Rourkela News: भारत के पहले रियल-टाइम लैंड मैपिंग स्वायत्त ड्रोन सिस्टम ‘भू-मानचित्र’ का एनआइटी ने हासिल किया पेटेंट

Rourkela News: एनआइटी राउरकेला के शोधार्थियों ने भारत के पहले रियल-टाइम लैंड मैपिंग स्वायत्त ड्रोन सिस्टम ‘भू-मानचित्र’ का पेटेंट हासिल किया है.

By BIPIN KUMAR YADAV | November 20, 2025 11:10 PM

Rourkela News: राष्ट्रीय प्रौद्योगिकी संस्थान (एनआइटी) राउरकेला के शोधकर्ताओं ने ‘भू-मानचित्र’ नामक एक उन्नत स्वायत्त ड्रोन सिस्टम विकसित किया है, जो आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस और यूएवी तकनीक की मदद से बिना इंटरनेट, बाहरी कंप्यूटर या मानवीय हस्तक्षेप के रियल-टाइम भूमि मानचित्र तैयार कर सकता है. यह तकनीक भारत में भूमि मानचित्रण की गति, सटीकता और विश्वसनीयता बढ़ाकर प्रशासन, कृषि, आपदा प्रबंधन और पर्यावरण संरक्षण के लिए बड़ी संभावनाएं खोलती है.

प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन और कृषि भूमि सर्वेक्षण में हो सकेगा उपयोग

एनआइटी राउरकेला के कंप्यूटर साइंस एवं इंजीनियरिंग विभाग में एसोसिएट प्रोफेसर प्रो संबित बख्शी के नेतृत्व में डॉ तन्मय कुमार बेहेरा, डॉ देबब्रता पॉल चौधरी और रिसर्च स्कॉलर कैमेलिया रे की टीम ने इस ‘भू-मानचित्र’ प्रणाली को विकसित किया है. इस नवाचार को भारतीय पेटेंट संख्या 573507 प्रदान किया गया है, जो इसके तकनीकी महत्व और मौलिकता को दर्शाता है. यह प्रणाली पूरी तरह स्वायत्त रूप से उड़ान भरते हुए खेतों, जंगलों, वनस्पति और शहरी क्षेत्रों की उच्च-सटीकता से पहचान कर उनका डिजिटल मानचित्र तैयार कर सकती है.

पारंपरिक मानचित्रण की चुनौतियों का होगा समाधान

भारत में अब तक भूमि मानचित्रण का बड़ा हिस्सा मैनुअल सर्वेक्षणों पर निर्भर रहा है, जिनमें जमीनी स्तर पर कर्मचारियों की टीम हफ्तों या महीनों तक माप और निरीक्षण का काम करती है. इस धीमी प्रक्रिया के कारण अद्यतन मानचित्र समय पर उपलब्ध नहीं हो पाते और तैयार मानचित्रों में असंगति व अस्थिरता की समस्या भी बनी रहती है. एनआइटी राउरकेला की शोध टीम ने इन समस्याओं को दूर करने के लिए एक हल्का डीप-लर्निंग मॉडल तैयार किया है, जो सीधे ड्रोन पर ही रियल-टाइम इमेज प्रोसेसिंग करता है. यह मॉडल लगभग 2.48 मिलियन पैरामीटर्स वाला है, इसलिए इसे चलाने के लिए भारी कंप्यूटिंग हार्डवेयर की आवश्यकता नहीं होती और छोटा, हल्का प्रोसेसर भी पर्याप्त हो जाता है, जो लंबी उड़ान अवधि वाले ड्रोन के लिए आदर्श है. पारंपरिक ड्रोन जहां केवल डेटा संग्रह करते हैं, वहीं ‘भू-मानचित्र’ प्रणाली तात्कालिक रूप से हवाई चित्रों से सड़कों, इमारतों, वनस्पति और अन्य भू-विशेषताओं की पहचान कर मानचित्र तैयार कर देती है.

दूरदराज और आपदा प्रभावित क्षेत्रों में होगा उपयोगी

चूंकि ‘भू-मानचित्र’ को इंटरनेट या बाहरी कंप्यूटर की आवश्यकता नहीं है, इसलिए यह उन क्षेत्रों में भी प्रभावी है जहां संचार नेटवर्क उपलब्ध नहीं होते. दूरदराज ग्रामीण इलाकों, घने जंगलों, पर्वतीय क्षेत्रों और सीमावर्ती इलाकों में यह प्रणाली तुरंत अद्यतन भू-आकृति संबंधी जानकारी दे सकती है. प्राकृतिक आपदाओं जैसे बाढ़, भूस्खलन, भूकंप या चक्रवात के दौरान यह तकनीक प्रभावित क्षेत्रों का त्वरित मानचित्र तैयार कर प्रशासन को राहत एवं बचाव कार्य की योजना बनाने में मदद कर सकती है. सही और ताजा मानचित्रों की मदद से सड़क मार्ग, वैकल्पिक रास्ते, सुरक्षित क्षेत्र और क्षति का पैटर्न तेजी से समझा जा सकता है, जिससे प्रतिक्रिया अधिक तेज और प्रभावी बनती है.

संस्थागत सहयोग और राष्ट्रीय महत्व

इस तकनीक का भारतीय पेटेंट एनआइटी राउरकेला और आइआइटी पटना के विश्लेषण आइ-हब फाउंडेशन (टीआइएच, आइआइटी पटना) को संयुक्त रूप से प्रदान किया गया है. यह परियोजना भारत सरकार के विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी विभाग के अंतर्गत नेशनल मिशन ऑन इंटरडिसिप्लिनरी साइबर-फिजिकल सिस्टम (एनएम-आइसीपीएस) के माध्यम से प्रायोजित की गयी, जिससे उच्च स्तरीय अकादमिक-उद्योग सहयोग और राष्ट्रीय प्राथमिकताओं से इसकी सीधी कड़ी स्पष्ट होती है.

विकसित तकनीक डिजिटल इंडिया, आत्मनिर्भर भारत और स्मार्ट गवर्नेंस के अनुरूप

एनआइटी राउरकेला के कंप्यूटर साइंस एवं इंजीनियरिंग के एसोसिएट प्रोफेसर, प्रो संबित बख्शी ने कहा कि विकसित तकनीक डिजिटल इंडिया, आत्मनिर्भर भारत और स्मार्ट गवर्नेंस जैसी सरकारी पहलों के अनुरूप है, क्योंकि यह डेटा-आधारित निर्णय-निर्धारण, संसाधनों के कुशल प्रबंधन और आपदा-रोधी क्षमताओं को मजबूत बनाती है. राष्ट्रीय अवसंरचना योजना, ग्रामीण-शहरी विकास, भूमि सुधार, और फील्ड-स्तरीय संचालन में इसके व्यापक उपयोग की संभावना है, जिससे पूरे देश में अधिक तत्पर, सूचित और प्रभावी शासन की दिशा में महत्वपूर्ण प्रगति हो सकती है.

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