आदिवासी संगठनों से संपर्क की कोशिश में माओवादी

अमित शर्मा, कोलकाता : राज्य में बांकुड़ा, पश्चिम मेदिनीपुर, पुरुलिया और झाड़ग्राम जिले जंगलमहल के नाम से जाने जाते हैं. यहां कुछ वर्षों तक माओवादियों का दबदबा था. हालांकि राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद करीब छह वर्ष इन इलाकों में माओवादी गतिविधियों पर करीब-करीब अंकुश लग गया, लेकिन कई सालों तक चुप्पी के बाद […]

By Prabhat Khabar Print Desk | February 25, 2019 2:58 AM
अमित शर्मा, कोलकाता : राज्य में बांकुड़ा, पश्चिम मेदिनीपुर, पुरुलिया और झाड़ग्राम जिले जंगलमहल के नाम से जाने जाते हैं. यहां कुछ वर्षों तक माओवादियों का दबदबा था. हालांकि राज्य में सत्ता परिवर्तन के बाद करीब छह वर्ष इन इलाकों में माओवादी गतिविधियों पर करीब-करीब अंकुश लग गया, लेकिन कई सालों तक चुप्पी के बाद माओवादी दोबारा संगठित होने का प्रयास कर रहे हैं.
जंगलमहल इलाके में आदिवासी समुदाय के कई संगठनों से गुप्त रूप से माओवादियों द्वारा संपर्क साधने की कोशिश का अंदेशा जताया जा रहा है. इसी वर्ष लोकसभा चुनाव होने वाला है. ऐसी गतिविधियां सुरक्षा के लिए गंभीर खतरा बन सकती हैं.
मौजूदा समय में जंगलमहल इलाके में आदिवासी समुदाय के हितों का मुद्दा उठाकर सभा व अन्य कार्यक्रम ज्यादा हो रहे हैं. इन्हीं मुद्दों को लेकर माओवादी भी अपनी ताकत बढ़ाने के जुगत में हैं. सूत्रों के अनुसार यह अंदे‍शा सेंट्रल इंटेलिजेंस ब्यूरो (आइबी) और सीआरपीएफ की खुफिया विभाग की ओर से जताया गया है.
झारखंड से सटे इलाकों में अधिक सर्तकता जरूरत
सूत्रों के अनुसार खुफिया विभाग की ओर से जंगलमहल इलाके खासतौर से झारखंड के सीमा सटे इलाकों में ज्यादा सतर्कता बरतने को लेकर आगाह किया जा रहा है. राज्य में झाड़ग्राम के बांदवान, बेलपहाड़ी, बीनपुर, जामबनी, लालगढ़, शालबनी, गोपीबल्लपुर और पुरुलिया के बरहाबाजार, मानबाजार क्षेत्र में कभी माओवादियों का खासा दबदबा था. ये क्षेत्र सीमावर्ती हैं. बताया जा रहा है कि इन इलाकों में माओवादी नेता असीम मंडल गिरोह के सदस्य संगठित होने की कोशिश में हैं.
किशनजी की मौत के बाद बिखराव हुआ शुरू
किसी दौर में जंगलमहल में पांच सौ से ज्यादा माओवादी सक्रिय थे. वर्ष 2008 से वर्ष 2013 तक माओवादियों ने 739 घटनाओं को अंजाम दिया, जिसमें 423 लोगों की जान गयी. साथ ही 58 सुरक्षा बल के जवान शहीद हुए थे जबकि 56 माओवादियों को मार भी गिराया गया था. वर्ष 2011 में माओवादी के शीर्ष नेता किशनजी को मुठभेड़ में मार गिराया गया था
. उसकी मौत के बाद से ही पश्चिम बंगाल के जंगलमहल में बिखराव होना शुरू हो गया. कई माओवादी नेता और कैडर ने आत्मसमर्पण कर दिया तो कई कैडर इधर-उधर बिखर गये. सूत्रों की माने तो पिछले साल यानी वर्ष 2018 से ही माओवादी संगठित होने की कोशिश में लगे हुए हैं. अब वे आदिवासी संगठनों से संपर्क साधने की कोशिश में हैं.
बदले राजनीतिक समीकरण का फायदा उठाने की कोशिश
जानकारों का मानना है कि गत दो वर्षों में जंगलमहल इलाके में राजनीतिक समीकरण बदला है. गत वर्ष राज्य में हुए पंचायत चुनाव में वाममोरचा तीसरे स्थान पर चला गया जबकि भाजपा दूसरे स्थान पर रहा. इलाके में राजनीतिक हिंसा की कई घटनाएं भी सामने आयी हैं. ऐसे में यह नहीं कहा जा सकता है कि माओवादी बदल रहे राजनीतिक समीकरण का फायदा उठाने की कोशिश नहीं करें.
पुलिस के एक आला अधिकारी का कहना है कि 1990 के दशक के आखिरी दौर में कुछ ऐसे ही समीकरण बदले थे जिससे माओवादियों को पैर जमाने में मदद मिली थी. वर्ष 2008 से वर्ष 2011 तक माओवादियों ने जंगलमहल में अपनी पैठ ही जमा ली थी.
जंगलमहल में सीआरपीएफ की आठ बटालियन तैनात
जंगलमहल इलाके में फिलहाल सीआरपीएफ की आठ बटालियन तैनात है. इनमें बटालियन 50, 66, 165, 167, 169, 184, 207 कोबरा, 232 (महिला) हैं.
माओवादी घटनाओं में जान गंवाने वालों की संख्या
वर्ष आम लोग मरे जवान मरे
2008 19 7
2009 144 14
2010 223 35
2011 43 02

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