पांच जनवरी तक संडे-ओटी के बकाया के साथ अदा करें दिसंबर की पगार, नहीं तो होगा आंदोलन

इसीएल में फिर एकबार यूनियन और प्रबंधन आमने-सामने हैं. इसबार मुद्दा बकाया वेतन को लेकर है.

By AMIT KUMAR | December 25, 2025 9:31 PM

आसनसोल.

इसीएल में फिर एकबार यूनियन और प्रबंधन आमने-सामने हैं. इसबार मुद्दा बकाया वेतन को लेकर है. गुरुवार को कोलियरी मजदूर सभा (सीएमएस) मुख्यालय आसनसोल में इसीएल के जुड़े जॉइंट एक्शन कमेटी (जैक) के नेताओं की बैठक में निर्णय हुआ कि पांच जनवरी तक इसीएल प्रबंधन अपने श्रमिकों का संडे और ओवरटाइम का बकाया वेतन के साथ दिसंबर माह का वेतन का भुगतान नहीं किया, तो आंदोलन होगा. इसे लेकर इसीएल के सीएमडी को अल्टीमेटम भरा पत्र भी भेज दिया गया. बैठक में जैक में शामिल एटक से संबद्ध कोलियरी मजदूर सभा (सीएमएस) के महासचिव गुरुदास चक्रवर्ती, सीटू से संबद्ध भारतीय कोलियरी मजदूर सभा(सीएमएसआइ) के महासचिव मनोज दत्ता, एचएमएस से संबद्ध कोलियरी मजदूर कांग्रेस (सीएमयू) के महासचिव एसके पांडेय, इंटक से संबद्ध कोलियरी मजदूर यूनियन (सीएमयू) के महासचिव चंडी बनर्जी, आइएनटीटीयूसी से संबद्ध कोयला खदान मजदूर कांग्रेस (केकेएससी) के महासचिव व जामुड़िया के विधायक हरेराम सिंह, बीएमएस से संबद्ध खान श्रमिक कांग्रेस (केएससी) के अध्यक्ष विनोद सिंह, टीयूसीसी से संबद्ध पश्चिम बंगाल कोलियरी मजदूर यूनियन के महासचिव भवानी आचार्या, यूटीयूसी से संबद्ध पश्चिम बंगाल खान मजदूर सभा के महासचिव माधव बनर्जी ने उपस्थित रहे और सीएमडी को भेजा गया अल्टीमेटम लेटर पर सभी ने हस्ताक्षर किया.गौरतलब है कि नवंबर माह से इसीएल में श्रमिकों के वेतन को लेकर समस्या उत्पन्न हुई है. प्रतिमाह में वेतन दो तारीख तक श्रमिकों के खाते में आ जाता था, नवम्बर माह में यह राशि 12 तारीख को श्रमिकों के खाते में आया. दिसंबर माह में प्रबंधन ने फंड की कमी के कारण 12 और 22 दिसंबर को दो किस्तों में वेतन भुगतान करने की बात कहते ही यूनियन नेता भड़क गये और बैठक छोड़कर निकल गये. प्रबंधन ने 22 तारीख को श्रमिकों के खाते में वेतन की राशि भेज दी, लेकिन संडे और ओवरटाइम (ओटी) का पैसा नहीं दिया है. जिसके श्रमिकों के वेतन में औसत 25 से 30 हजार रुपये कम आया है. इस मुद्दे को लेकर ही जैक के नेताओं ने गुरुवार को बैठक की और सीएमडी को अल्टीमेटम लेटर दिया. सीएमएस महासचिव श्री चक्रवर्ती ने कहा कि प्रबंधन कह रहा है कि उसके पास फंड नहीं है, कोयला बिक नहीं रहा है, वेतन नहीं दे पायेगा. इसमें श्रमिक की गलती कहां है. भूमिगत कोयला खदानों से उत्पादन बढ़ाने को लेकर अंतरराष्ट्रीय सेमिनार पर करोड़ो रूपये खर्च किया जा रहा है, अफसरों की सुविधा में कोई कमी नहीं है, श्रमिकों के वेतन पर ही संकट पैदा हो जाता है. यूनियन यह किसी तरह बर्दास्त नहीं करेगी. पांच जनवरी तक नवम्बर के वेतन का बकाया राशि और दिसंबर माह का पूरा वेतन का भुगतान नहीं होने पर चक्का जाम किया जायेगा.

हर कंपनी की हालत पतली, पहले से कमजोर इसीएल हुई ज्यादा प्रभावित

इसीएल के सीएमडी सतीश झा ने कहा कि कंपनी के पास श्रमिकों के वेतन भुगतान करने का पैसा नहीं है. विभिन्न विद्युत उत्पादन करनेवाली कंपनियों के पास इसीएल का 1550 करोड़ रुपये बकाया है, जिसमें अकेले डीवीसी के पास ही करीब 450 करोड़ रुपये रुपये है. जिसमें 50 करोड़ रुपये कुछ दिनों पहले ही दिया है. इसप्रकार एनटीपीसी, आंध्रप्रदेश पावर डेवलपमेंट कॉर्पोरेशन, तमिलनाडु आदि अनेकों पीएसयू के पास इसीएल का पैसा बकाया है. यह बकाया लंबे समय से चला आ रहा है. 31 मार्च 2025 को 1350 करोड़ का बकाया था, जो बढ़कर 1550 करोड़ रुपये हो गया. सबसे बड़ी समस्या पावर प्लांटों में कोयले की खपत कम हो गयी है. बिजली का उत्पादन अन्य स्रोतों से ज्यादा हो रहा है. पावर प्लांटों में प्लांट लोड फैक्टर (पीएलएफ) 80 फीसदी से अधिक होना चाहिए, जो कुछ प्लांटों में 40 फीसदी तक आ गया है. कोयला आधारित बिजली उत्पादन अक्तूबर माह तक नेगेटिव ग्रोथ में रहा.

जिसके कारण कोयले की खपत कम हुई और डिस्पैच प्रभावित हुआ है. डिस्पैच होते रहने से कुछ न कुछ पैसा आता रहता था, जो रुक गया और उधारी का पैसा भी नहीं मिल रहा है. जिसके कंपनी के पास फंड की कमी हो गयी है और श्रमिकों का वेतन के साथ अन्य अनेकों कार्य प्रभावित हो रहा है. वर्तमान समय में सभी कोल कम्पनियों की हालत पिछले साल के मुकाबले काफी खराब है. इसीएल लंबे समय तक बीआइएफआर में रही है. पिछले तीन साल से मुनाफा कमा रही है. कंपनी क्युमुलेटिव लॉस में ही है. इसलिए इसीएल पर इस बुरे समय का असर ज्यादा पड़ा है. अगले सप्ताह मंत्रालय में बकाया के मुद्दे पर चर्चा होगी, वहां से समस्या के समाधान की उम्मीद है. नवम्बर माह तक कंपनी अपने उत्पादन लक्ष्य 29 मिलियन टन की जगह एक मिलियन टन कम उत्पादन किया और डिस्पैच दो मिलियन टन कम हुआ है. इसीएल के लिए थोड़ी राहत की बात यह है कि यहां पर हाइग्रेड नॉन-कोकिंग कोल है, जिसकी खपत अन्य जगहों पर भी होती है. जिस कंपनी के पास सिर्फ पावर ग्रेड का कोल है, उनकी हालत और भी खराब है.

डिस्क्लेमर: यह प्रभात खबर समाचार पत्र की ऑटोमेटेड न्यूज फीड है. इसे प्रभात खबर डॉट कॉम की टीम ने संपादित नहीं किया है