घायल ड्राइवर पिता की बेटी कल्पना ने संभाली बस की स्टीयरिंग, कोलकाता की सड़कों पर सरपट दौड़ाती है गाड़ी

Bengal news, Kolkata news : महानगर की संकरी और ट्रैफिक वाले रूट पर प्राइवेट एवं सरकारी बसों को चलाने वाले ड्राइवरों को तो आपने अक्सर देखा होगा, लेकिन इन दिनों कोलकाता के ट्रैफिक वाले इलाकों में 18 साल की यंग बस ड्राइवर लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. लोग इस युवा महिला ड्राइवर को देखकर चाैंक जाते हैं. अपने ड्राइवर पिता सुभाष मंडल से ड्राइविंग की ट्रेनिंग लेने के बाद अब वह कुशल ड्राइवर के रूप में बस चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | November 3, 2020 10:24 PM

Bengal news, Kolkata news : कोलकाता (भारती जैनानी) : महानगर की संकरी और ट्रैफिक वाले रूट पर प्राइवेट एवं सरकारी बसों को चलाने वाले ड्राइवरों को तो आपने अक्सर देखा होगा, लेकिन इन दिनों कोलकाता के ट्रैफिक वाले इलाकों में 18 साल की यंग बस ड्राइवर लोगों के बीच आकर्षण का केंद्र बनी हुई है. लोग इस युवा महिला ड्राइवर को देखकर चाैंक जाते हैं. अपने ड्राइवर पिता सुभाष मंडल से ड्राइविंग की ट्रेनिंग लेने के बाद अब वह कुशल ड्राइवर के रूप में बस चलाकर अपने परिवार का भरण-पोषण कर रही है.

साढ़े 18 साल की कल्पना मंडल कहती हैं कि उसके पिता 25 सालों से बस चला रहे हैं. कुछ समय पहले उनका एक्सीडेंट हो गया, जिससे उनके पैर में काफी चोट आ गयी. पिता के अस्वस्थ होने पर उसने गाड़ी चलाने का फैसला किया, क्योंकि उनके पास आय का कोई दूसरा साधन नहीं था. हालांकि, बस ड्राइविंग पुरुषों का क्षेत्र है, लेकिन अब पिता के इस काम से उसको बहुत लगाव है. छोटी उम्र से ही वह पिता को फोलो करती रही है.

कल्पना के पिता सुभाष मंडल कहते हैं कि उसको ड्राइविंग के लिए ट्रेंड करके रखा था. एक्सीडेंट के बाद खुद बेटी ने ही इस काम की बागडोर संभाल ली. बेटी को बस चलाते देखता हूं, तो बहुत गर्व महसूस होता है. कल्पना कहती हैं कि शुरू- शुरू में उसको बस चलाते समय ट्रैफिक से काफी डर लगता था. रोड पर पुलिस या सार्जेंट को देख कर वह घबरा जाती थी, लेकिन उसके पिता ने उसे प्रोत्साहित करने के साथ ड्राइविंग के सभी गुर सिखा दिये हैं. अस्वस्थ हालत में भी वह बस में बैठे रहते थे और आज भी वह उसकी सीट के पीछे बैठे रहते हैं, जिससे उसकी हिम्मत एवं आत्मविश्वास बढ़ जाता है.

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सरकारी बस ड्राइवर के रूप में लोकप्रिय होना चाहती है कल्पना

बेहद गरीब परिवार से ताल्लुक रखने वाली कल्पना कहती हैं कि बचपन से ही उसे बस चलाने का शाैक था. घर में पढ़ाई का परिवेश नहीं था. उसकी माता एवं पिताजी पाचंवी- छठी तक ही पढ़े हैं. उसने माध्यमिक परीक्षा पास की है. आगे पढ़ नहीं पायी, क्योंकि घर के हालात ठीक नहीं थे. जब बस चलाना शुरू किया, तो पढ़ाई से रुचि हट गयी. अभी वह एक कुशल सरकारी बस ड्राइवर के रूप में अपनी पहचान बनाना चाहती है. हालांकि, अभी वह 34- सी रूट की एक प्राइवेट बस चला रही है, लेकिन वह ड्राइवर के रूप में सरकारी नाैकरी पाना चाहती है. कल्पना बताती हैं कि लॉकडाउन में बसें चलना बंद हो गयी, तो खर्चा चलाने के लिए उसने अपनी मां के साथ इलाके में सब्जी बेचने का भी काम किया.

लॉकडाउन एवं टाला ब्रिज टूटने के बाद कमाई घटी

यंग बस ड्राइवर कल्पना मंडल के पिता सुभाष मंडल कहते हैं कि उनके एक्सीडेंट के बाद मेरी बेटी ने हमारे पूरे घर को संभाल लिया. वह अभी साढ़े 18 साल की है, लेकिन काम के प्रति उसके लगाव को देखकर बहुत खुशी होती है. अभी मैं स्वस्थ हूं. सुबह 6 बजे मेरी बेटी एवं पत्नी के साथ नोआपाड़ा से अपने घर से निकलता हूं. 3 राउंड में मेरी बेटी एवं 2 राउंड में मैं 34-सी बस चलाकर परिवार का गुजारा कर रहे हैं.

34-सी रूट की बस नोआपाड़ा बस स्टैंड से टोबिन रोड, बाग बाजार, राजा बाजार, सियालदह होते हुए एसप्लानेड पहुंचती है. बेटी जब बस का गेट खोलकर सीट पर बैठती है, तो उसके साथ ही वह भी पीछे बैठ जाते हैं. अब वह परफेक्ट ड्राइवर लगती है. लोग मेरी बेटी को पहले बहुत आश्चर्य से देखते थे, लेकिन अब कल्पना को देखकर लोग बहुत उत्साहित होते हैं. वह कहते हैं कि लॉकडाउन से पहले प्रतिदिन उनकी 800-900 रुपये कमाई हो जाती थी, लेकिन लॉकडाउन एवं टाला ब्रिज टूटने के बाद बस में सवारी बहुत कम हो गयी है. उनकी रोज की आमदनी घट कर 500-550 रुपये हो गयी है.

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कल्पना की मां मंगला मंडल का कहना है कि सुबह 5 बजे से हमारी दिनचर्या शुरू होती है. कल्पना और मैं घर का काम करने के बाद यात्रियों को लेकर बस रवाना करते हैं. कल्पना के पिता के साथ वह भी उसके सामने बैठी रहती है. कल्पना कहती है कि मां व पिताजी हमेशा दोनों उसके साथ रहते हैं. अपने पिता से उसने अच्छे ड्राइवर के गुण सीखे हैं. जब वह संकरे रास्तों से भी गुजरती है, तो यातायात-नियमों के साथ सामने की ओर ही उसका ध्यान रहता है.

Posted By : Samir Ranjan.

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