पश्चिम बंगाल : तेजी से बढ़ रहा हैं स्कोलियोसिस, किशोरावस्था में ज्यादा होता है, जानिए इसके बारे में

तेजी से बढ़ रहे हैं पश्चिम बंगाल में स्कोलियोसिस के मामले समय पर इलाज न होने से व्यक्ति की स्थिति भयावह हो जाती है एनआरएस में इलाज की सही व्यवस्था, 2018 में 31 लोगों का हुआ इलाज कोलकाता : स्कोलियोसिस यानी रीढ़ की हड्डी में टेढ़ेपन की समस्या ज्यादातर बच्चों में होती है, लेकिन इसके […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 15, 2018 6:50 AM
तेजी से बढ़ रहे हैं पश्चिम बंगाल में स्कोलियोसिस के मामले
समय पर इलाज न होने से व्यक्ति की स्थिति भयावह हो जाती है
एनआरएस में इलाज की सही व्यवस्था, 2018 में 31 लोगों का हुआ इलाज
कोलकाता : स्कोलियोसिस यानी रीढ़ की हड्डी में टेढ़ेपन की समस्या ज्यादातर बच्चों में होती है, लेकिन इसके प्रति लापरवाही बरती जाती है. यह समस्या बाद में गंभीर रूप धारण कर लेती है. समय पर ध्यान देकर इससे बचा जा सकता है. अक्सर स्कोलियोसिस को अनदेखा कर दिया जाता है.
अगर पीड़ित रोगी पहले ही इलाज के लिए डॉक्टर के पास चला जाये तो उसकी स्थिति नियंत्रित हो जाये, लेकिन इस बीमारी को लेकर जागरूकता की कमी है.
इस बीमारी को ठीक करने के लिए सर्जरी जैसे विकल्प भी मौजूद हैं, लेकिन लोग इसे शारीरिक संरचना और उसकी शारीरिक मुद्रा से जोड़ कर देखते हैं. समय पर इलाज न होने से न सिर्फ व्यक्ति की स्थिति भयावह हो जाती है, बल्कि इस कारण दूसरे अंदरूनी अंग भी प्रभावित होने लगते हैं. स्कोलियोसिस के मामले पश्चिम बंगाल में तेजी से भी बढ़ रहा है. यह कहना है नील रतन सरकार (एनआरएस) मेडिकल कॉलेज एंड हॉस्पिटल के रिजनल आर्टिफिशियल लिंब फिटिंग सेंटर के आर्थोटिक विभाग के इंचार्ज आबीर मित्रा का.
उन्होंने कहा कि एनआरएस अस्पताल में स्कोलियोसिस से संबंधी हर प्रकार की व्यवस्था है. कई बार आवश्यकता पड़ने पर आर्थोपेडिक सर्जन ऑपरेशन करते हैं, लेकिन अगर सही समय में इस बिकार का पता चल जाये, तो बगैर सर्जरी के थैरेपी से इस समस्या का समाधान कर दिया जाता है. उक्त सेंटर में इलाज के 6 -21 वर्ष की उम्र वाले मरीज पहुंचते हैं. 2016 में 37 तथा 17 में 49 मरीजों का आर्थोटिक ब्रेस के जरिए इलाज किया गया है. जबकि 2018 में अब लगभग 31 मरीज का इलाज किया जा सकता है. आर्थोपेडिक ब्रेस पहनाया जाता है.
16 से 18 घंटा इस पहनना पड़ता है. इसके अलावा मरीजों को कई प्रकार के व्ययाम कराये जाते है. रीढ़ की हड्डी में 40 फीसदी से अधिक टेढ़ा होने पर सर्जरी की आवश्यकता पड़ती है. ऐसे मामलों में मरीज कतो सांस लेने में भी समस्या हो सकती है. उन्होंने बताया कि उक्त समस्या को लेकर बंगाल के अलावा दूसरे राज्यों से भई मरीज यहां पहुंचते हैं.
क्या है स्कोलियोसिस
रीढ़ में विकृति आने को ही स्कोलियोसिस कहते हैं. सामान्य रीढ़ की हड्डी पीछे से देखने पर सीधी नजर आती है, जबकि स्कोलियोसिस में हड्डी में तीन तरीके से वक्र बने होते हैं.
स्कोलियोसिस के लक्षण
असमान कंधे, असमान कमर, दूसरे की तुलना में एक हिप अधिक,पीठ दर्द, कंधे व गर्दन का दर्द, श्वांस – प्रणाली की समस्याएं.