हाइकोर्ट: खंडपीठ ने राज्य सरकार से किये कई सवाल, धर्मनिरपेक्ष माहौल है तो विसर्जन पर पाबंदी क्यों?

कोलकाता: कलकत्ता हाइकोर्ट में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन को लेकर दायर मामले की बुधवार को सुनवाई करते हुए अदालत ने राज्य सरकार के फैसले पर सख्त टिप्पणी की. कलकत्ता हाइकोर्ट के नये कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राकेश तिवारी और न्यायाधीश हरीश टंडन की खंडपीठ ने राज्य सरकार के फैसले पर कई सवाल खड़े किये. इस मामले में […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | September 21, 2017 9:20 AM

कोलकाता: कलकत्ता हाइकोर्ट में दुर्गा प्रतिमा विसर्जन को लेकर दायर मामले की बुधवार को सुनवाई करते हुए अदालत ने राज्य सरकार के फैसले पर सख्त टिप्पणी की. कलकत्ता हाइकोर्ट के नये कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राकेश तिवारी और न्यायाधीश हरीश टंडन की खंडपीठ ने राज्य सरकार के फैसले पर कई सवाल खड़े किये. इस मामले में अभी कोई फैसला नहीं आया है. गुरुवार को फिर सुनवाई होगी.

दुर्गा प्रतिमा विसर्जन पर राज्य सरकार द्वारा नियंत्रण लगाये जाने पर खंडपीठ ने पूछा कि आखिर पाबंदी और नियंत्रण का आधार क्या है? कानून व्यवस्था के बाधित होने की आशंका का आधार या सबूत कहां है? राज्य सरकार कोई भी बात को सोच सकती है लेकिन अपनी सोच को बिना किसी ठोस आधार के जनता पर थोप नहीं सकती. यथोचित नियंत्रण होना चाहिए. अदालत ने कहा कि मुख्यमंत्री कह रही हैं कि राज्य में सांप्रदायिक सौहार्द और धर्मनिरपेक्ष महौल है. फिर पाबंदी क्यों? यदि शांति भंग होने का खतरा है तो यह दुर्भाग्यपूर्ण है. यदि दो समुदाय सौहार्द्रपूर्ण तरीके से रह रहे हैं तो पाबंदी क्यों लगायी जा रही है? पुलिस अधीक्षक को लगता है कि शांति भंग होगी तो उन्हें डीएम को इसकी सूचना देनी होगी और डीएम को यह बात लिखित रूप से कहनी होगी. डीएम द्वारा लिखित बाते कहां हैं? सबकुछ नियम के मुताबिक होना चाहिए. डीएम की इजाजत होनी चाहिए.

राज्य सरकार नकारात्मक भाषा बोल रही है. सजा तभी दी जा सकती है जब कोई कानून भंग हो. अभी तक ऐसा कुछ नहीं हुआ है. फिर पाबंदी क्यों लगायी जा रही है. माइक्रोफोन के इस्तेमाल के संबंध में नियंत्रण लगाया जा सकता है. किसी भी नागरिक का मौलिक अधिकार क्या छीना जा सकता है? संविधान के तत्व के खिलाफ अधिसूचना जारी नहीं की जा सकती है. यदि पूर्व में कोई घटना नहीं घटी है तो दोनों ही समुदाय एकसाथ क्यों नहीं उत्सव मना सकते हैं ? कलकत्ता हाइकोर्ट के नये कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश राकेश तिवारी का कहना था कि उनके कई मुस्लिम दोस्त हैं. होली और ईद तथा बकरीद वह एकसाथ मनाते आये हैं. सुनवाई में राज्य सरकार की ओर से एडवोकेट जनरल किशोर दत्त तथा अतिरिक्त एडवोकेट जनरल अभ्रतोष मजुमदार थे.

गौरतलब है कि पिछले साल भी राज्य सरकार ने प्रतिमा विसर्जन को नियंत्रित किया था, जिसमें हाइकोर्ट को हस्तक्षेप करना पड़ा.

क्या है मामला: राज्य सरकार ने एक अक्तूबर को मुहर्रम के मद्देनजर प्रतिमा विसर्जन पर रोक लगा दी है. सरकार का कहना है कि 30 सितंबर को विजयदशमी पर रात दस बजे तक प्रतिमा विसर्जन हो सकता है. अगले दिन मोहर्रम के मद्देनजर कहीं कोई गड़बड़ी न हो इसलिए प्रतिमा विसर्जन पर रोक रहेगी. फिर दो अक्तूबर से प्रतिमाएं विसर्जित की जा सकती हैं. मुख्यमंत्री ममता बनर्जी पहले ही स्थिति स्पष्ट कर चुकी हैं. उनका कहना था कि सिर्फ एक अक्तूबर को प्रतिमाएं विसर्जित नहीं होंगी. विजय दशमी पर प्रतिमा विसर्जन पर कोई रोक नहीं है. राज्य सरकार के फैसले के खिलाफ हाइकोर्ट में याचिका दायर की गयी है.

प्रशासन अपनी अक्षमता के चेहरे को पाबंदी लगाकर छिपा रही है. दोनों समुदायों को एकसाथ सौहार्द्र में रहने देना चाहिए. कोई रेखा नहीं खींचनी चाहिए. मुख्यमंत्री कहती हैं कि यहां का सांप्रदायिक सौहार्द दूसरों के लिए उदाहरण है तो ये क्या हो रहा है?

राकेश तिवारी, कार्यवाहक मुख्य न्यायाधीश

यदि सरकार को लगता है कि हाइकोर्ट पर ही कोई उपग्रह गिर सकता है तो फिर क्या हाइकोर्ट खाली किया जा सकता है? अगर दशहरा और मुहर्रम एकसाथ पड़ेगा तो फिर क्या किया जायेगा? सांप्रदायिक सौहार्द के खतरे की बात कहकर राज्य सरकार क्या भेदभाव की रेखा नहीं खींच रही?

हरीश टंडन, न्यायाधीश

राज्य में राजनीतिक साजिश हो रही है. हिंसा फैलाने की कोशिश की जा रही है. मैंने अबतक दर्जनों पूजा आयोजनों का उदघाटन किया है. अन्य राज्यों के मंदिरों में भी गयी हूं. फिर भी मुझ पर तुष्टीकरण की राजनीति करने के आरोप लगाये जा रहे हैं.

ममता बनर्जी, मुख्यमंत्री