कच्चे जूट की कीमत 11 हजार रुपये क्विंटल के पार
कच्चे जूट की कीमतें 11,000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर को पार कर जाने और बाजार में विक्रेताओं के लगभग पूरी तरह गायब हो जाने से देश का जूट उद्योग गंभीर संकट में फंस गया है. पश्चिम बंगाल की कई जूट मिलों ने उत्पादन में कटौती, शिफ्ट कम करने और कुछ मामलों में संचालन अस्थायी रूप से स्थगित करने का निर्णय लिया है.
कोलकाता.
कच्चे जूट की कीमतें 11,000 रुपये प्रति क्विंटल के स्तर को पार कर जाने और बाजार में विक्रेताओं के लगभग पूरी तरह गायब हो जाने से देश का जूट उद्योग गंभीर संकट में फंस गया है. पश्चिम बंगाल की कई जूट मिलों ने उत्पादन में कटौती, शिफ्ट कम करने और कुछ मामलों में संचालन अस्थायी रूप से स्थगित करने का निर्णय लिया है. उद्योग सूत्रों के अनुसार, जगद्दल जूट मिल और महादेव जूट मिल ने फिलहाल अपना संचालन निलंबित कर दिया है, जबकि कई अन्य मिलें न्यूनतम क्षमता पर काम कर रही हैं. आने वाले दिनों में और मिलों के उत्पादन घटाने या बंद होने की आशंका जतायी जा रही है. हुगली औद्योगिक बेल्ट से प्राप्त आंकड़ों के अनुसार, बड़ी संख्या में जूट मिलें अब केवल 10 से 15 शिफ्ट प्रति सप्ताह तक सीमित हो गयी हैं, जिसे व्यावसायिक रूप से टिकाऊ नहीं माना जाता. अपेक्षाकृत बेहतर स्थिति वाली मिलें भी कच्चे जूट की बचत कर उत्पादन चला रही हैं, क्योंकि कीमतों में लगातार वृद्धि हो रही है और आपूर्ति की स्थिति अनिश्चित बनी हुई है. मिल प्रबंधन का कहना है कि इतनी ऊंची कीमतों के बावजूद व्यापारी और स्टॉकिस्ट कच्चा जूट बेचने से परहेज कर रहे हैं, क्योंकि उन्हें कीमतों में और बढ़ोतरी की उम्मीद है. इसके चलते मिलों की उत्पादन योजनाएं पूरी तरह प्रभावित हो गयी हैं. स्थिति तब और गंभीर हो गयी, जब जूट एडवाइजरी ग्रुप की बैठकों में कच्चे जूट की उपलब्धता, जमाखोरी और मूल्य अस्थिरता पर चर्चा के बावजूद जमीनी स्तर पर कोई प्रभावी कार्रवाई नजर नहीं आयी. उद्योग जगत का आरोप है कि स्टॉक लिमिट जैसे आदेश कागजों तक ही सीमित रह गये हैं. निरीक्षण, छापेमारी या दंडात्मक कार्रवाई के अभाव में बाजार पूरी तरह नियंत्रण से बाहर हो चुका है. इस बीच, न्यायालय के आदेश के अनुपालन में कपड़ा मंत्रालय और जूट आयुक्त कार्यालय द्वारा जूट बैग की कीमतों में संशोधन किए जाने के बाद मिलों ने बकाया महंगाई भत्ता (डीए) का भुगतान शुरू कर दिया है.हालांकि उद्योग संगठनों का कहना है कि यह संशोधन कच्चे जूट की बढ़ती लागत और तैयार उत्पाद की वसूली के बीच बढ़ती खाई को पाटने में नाकाम रहा है. ऊंची कच्ची सामग्री लागत और सीमित नकदी प्रवाह के बीच डीए भुगतान मिलों के लिए दिन-ब-दिन असहनीय होता जा रहा है.गौरतलब रहे कि पिछले सप्ताह डिप्टी जूट कमिश्नर और राज्य के श्रम मंत्री के बीच हुई उच्चस्तरीय बैठक से उद्योग को राहत की उम्मीद थी, लेकिन बैठक से कोई ठोस निर्णय सामने नहीं आया. न तो बाजार नियंत्रण के लिए कोई नयी व्यवस्था घोषित की गयी और न ही जमाखोरी के खिलाफ प्रभावी कार्रवाई का संकेत मिला. उद्योग का मानना है कि कच्चे माल की नीति, मूल्य निर्धारण और श्रम स्थिरता के बीच समन्वय के अभाव ने संकट को और गहरा कर दिया है.
जमाखोरी और आपूर्ति संकट से बढ़ी चिंता : उद्योग जगत ने चेतावनी दी है कि यदि नयी स्टॉक कंट्रोल व्यवस्था के बावजूद जमाखोरों से कच्चा जूट बाजार में नहीं आया, तो आने वाले दिनों में और अधिक मिलों के उत्पादन घटने या बंद होने की नौबत आ सकती है. इसका सीधा असर हजारों श्रमिकों की रोजगार सुरक्षा, जूट किसानों और सरकारी खाद्यान्न पैकेजिंग व्यवस्था पर पड़ेगा. उद्योग संगठनों का स्पष्ट कहना है कि यदि तत्काल और सख्त बाजार हस्तक्षेप नहीं किया गया, तो यह संकट जल्द ही पूर्ण औद्योगिक और श्रम आपात स्थिति का रूप ले सकता है.डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है
