जेयू में आरएसएफ का सम्मेलन माओवादी नामकरण पर हंगामा

रिवोल्यूशनरी स्टूडेंट्स फ्रंट (आरएसएफ) जिसे पहले माओवादी विचारधारा से जुड़े संगठन के रूप में जाना जाता था, का छठा सम्मेलन हाल ही में जादवपुर विश्वविद्यालय (जेयू) कैंपस में आयोजित किया गया

By SUBODH KUMAR SINGH | December 1, 2025 12:56 AM

कोलकाता. रिवोल्यूशनरी स्टूडेंट्स फ्रंट (आरएसएफ) जिसे पहले माओवादी विचारधारा से जुड़े संगठन के रूप में जाना जाता था, का छठा सम्मेलन हाल ही में जादवपुर विश्वविद्यालय (जेयू) कैंपस में आयोजित किया गया. कार्यक्रम के दौरान विश्वविद्यालय परिसर में व्यापक सुरक्षा व्यवस्था की गयी. कोलकाता में माओवादी राजनीति का सार्वजनिक रूप से फिर उभरना कई विशेषज्ञों और सुरक्षा विश्लेषकों के लिए हैरानी और चिंता का विषय बन गया है. आमतौर पर अपने जुड़ाव को गोपनीय रखने वाला यह संगठन पहली बार राज्य के सबसे बड़े सरकारी विश्वविद्यालयों में से एक में खुले तौर पर अपनी मौजूदगी दर्ज कराता दिखा. सम्मेलन में आरएसएफ ने प्रतीकात्मक कदम उठाते हुए कोलकाता को कोटेश्वर राव नगर, जादवपुर यूनिवर्सिटी कैंपस को बसवराजू ऑडिटोरियम और विवेकानंद हॉल को हिडमा स्टेज नाम दिया. ये नाम प्रतिबंधित भाकपा (माओवादी) के तीन प्रमुख कमांडरों- किशनजी, बसवराजू और माडवी हिडमा के सम्मान में रखे गये, जो विभिन्न बड़े नक्सली हमलों के लिए जिम्मेदार रहे हैं.

आरएसएफ के नवनियुक्त महासचिव तथागत राय चौधरी ने कहा कि ये नामकरण शहीदों को श्रद्धांजलि है. उन्होंने कहा : हम किसी राज्य या केंद्र सरकार को नहीं पहचानते. अपनी राजनीति खुद चुनते हैं. सम्मेलन की शुरुआत भारत की नयी जनवादी क्रांति के अमर शहीदों के सम्मान में मौन रखकर की गयी. इसके बाद कई अल्ट्रा-लेफ्ट संगठनों- संग्रामी श्रमिक मंच, संग्रामी कृषक मंच और कमेटी फॉर द रिलीज ऑफ पॉलिटिकल प्रिजनर्स के प्रतिनिधियों ने भाषण दिये. विश्वविद्यालय के भीतर माओवादी कमांडरों का खुला सम्मान सुरक्षा एजेंसियों और अकादमिक समुदाय में असहजता पैदा कर रहा है.

आरएसएफ नेताओं के अनुसार, विश्वविद्यालय प्रशासन को इस बात की जानकारी नहीं थी कि सम्मेलन में कैंपस स्थलों को माओवादी नेताओं के नाम से प्रतीकात्मक रूप से संबोधित किया जायेगा. 1990 के दशक में शुरू हुआ आरएसएफ, 2004 में भाकपा (माओवादी) बनने के बाद तेजी से फैला. सिंगूर और नंदीग्राम आंदोलनों में इसके कैडर सक्रिय थे, मगर 2011 के बाद इसका प्रभाव घटता गया. आज इसकी उपस्थिति मुख्य रूप से जादवपुर विश्वविद्यालय और विश्वभारती तक ही सीमित है.

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