कच्चे जूट की भारी कमी से जूट उद्योग संकट में

भारत का पारंपरिक जूट उद्योग गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है. कच्चे जूट की तीव्र कमी के चलते सरकार को खाद्यान्न खरीद व्यवस्था बचाने के लिए जूट की जगह प्लास्टिक एचडीपीइ और पीपी बैग के उपयोग की डाइल्यूशन नीति को तेजी से अपनाना पड़ रहा है.

By AKHILESH KUMAR SINGH | December 24, 2025 1:42 AM

सरकार डाइल्यूशन नीति पर निर्भर

संवाददाता, कोलकाताभारत का पारंपरिक जूट उद्योग गंभीर संकट के दौर से गुजर रहा है. कच्चे जूट की तीव्र कमी के चलते सरकार को खाद्यान्न खरीद व्यवस्था बचाने के लिए जूट की जगह प्लास्टिक एचडीपीइ और पीपी बैग के उपयोग की डाइल्यूशन नीति को तेजी से अपनाना पड़ रहा है. बीते महीनों में जूट बैग की खपत घटाने, स्टॉक होल्डिंग सीमा तय करने और मिलों के उत्पादन पर नियंत्रण जैसे कई कदम उठाए गए, लेकिन कच्चे जूट के दाम नरम नहीं पड़े. इससे साफ है कि समस्या कालाबाजारी नहीं, बल्कि वास्तविक आपूर्ति संकट की है. संशोधित आपूर्ति योजना में 11.20 लाख गांठ का अंतर: तीसरी संशोधित जूट आपूर्ति योजना में संकट की गंभीरता साफ दिखती है. जहां कुल अनुमानित आवश्यकता 19.03 लाख गांठ थी, वहीं अंतिम आवंटन घटकर केवल 7.83 लाख गांठ रह गया. यानी 11.20 लाख गांठ का बड़ा अंतर सामने आया. इस कमी को प्राकृतिक रेशे से पूरा करना असंभव मानते हुए सरकार ने खरीफ विपणन मौसम 2025-26 और रबी विपणन मौसम 2026-27 के लिए बड़े पैमाने पर एचडीपीइ और पीपी बैग के उपयोग की प्रक्रिया तेज कर दी है. जो व्यवस्था पहले अस्थायी मानी जाती थी, वह अब मजबूरी बनती जा रही है. जूट उद्योग का भविष्य खतरे में उद्योग विशेषज्ञों का मानना है कि लंबे समय तक डाइल्यूशन जारी रहने से जूट का बाजार हिस्सा स्थायी रूप से कमजोर हो सकता है. उत्पादन चक्र टूटने, कुशल श्रमिकों के बाहर जाने और बढ़ते वित्तीय दबाव से जूट उद्योग की बुनियाद हिलने का खतरा है. यह संकट कच्चे माल की उपलब्धता, मूल्य नियंत्रण और नीति प्रवर्तन के बीच गहरे असंतुलन की ओर संकेत कर रहा है.

मिलों का उत्पादन ठप, मजदूरों पर सीधा असर

कच्चे जूट की सीमित उपलब्धता और जनवरी 2026 के लिए नये जूट बैग की आपूर्ति शून्य होने से जूट मिलों का उत्पादन ठप होने के कगार पर है. कई मिलों में काम के दिन और शिफ्ट घटाये गये हैं, जबकि कुछ मिलें केवल पुराने ऑर्डर निपटाने तक सीमित रह गयीं हैं. इसका सीधा असर मजदूरों की रोजगार सुरक्षा, वेतन भुगतान और मिलों की वित्तीय स्थिति पर पड़ रहा है. सरकार ने राज्यों को चेतावनी दी है कि यदि जूट या डाइल्यूटेड पैकेजिंग की व्यवस्था नहीं हुई, तो खाद्यान्न खरीद में बाधा की जिम्मेदारी राज्यों की होगी और कटे आवंटन की बहाली नहीं होगी.

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