दिहाड़ी मजदूर की दर्दभरी दास्तान: पत्नी की आंखों की रोशनी लौटाने के लिए दर-दर की ठोकर

पश्चिम बर्दवान जिले के जामुड़िया विधानसभा क्षेत्र के भुरी गांव का एक परिवार इस वक्त गहरे संकट में है. राहुल बंद्योपाध्याय, जो दिहाड़ी मजदूरी करके किसी तरह अपने परिवार का पेट पालते हैं, अपनी पत्नी की आंखों का इलाज कराने के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं.

By AMIT KUMAR | September 17, 2025 9:24 PM

जामुड़िया.

पश्चिम बर्दवान जिले के जामुड़िया विधानसभा क्षेत्र के भुरी गांव का एक परिवार इस वक्त गहरे संकट में है. राहुल बंद्योपाध्याय, जो दिहाड़ी मजदूरी करके किसी तरह अपने परिवार का पेट पालते हैं, अपनी पत्नी की आंखों का इलाज कराने के लिए दर-दर भटकने को मजबूर हैं.

खुशियों पर भारी पड़ा दुखों का पहाड़

वर्ष 2020 में राहुल का विवाह अनिता बंद्योपाध्याय से हुआ था. शादी के बाद उनके घर एक बेटी का जन्म हुआ, जिससे परिवार में खुशियां आ गयी थीं. लेकिन ये खुशियां ज्यादा दिन नहीं टिक पायीं. बेटी के जन्म के सात महीने बाद ही, अनिता की आंखों में परेशानी शुरू हो गयी. पहले उन्हें धुंधला दिखाई देने लगा और फिर धीरे-धीरे उनकी आंखों की रोशनी पूरी तरह चली गयी. राहुल ने स्थानीय डॉक्टरों से लेकर दुर्गापुर के बड़े अस्पतालों और यहां तक कि बेंगलुरु तक अपनी पत्नी का इलाज करवाया, लेकिन पैसे की कमी और इलाज के भारी खर्च के कारण उन्हें बीच में ही इलाज छोड़ना पड़ा. अब अनिता पूरी तरह से दृष्टिहीन हो चुकी हैं.

जिंदगी और पत्नी के इलाज के बीच संघर्ष

रोज दिहाड़ी मजदूरी से राहुल का घर जैसे-तैसे चल पाता है. घर में मां और बेटी की जिम्मेदारी के साथ पत्नी का इलाज कराना उनके लिए लगभग असंभव हो गया है. जो थोड़ी-बहुत बचत थी, वह इलाज में पहले ही खत्म हो चुकी है. अब उनके पास कोई रास्ता नहीं बचा है और वह गांव में लोगों से आर्थिक मदद मांग रहे हैं.

राहुल कहते हैं, ‘मेरी पत्नी की आंखों का इलाज बहुत महंगा है. मैं इतना पैसा नहीं जुटा सकता. अगर कोई आगे आकर मदद करे या कोई नेक इंसान नेत्रदान करे, तो शायद मेरी पत्नी फिर से दुनिया देख पाये.’ गांव के लोगों का कहना है कि राहुल एक बहुत मेहनती और ईमानदार इंसान हैं, लेकिन गरीबी ने उन्हें तोड़ दिया है. अब उनका पूरा परिवार समाज से मदद की उम्मीद लगाये बैठा है.

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