वज्रपात से मौत रोकने को दक्षिण बंगाल में लगाये जायेंगे 75 हजार ताड़ के पौधे

ग्रामीण बंगाल की पहचान रहे ताड़ के पेड़ अब धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं. सड़कों, खेतों और तालाबों के किनारे कतारों में खड़े ऊंचे ताड़ वृक्ष कभी गांवों की प्राकृतिक छवि का हिस्सा थे, लेकिन अनावश्यक कटाई, तेजी से हो रहे शहरीकरण और कृषि भूमि के विस्तार के कारण इनकी संख्या में भारी गिरावट आयी है.

By BIJAY KUMAR | November 17, 2025 10:57 PM

कोलकाता.

ग्रामीण बंगाल की पहचान रहे ताड़ के पेड़ अब धीरे-धीरे कम होते जा रहे हैं. सड़कों, खेतों और तालाबों के किनारे कतारों में खड़े ऊंचे ताड़ वृक्ष कभी गांवों की प्राकृतिक छवि का हिस्सा थे, लेकिन अनावश्यक कटाई, तेजी से हो रहे शहरीकरण और कृषि भूमि के विस्तार के कारण इनकी संख्या में भारी गिरावट आयी है. इसका सीधा असर दक्षिण बंगाल के जिलों में देखा जा रहा है, जहां बिजली गिरने से होने वाली मौतों में लगातार वृद्धि हुई है. इसी स्थिति को बदलने के लिए राज्य के वन विभाग ने एक बड़ी पहल की है. आगामी मॉनसून में दक्षिण बंगाल के चार जिलों बांकुड़ा, पुरुलिया, बीरभूम और पूर्व बर्दवान में लगभग 75,000 ताड़ के पौधे लगाने का लक्ष्य तय किया गया है. यह योजना पायलट प्रोजेक्ट के रूप में करीब 300 किलोमीटर लंबे सड़क मार्ग के दोनों ओर चरणबद्ध तरीके से लागू की जायेगी. मुख्य वनपाल (दक्षिण पश्चिम वृत्त) विद्युत सरकार ने बताया कि इन जिलों में बड़े पैमाने पर ताड़ के पेड़ लगाने की विस्तृत योजना तैयार कर ली गयी है.

वन विशेषज्ञों के अनुसार, ताड़ के पेड़ प्राकृतिक रूप से बिजली गिरने से बचाव में बेहद प्रभावी माने जाते हैं. लगभग 100 फीट से अधिक ऊंचाई वाले ये वृक्ष गहरी जड़ों के कारण प्राकृतिक ‘अर्थिंग’ की तरह काम करते हैं और बिजली को सीधे जमीन में प्रवाहित कर देते हैं. इससे आसपास के लोग, घर और संस्थान अपेक्षाकृत सुरक्षित रहते हैं. इसी कारण प्रशासन स्कूलों, कॉलेजों, अस्पतालों और घनी आबादी वाले क्षेत्रों में ताड़ के पौधे लगाने पर जोर दे रहा है. दक्षिण बंगाल के कई जिलों विशेषकर पुरुलिया और बांकुड़ा में बिजली गिरने से हर साल 60 से 70 लोगों की मौत दर्ज होती है. विशेषज्ञों का मानना है कि ताड़ और खजूर के पेड़ों की संख्या में गिरावट ने इस जोखिम को बढ़ाया है.

योजना के तहत बांकुड़ा में 150 किमी, पुरुलिया में 100 किमी और बीरभूम व बर्दवान में कुल 50 किमी सड़कों के किनारे चार-चार मीटर की दूरी पर ताड़ के पौधे लगाये जायेंगे. ऐसे स्थान चुने जा रहे हैं जो वन भूमि में शामिल नहीं हैं, जिससे पौधों की देखभाल और सुरक्षा आसान होगी. बड़ी संख्या में ताड़ के बीज एकत्र किये जा चुके हैं और पौधे तैयार करने की प्रक्रिया शुरू हो चुकी है.

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