जीव व परमात्मा के शाश्वत प्रेम का प्रतीक है रासलीला : डॉ राम सहाय
जीव व परमात्मा के शाश्वत प्रेम का प्रतीक है रासलीला : डॉ राम सहाय
बानो. बानो में आयोजित श्रीमद्भागवत कथा के छठे दिन व्यासपीठ के डॉ रामसहाय त्रिपाठी जी महाराज ने रासलीला, रुक्मिणी विवाह व उद्धव प्रसंग का वर्णन किया. डॉ रामसहाय त्रिपाठी जी महाराज ने रासलीला प्रसंग का वर्णन करते हुए कहा कि रासलीला केवल नृत्य या लीला नहीं, बल्कि जीव व परमात्मा के शाश्वत प्रेम का प्रतीक है. गोपियों का श्रीकृष्ण के प्रति समर्पण यह दर्शाता है कि जब भक्त अपना सर्वस्व प्रभु को अर्पित कर देता है, तब जीवन में किसी प्रकार का अभाव नहीं रहता. महाराज जी ने कहा कि रास का वास्तविक अर्थ अहंकार का त्याग और निष्काम भक्ति को अपनाना है. श्रीकृष्ण प्रत्येक गोपी के साथ प्रकट होकर यह संदेश देते हैं कि ईश्वर हर भक्त के हृदय में समान रूप से निवास करते हैं. कथा के क्रम में महाराज जी ने रुक्मिणी विवाह का वर्णन करते हुए बताया कि यह विवाह धर्म, प्रेम व विश्वास का अनुपम उदाहरण है. रुक्मिणी द्वारा श्रीकृष्ण को लिखा गया पत्र सच्ची भक्ति का प्रतीक है, जिसमें पूर्ण समर्पण और अटूट आस्था दिखायी देती है. श्रीकृष्ण द्वारा रुक्मिणी जी का विवाह कर अधर्म पर धर्म की विजय स्थापित करना यह सिखाता है कि जब भक्त प्रभु पर भरोसा करते हैं, तो हर कठिनाई सहज रूप से समाप्त हो जाती है. उद्धव प्रसंग का वर्णन करते हुए महाराज जी ने कहा कि उद्धव ज्ञान व विवेक का प्रतीक है, किंतु जब वह वृंदावन में गोपियों के प्रेम व विरह को देखते हैं, तो उन्हें यह अनुभव होता है कि केवल ज्ञान से नहीं, बल्कि प्रेम और भक्ति से ही परमात्मा की प्राप्ति संभव है. महाराज जी ने कहा कि गोपियों की भक्ति इतनी पवित्र थी कि उद्धव जी भी उनके चरणों की धूल को अपने मस्तक पर धारण करने की इच्छा व्यक्त करते हैं. मुख्य यजमान डॉ प्रह्लाद मिश्रा सह पत्नी ने व्यासपीठ का विधिवत पूजा-अर्चना कर कथा के सफल आयोजन में सक्रिय सहभागिता निभायी.
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