जयंती पर जिनकी शायरी सोशल मीडिया पर वायरल रही, उनकी कब्र को संवारना क्यों भूले ‘जिम्मेदार’?

सोशल मीडिया पर मंगलवार को उर्दू के शायर मजाज लखनवी को याद करते दिखे. उनके लिखे तराने शेयर करते रहे. मगर उनकी कब्र का हाल बुरा है. जंगली बेल उनकी कब्र को ढंके हुए है. उनका जन्म 19 अक्टूबर 1911 को हुआ था.

By Prabhat Khabar | October 19, 2021 4:35 PM

Lucknow News: लखनऊ के निशातगंज के पेपरमिल कॉलोनी स्थित कब्रगाह में साहित्य जगत की नामचीन हस्ती का मकबरा है. मंगलवार की सुबह से लोग उन्हें सोशल मीडिया पर याद करते दिखे. उनके लिखे तराने शेयर करते रहे. मगर उनकी कब्र का हाल बुरा है. जंगली बेल उनकी दरकती कब्र को ढंके है. कब्र महान उर्दू शायर मजाज लखनवी की है. उनका जन्म 19 अक्टूबर 1911 को हुआ था.

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हम बात कर रहे हैं अपनी शायरी और नज़्म से साहित्य प्रेमियों को सुकून पहुंचाने वाले महान शायर मजाज लखनवी की. लखनऊ में उर्दू के शायर की कब्र है. कब्र को मरम्मत की दरकार है. यहां ना साफ-सफाई है और ना ही किसी का ध्यान. सवाल है उर्दू के रहनुमाओं से. इसको लेकर कोई भी कारगर कदम नहीं उठाया जाना बेचैनी पैदा करता है. मजाज की शायरी में गंगा-जमुनी तहजीब झलकती थी. उसकी एक मिसाल है, हिन्दू चला गया, न मुसलमान चला गया, इंसान की जुस्तुजू में इक इंसान चला गया.

19 अक्टूबर 1911 में फैजाबाद के रूदौली में पैदा हुए मजाज को पढ़ने के लिए आगरा के सेंट जोंस कॉलेज भेजा गया. यहां फानी, अकबराबादी और जज्बी की दोस्ती मिली. उनके सीने में दफन शायर का दिल धड़कने लगा. 1931 में वो ग्रेजुएशन के लिए अलीगढ़ आ गए. अलीगढ़ में चुगताई, अली सरदार जाफरी, जां निसार अख्तर, मंटो से वास्ता हुआ. यहीं उनका तखल्लुस पुख्ता तौर पर मजाज बन गया. मजाज लखनवी बॉलीवुड के नामचीन राइटर और गीतकार जावेद अख्तर के मामा थे. आज उनकी कब्र की हालत देखकर यकीन होता है कि हम पुरखों की विरासत को संजोने में कितने संजीदा हैं.

एक वरिष्ठ पत्रकार ने ट्वीट किया है, निशातगंज की टूटी कब्र. बलरामपुर अस्पताल की पुरानी इमरजेंसी… जिस पर गिरती बारिश की बूंदें… सवाल कर रही हैं? कहां हैं उर्दू के रहनुमा? कहां है मुसलमान वोटों के सौदागर? इसके साथ ही उन्होंने मजाज की एक शायरी भी शेयर की है, तिरे माथे पे ये आंचल बहुत ही ख़ूब है लेकिन, तू इस आंचल से परचम बना लेती तो अच्छा था. #Mazazkosalam


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मजाज लखनवी की कब्र की खस्ता हालत पर लखनऊ की संस्कृति पर विशेष रिसर्च से लोगों को उसके प्रति जागरूक करने का बीड़ा उठा रहे अभिनव सिन्हा दुखी हैं. अभिनव सिन्हा का कहना है अक्सर, देखा जाता है कि महान लोगों की बातों को तो लोग सोशल मीडिया पर शेयर करते हैं, मगर उनकी विरासत को संवारने के लिए कोई आगे नहीं आता है. वैसे, चलते-चलते बता दें मजाज लखनवी की कब्र पर लिखा है- अब इसके बाद सुबह है और सुबह-ए-नौ, मजाज़, हम पर हैं ख़त्म शामे ग़रीबाने लखनऊ.

(रिपोर्ट: नीरज तिवारी, लखनऊ)

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