मुलायम के टिकट बंटवारे से अखिलेश ने अपनाये ‘बागी” तेवर, बनायी उम्‍मीदवारों की नयी सूची

आरके नीरद... उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी में टिकट बंटवारे को लेकर कमजोर पड़ चुके हैं. इसके साथ ही समाजवादी पार्टी की छवि बदलने की उनकी मुहिम भी कमजोर पड़ती दिख रही है. पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक करने और अपने लोगों को टिकट दिलवाने की उनकी अब तक की सबसे बड़ी […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | December 29, 2016 6:48 PM

आरके नीरद

उत्तरप्रदेश के मुख्यमंत्री अखिलेश यादव समाजवादी पार्टी में टिकट बंटवारे को लेकर कमजोर पड़ चुके हैं. इसके साथ ही समाजवादी पार्टी की छवि बदलने की उनकी मुहिम भी कमजोर पड़ती दिख रही है. पार्टी के भीतर सब कुछ ठीक करने और अपने लोगों को टिकट दिलवाने की उनकी अब तक की सबसे बड़ी कोशिश भी खाली रही. अपने समर्थक विधायकों और मंत्रियों के साथ उन्हाेंने आज बैठक की थी. बैठक के पहले आैर उसके बाद भी उन्होंने पार्टी अध्यक्ष मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की. दूसरी मुलाकात के दौरान शिवपाल यादव भी पहुंचे, लेकिन कोई सार्थक बात नहीं बनी. अब अखिलेश ने करीब-करीब अंतिम पासा फेंका है और टिकट से बेदखल विधायकों-मंत्रियों को चुनाव लड़ने की तैयारी करने काे कहा है. अखिलेश पार्टी में रह कर बागी तेवर अपनाने पर उतर चुके हैं. उन्होंने इन्हें चुनाव लड़ाने का खुला भरोसा दे दिया है.सूत्रों के अनुसार, अखिलेश यादव ने भी अपनी तरफ से 167 उम्मीदवारों की सूची तैयार कर ली है. उन्होंने अपने समर्थकों को चुनाव के लिए पूरी तरह से तैयार रहने को भी कहा है.

दरअसल, 2003 में मुलायम सिंह यादव की सरकार आने के बाद समाजवादी पार्टी की जो छवि बनी थी, उसमें भय और आतंक की राजनीति निहित थी. उत्तरप्रदेश के लोग आपराधिक वारदातों के उस दौर को अब भी नहीं भूले हैं. तब राजनीतिक हत्याएं भी हुईं. भाजपा के विधायक कृष्णनंदन राय और बसपा विधायक राजू पाल भी इस दौर के शिकार हुए और मार दिये गये थे.

2012 के चुनाव में सपा को विधानसभा की 403 में से 226 सीटें मिली थीं और अखिलेश मुख्यमंत्री बने थे. तब उत्तरप्रदेश की अवाम के साथ-साथ देश के राजनीतिक समाज को भी समाजवादी पार्टी की छवि बदलती हुई दिखने लगी थी. युवा और नयी सोच के मुख्यमंत्री होने के अलावा अखिलेश के कुछ बड़े और कड़े फैसलों ने भी इस भरोसे को ताकत दी थी.

अखिलेश ने डीपी यादव जैसे दबंग नेता को पार्टी से निकालवाने का बड़ा कदम उठाया. कौमी एकता दल का सपा में विलय को रोका. कौमी एकता दल के अगुवा मुख्तार अंसारी की छवि डॉन की है. वह भाजपा विधायक कृष्णनंदन राय के कत्ल सहित 15 संगीन अपराध उनके नाम दर्ज हैं. वह भले चार बार से मऊ से विधायक चुने जाते रहे हैं, लेकिन उनकी छवि को लेकर अखिलेश कभी भरोसा नहीं कर सके. हालांकि इस विलय रोकने की एक वजह शिवपाल यादव भी रहे, जिनकी अंसारी से ज्यादा निकटता रही है.

लेकिन अखिलेश की इन कोशिशों को इस बार के चुनाव में पलीता लगता दिख रहा है. मुलायम सिंह ने बुधवार जो सूची जारी की, उसमें मुख्यतार अंसारी के भाई सिगबतुल्लाह का भी नाम है. उसे गाजीपुर के मुहम्मदबाद से टिकट दिया जा रहा है, जबकि अखिलेश के चहेते मंत्री, विधायक और नेता टिकट से बेदखल किये जा रहे हैं.

ऐसे में अखिलेश का बागी तेवर मुलायम सिंह यादव के लिए मुश्किलें पैदा कर सकती हैं.