरीर सेना की गाड़ी से कानपुर में स्थित उनके पैतृक गांव भाऊपुर पहुंचा है. जानकारी के मुताबिक शहीद का अंतिम संस्कार बिठूर घाट पर होगा. कानपुर के लाल करन सिंह जम्मू कश्मीर के राजौरी में हुए आतंकी हमले में शहीद हो गए थे.

By Sandeep kumar | December 25, 2023 2:53 PM

जम्मू कश्मीर के राजौरी में हुए आतंकी हमले में शहीद करण सिंह का पार्थिव शरीर उनके पैतृक गांव पहुंचा गया है. शहीद करण सिंह का पार्थिव शरीर सेना की गाड़ी से कानपुर में स्थित भाऊपुर गांव पहुंचा है. जानकारी के मुताबिक शहीद का अंतिम संस्कार बिठूर घाट पर राजकीय सम्मान के साथ होगा. शहीद का शव पैतृक गांव पहुंचते ही उनके अंतिम दर्शन करने वालों का तांता लगा हुआ है. भीड़ को संभालने के लिए कई थानों की फोर्स भी मौजूद है. पार्थिव शरीर को जैसे ही घर के बाहर लाया गया, तो परिजन शरीर से लिपटकर फफक-फफक कर रोने लगे. यहां मौजूद हर किसी की आंखें नम थीं, हर कोई करण की शहादत की ही बात कर रहा था. शाहिद की अंतिम यात्रा में हजारों लोग ‘तेरी कुर्बानी याद करेगा हिंदुस्तान’ के नारे लगाते रहे. साथ ही, भारत माता की जय, वंदे मातरम, शहीद करण अमर रहे के उद्घोष भी गूंजते रहे. शहीद के पार्थिव शरीर पर आंसू भरी आंखों के साथ फूल बरसाए गए. जम्मू कश्मीर के पुंछ सेक्टर में 48 आरआर बटालियन में लायंस नायक के पद पर तैनात थे. सीमा की सुरक्षा करते समय आतंकियों के हमले में शहीद हुए करण सिंह यादव की खबर सुनते ही उनके पैतृक गांव भाऊपुर में शोक की लहर दौड़ गई है.

Also Read: Poonch Attack: शहीद चंदन कुमार का पार्थिव शरीर पहुंचा बिहार, गया एयरपोर्ट पर सेना के अधिकारियों ने दी सलामी
बचपन से ही सेना में शामिल होना चाहते थे करण

कानपुर के लाल की शहादत पर पिता बाबूलाल बताते हैं कि पुत्र करण सिंह का शुरुआत से ही सेना में जाने का मन था. वह देश की सेवा करने की बात करता था और उसका यही एकमात्र सपना था कि सेना में शामिल हो. इसके लिए उसने कड़ी मेहनत की और वर्ष 2013 में सेना में नौकरी हासिल करने में सफल रहा. परिवार को उस पर गर्व है. करण की शादी छह वर्ष पहले पहले अंजू से हुई थी. उसकी पांच वर्षीय बेटी आर्या और डेढ़ वर्षीय बेटा आयुष है. बहू कानपुर के लाल बग्ला में रहकर बेटी को सैनिक स्कूल में पढ़ा रही है. बेटे को याद करते हुए पिता बाबूलाल बताते हैं कि अगस्त में रक्षाबंधन के पर्व पर वह घर आया था. तब करण ने फरवरी में घर आने की बात कही थी. सभी उसके आने का इंतजार कर रहे थे. बेटा तो नहीं आया, उसकी शहादत की खबर जरूर आ गई. पूरे परिवार और शहर को उसके बलिदान पर गर्व है. वह हमारा होनहार बेटा था.

करण की बहादुरी के किस्से याद कर रहे साथी

करण के दोस्त भी उसकी बहादुरी के किस्स याद कर रहे हैं. वह उसकी देशभक्ति की बातों का भी याद कर रहे हैं. करण के मिलनसार स्वभाव के सभी मुरीद थे. लायंस नायक करण गांव में बच्चों, युवाओं से लेकर बुजुर्गों के बीच काफी लोकप्रिय थे. छुट्टी पर आने के दौरान वह सभी से बेहद लगाव से मिलते थे. वह अक्सर सेना से जुड़े किस्से लोगों को बताते थे. पिता बाबूलाल, भाई अरुण के साथ खेतों पर काम करने में भी करण को काफी आनंद आता था.

बच्चों को सेना में अफसर बनाना चाहते थे करण

खुद सेना में जाने वाले करण ने जहां भाई को भी इसके लिए प्रेरित किया, वहीं उनकी इच्छा था कि उनके बच्चे भी इसी तरह का काम करें. वह बच्चों को सेना में अफसर बनाना चाहते थे. उनकी पत्नी कानपुर में किराए के मकान में रहती है, जहां बेटी का दाखिला सैनिक स्कूल में कराया है. गमगीन पत्नी अंजू ने बताया कि पति का सपना था कि उनके बच्चे सेना में अधिकारी बने. वहीं भाई के बलिदा के बाद बहनें भी बेहद शोक में हैं. करण की तीन बहनों में साधना की शादी हो चुकी है. ज​बकि आराधना और सोनम अविवाहित हैं. भाई के साथ मनाई आखिरी रक्षाबंधन को याद कर उनके आंसू थमने का नाम नहीं ले रहे हैं. उनका कहना है कि वह अब कभी भाई की कलाई में राखी नहीं बांध पाएगी. उसकी शहादत पर सभी को बेहद गर्व है.

Next Article

Exit mobile version