ससुराल वालों से न बनने पर अलग रहना क्रूरता नहीं : कोर्ट
एक पारिवारिक विवाद मामले की सुनवाई में हाइकोर्ट ने कहा कि यदि महिला ससुरालवालों के साथ सामंजस्य की कमी के चलते अलग रहती है
कोलकाता. एक पारिवारिक विवाद मामले की सुनवाई में हाइकोर्ट ने कहा कि यदि महिला ससुरालवालों के साथ सामंजस्य की कमी के चलते अलग रहती है, तो इसे मानसिक क्रूरता नहीं कह सकते. जस्टिस डॉ अजय कुमार मुखर्जी ने कहा कि ऐसा कोई ठोस साक्ष्य नहीं है, जिससे यह साबित हो कि पति या अन्य ससुराल वालों ने ऐसा जान-बूझकर कोई कृत्य किया हो. सिर्फ सामंजस्य न बिठा पाने या मधुर संबंधों के अभाव में पत्नी को दूसरों के घर पर रहने के लिए मजबूर होना, क्रूरता की परिभाषा में नहीं आता.
क्या है मामला : पत्नी का आरोप है कि विवाह बाद ही पति व उसके परिजन उसे प्रताड़ित करने लगे, जिस कारण ससुराल छोड़ना पड़ा. उसने यह भी कहा कि मायके से मिला सारा सामान जबरन ससुराल में रोक लिया गया और पति ने उसके पिता से आर्थिक धोखाधड़ी भी की. आरोप यह भी है कि पति ने उसे थप्पड़ मारा. लातों से मारा और गला दबाने की कोशिश की. वहीं, पति की ओर से पेश वकील ने तर्क दिया कि पत्नी का विवाहेतर संबंध है और जब पति ने इस पर आपत्ति जतायी, तो पत्नी ने ही उसे धमकाना शुरू कर दिया. यह मुकदमा सिर्फ प्रताड़ित करने और झूठे आरोपों में फंसाने की कोशिश है.
अदालत ने गवाहों के बयानों का अवलोकन करते हुए पाया कि केवल एक दिन झगड़े और मारपीट का आरोप सामने आया. इस तरह की एकमात्र घटना आइपीसी की धारा 498ए की आवश्यक शर्तों को पूरा नहीं करती. अंततः कोर्ट ने कहा कि शिकायत में ससुराल वालों के खिलाफ कोई ठोस आरोप नहीं है, इसलिए वे आइपीसी की धारा 498ए के तहत दंडनीय नहीं ठहराये जा सकते.
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