Digital Report : बहुत प्यारा था बुद्धू बॉक्सा

कभी मुहल्ले का एकमात्र टीवी पूरा समुदाय जोड़ देता था. रामायण शुरू होने से पहले लोग पैर-हाथ धोकर, अगरबत्ती जलाकर, श्रद्धा के साथ स्क्रीन के सामने बैठते थे.

By MUNNA KUMAR SINGH | November 20, 2025 8:11 PM

विश्व टेलीविजन दिवस आज. वह भी क्या दिन थे, जब रामायण और श्रीकृष्णा के समय थम जाता था पूरा शहर

सिग्नल पकड़ने छत पर चढ़ते थे बच्चे, आज टीवी खुद पकड़ता है इंटरनेटटीवी सिर्फ उपकरण नहीं, घर की यादों का पहला फ्रेम

रांची. कभी मुहल्ले का एकमात्र टीवी पूरा समुदाय जोड़ देता था. रामायण शुरू होने से पहले लोग पैर-हाथ धोकर, अगरबत्ती जलाकर, श्रद्धा के साथ स्क्रीन के सामने बैठते थे. एंटीना ठीक करने के लिए बच्चे छत पर चढ़ जाते थे और चैनल बदलने के लिए टीवी के पास जाना पड़ता था. लेकिन, आज वही टीवी 100 इंच की स्मार्ट स्क्रीन बनकर हमारे घरों की दीवारों पर टांग दिया गया है, जो एआइ, इंटरनेट और मोबाइल की हर सुविधा को अपने भीतर समाए हुए है. आज विश्व टेलीविजन दिवस के अवसर पर हम आपको ले चलते हैं टीवी के उस बीते दिनों के दौर में, जहां मनोरंजन सामूहिक था और आज आधुनिक युग में, जहां टीवी हमारी स्मार्ट जीवनशैली का अहम हिस्सा है. पढ़ें कैसे बदला हमारा टीवी, कैसे बदली हमारी पारिवारिक आदतें और कैसे बदल गया मनोरंजन का पूरा संसार.

वर्ष 1996 से हर साल मनाते हैं टेलीविजन दिवस

समय के साथ टेलीविजन ने जितना तेज बदलाव देखा है, शायद ही किसी अन्य घरेलू तकनीक ने देखा हो. कभी लकड़ी के डिब्बे जैसा भारी-भरकम बॉक्स टीवी, आज पतली-पतली स्मार्ट स्क्रीन में बदल चुका है. इस सफर ने न केवल उपकरणों का रूप बदला, बल्कि भारतीय समाज की आदतें, सामूहिकता और मनोरंजन का पूरा ढांचा बदल दिया. विश्व टेलीविजन दिवस मनाने की शुरुआत संयुक्त राष्ट्र ने वर्ष 1996 में की थी. इसी वर्ष पहली विश्व टेलीविजन फोरम का आयोजन किया गया.

जब एक स्क्रीन थी सबकी दुनिया…

पहले का बुद्धू बॉक्सा अब स्मार्ट बॉक्स बन गया है. मोबाइल के सारे फीचर से लेकर एआइ से लिंक टीवी मिल रहा है. पुराने दौर में टीवी की उपस्थिति किसी भी घर के स्टेटस को दर्शाती थी. 80 और 90 के दशक में रामायण, महाभारत, श्रीकृष्ण जैसे धारावाहिक समाज में एक अनोखा उत्सव बना देते थे. कई लोग बताते हैं कि रविवार की सुबह रामायण शुरू होते ही पूरा मुहल्ला एक जगह जमा हो जाता था. टीवी के सामने अगरबत्ती जलायी जाती थी. लोग हाथ जोड़कर बैठते थे और किसी धार्मिक आयोजन जैसा माहौल बन जाता था. तब सिग्नल पकड़ने के लिए एंटीना को बार-बार घुमाना पड़ता था. छत पर खड़े होकर बच्चों की आवाज आती हां, अब आ रहा है! अब मत हिलाना! टीवी कभी-कभी हल्का-सा ठोक देने पर भी चल पड़ता था. वह टीवी सिर्फ मनोरंजन का साधन नहीं था. वह जुड़े रहने, साथ रहने और रिश्तों को जोड़े रखने का माध्यम था.

ब्लैक एंड व्हाइट से 8के स्मार्ट टीवी तक

भारत इलेक्ट्रॉनिक्स के मो ग्यासुद्दीन बताते हैं कि टीवी का तकनीकी विकास बेहद तेज रहा है. ब्लैक एंड व्हाइट टीवी, कलर टीवी, सीआरटी टीवी, एलसीडी, एलइडी, फुल एचडी, 4के और अब 8के स्मार्ट टीवी. पहले 14 इंच की स्क्रीन से शुरू हुआ सफर अब 55, 65, 75, 98 और 100 इंच तक पहुंच गया है. आज 100 इंच का टीवी 5.5 लाख रुपये तक की कीमत में उपलब्ध है. 24 और 32 इंच के टीवी की मांग अब लगभग समाप्त हो चुकी है. मोबाइल से टीवी तक कनेक्टिविटी, स्क्रीन मिररिंग, वॉइस कमांड, एआइ सपोर्टेड फीचर्स, इंटरनेट आधारित चैनल, इन सबने टीवी को सिर्फ देखने का साधन नहीं, बल्कि घर का स्मार्ट सेंटर बना दिया है.

वह दौर जब टीवी के कार्यक्रम तय करते थे दिनचर्या

पुराने टीवी शो आज भी लोगों की यादों में बसे हैं. रामायण, महाभारत, श्रीकृष्ण, अलिफ लैला, विक्रम बेताल, शक्तिमान, हमलोग, हमारा आंगन, कृषि दर्शन, चित्रहार. 90 के दशक में शक्तिमान बच्चों का सुपरहीरो था. शुक्रवार की रात को आने वाली फिल्मों के लिए वार सप्ताह का उत्सव होता था. शहरों में लोग कार्यक्रम के प्रसारण के हिसाब से अपना समय तय करते थे. शाम सात बजे का अपना कार्यक्रम है यह वाक्य लगभग हर घर में गूंजा करता था.

टीवी सिर्फ उपकरण नहीं, इतिहास है

35 वर्ष पुराना टीवी रखे हैं सहेजकर

नीतू झा, धुर्वा, बताती हैं कि उनके घर में आज भी 35 साल पुराना टीवी सहेजकर रखी गयी है, जिसे उनके ससुरजी सिर्फ रामायण और महाभारत देखने के लिए खरीदा था. परिवार और पड़ोस के लोग एक साथ बैठकर टीवी देखते थे. यह टीवी आज भी परिवार की यादों का हिस्सा है. —-

पुराने टीवी की यादें आज भी दिल में बसे हैं

वर्धमान कंपाउंड के सुशील मुरारका याद करते हैं कि 1995 में खरीदी गयी 21 इंच की वीडियोकॉन टीवी ने उनके पूरे परिवार को कई सालों तक जोड़े रखा. शुक्रवार की फिल्म हो या चित्रहार, पूरा परिवार एक साथ बैठता था. वे कहते हैं नया टीवी आ गया, लेकिन उस पुराने टीवी की यादें आज भी दिल में हैं.

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इंदिरा गांधी की हत्या की खबर सुनकर खरीदा था टीवी

रातू रोड की बिमला देवी 1984 की घटना याद करते हुए बताती हैं कि इंदिरा गांधी की हत्या की खबर सुनकर उनके बेटे ने तुरंत टीवी खरीदा. उसी टीवी पर उन्होंने लाइव प्रसारण देखा. रामायण के समय तो माहौल भक्तिमय हो जाता था. महीने में एक बार वीसीआर किराये पर आता था और लोग रात भर फिल्में देखते थे. —-

पूरा मोहल्ला एक साथ देखता था रामायण

अशोक नगर के दीपक कुमार बताते हैं कि 1980 में आइआइटी खड़गपुर के कॉमन रूम में आया ब्लैक एंड व्हाइट टीवी उनके लिए मनोरंजन का केंद्र था. चित्रहार से लेकर समाचार तक, सब वहीं देखा जाता था. सिग्नल खराब होने पर छात्र छत पर चढ़ते थे. रामायण के दौरान सभी छात्र एक साथ बैठते थे.

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कर्फ्यू के बावजूद घर में लगती थी भीड़

नार्थ ऑफिस पाड़ा के सत्यप्रकाश बताते हैं कि 1982 में रंगीन टीवी आने पर उन्होंने कोनार्क का ‘रेनबो’ टीवी खरीदा था. 1984 में इंदिरा गांधी की मृत्यु का लाइव टेलिकास्ट उन्होंने उसी पर देखा. कर्फ्यू के बावजूद पड़ोसी चुपके से उनके घर टीवी देखने आते थे.

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