विश्व चिंतकों व साहित्यकारों को एक साथ लेकर शांति सम्मेलन का हुआ आयोजन

हिंदी विश्वविद्यालय (हावड़ा) और आइएसआइएसएआर द्वारा वाईएमसीए भवन (कोलकाता) में विश्व चिंतकों और साहित्यकारों का शांति सम्मेलन का संयुक्त रूप से आयोजन किया गया.

By SANDIP TIWARI | November 24, 2025 12:05 AM

कोलकाता. हिंदी विश्वविद्यालय (हावड़ा) और आइएसआइएसएआर द्वारा वाईएमसीए भवन (कोलकाता) में विश्व चिंतकों और साहित्यकारों का शांति सम्मेलन का संयुक्त रूप से आयोजन किया गया. इस कार्यक्रम में इराक, गुयाना, वियतनाम, फिलीपींस, मिस्र, रोमानिया, ऑस्ट्रेलिया, यूनान, यूके और स्पेन से आये प्रतिष्ठित लेखक, कवि और विद्वान एक मंच पर एकत्रित हुए. कार्यक्रम का उद्घाटन हिंदी विश्वविद्यालय की कुलपति प्रो नंदिनी साहू ने किया. कुलपति ने हिंदी विश्वविद्यालय में अंतर्विषयक शोध की आवश्यकता पर बल देते हुए युवा साथियों को उत्तरदायित्व और जवाबदेही के साथ स्वतंत्र चिंतन में संलग्न होकर सामाजिक परिवर्तन हेतु साहित्य रचने का संदेश दिया. इसके पश्चात आइएसआइएसएआर के सचिव डॉ सुदीप्त चटर्जी ने स्वागत व्यक्तव्य दिया, जिसमें उन्होंने विश्व साहित्य में शांति संवाद और अंतःविषय शिक्षण को बढ़ावा देने की बात की. कलकत्ता विश्वविद्यालय के अंग्रेजी विभाग की प्रो संजुक्ता दास गुप्ता ने रवींद्रनाथ टैगोर की सार्वभौमिक मानवतावादी दृष्टि पर अपने विचार व्यक्त किये. उन्होंने रचनात्मक लेखन में कृत्रिम बुद्धिमत्ता के बढ़ते प्रभाव पर चर्चा करते हुए कहा कि रचनात्मकता मूलतः एक गहन मानवीय प्रयास है. कार्यक्रम के पहले सत्र में वैश्विक साहित्यिक दृष्टिकोणों पर चर्चा की गयी, जिसमें टोनी मॉरिसन और रवींद्रनाथ टैगोर के साहित्यिक विचार पर प्रकाश डाला गया गया. वक्ताओं ने तुलनात्मक, अंतरविषयी और अंतरराष्ट्रीय दृष्टिकोणों पर जोर दिया तथा ऑस्ट्रेलिया, वियतनाम, रोमानिया, इराक, गुयाना और अन्य क्षेत्रों से उदाहरण प्रस्तुत किये. आगे के सत्रों में टेराकोटा परंपराओं, हड़प्पा सांस्कृतिक विरासत और औपनिवेशिक “टिम्बर इम्पीरियलिज़्म” तथा पारिस्थितिक विमर्श पर चर्चा हुई. कार्यक्रम का संयोजन डॉ पारोमिता दास और डॉ इंद्रजीत यादव तथा संचालन डॉ सुतुनुका घोष राय और डॉ मधुवंती गांगुली ने किया. कार्यक्रम में हिंदी विश्वविद्यालय के सभी विभागों के शिक्षकों की सक्रिय भागीदारी रही. कार्यक्रम का समापन आठ देशों के प्रतिनिधियों के साथ हुआ, जिसमें साहित्य को संस्कृतियों के बीच सेतु और वैश्विक समझ को बढ़ावा देने वाले माध्यम के रूप में स्वीकार किया गया.

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