नेताजी सुभाष चंद्र बोस के पीछे निकल पड़े झारखंड के रणबांकुरे, आजादी के बड़े आंदोलन का हुआ था आगाज

Subhash Chandra Bose Jayanti 2022: नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ झारखंड (तब अविभाजित बिहार) ने आजादी के तराने गुनगुनाये थे. नेताजी के आह्वान पर यहां के आदिवासी, देश को अंग्रेजी शासन से मुक्ति दिलाने को आतुर आजादी के मतवालों से लेकर जमींदार तक आगे आये.

By Prabhat Khabar | January 23, 2022 7:31 AM

Subhash Chandra Bose Jayanti 2022: नेताजी सुभाष चंद्र बोस के साथ झारखंड (तब अविभाजित बिहार) ने आजादी के तराने गुनगुनाये थे. नेताजी के आह्वान पर यहां के आदिवासी, देश को अंग्रेजी शासन से मुक्ति दिलाने को आतुर आजादी के मतवालों से लेकर जमींदार तक आगे आये. देश की आजादी के लिए अपना रोम-रोम समर्पित कर चुके भारत के वीर सपूत सुभाष चंद्र बोस का झारखंड से गहरा लगाव था. आजादी के संघर्ष के दिनों वह कई बार रांची, चक्रधरपुर और जमशेदपुर आये. रामगढ़ में सम्मेलन किया.

आजादी के लिए लोगों में जुनून भरा. आजाद हिंद फौज में शामिल होने के लिए युवाओं के अंदर देशभक्ति का उबाल पैदा किया. आखिरी बार देश छोड़ने से पहले नेताजी गोमो स्टेशन (अब नेताजी सुभाष चंद्र बोस जंक्शन) से ही ट्रेन पकड़ कर दिल्ली पहुंचे, फिर देश से बाहर गये. नेताजी सुभाष चंद्र बोस की जयंती पर उन लम्हों, स्वर्णिम यादों को समेटता हुआ यह विशेष पन्ना.

जमींदार परिवार ने निभाया नेताजी का साथ फिर आजादी के बड़े आंदोलन का हुआ आगाज

आशुतोष कुमार सिंह, अवकाश प्राप्त प्रधानाध्यापक(नेताजी की सहायता करनेवाले जमींदार परिवार के वंशज)

व र्ष 1938 के हरिपुरा कांग्रेस अधिवेशन में नेताजी सुभाष चंद्र बोस कांग्रेस के सर्वसम्मति से अध्यक्ष चुने गये. इसी अधिवेशन में तय हुआ था कि 1939 में कांग्रेस का महाधिवेशन त्रिपुरी (मध्य प्रदेश में जबलपुर के निकट) में होगा. इसके बाद कांग्रेस का 53वां अधिवेशन बिहार के किसी देहाती क्षेत्र में होगा. राजेंद्र बाबू यह अधिवेशन राजगीर में करवाना चाहते थे, लेकिन बाबू रामनारायण सिंह जी के प्रयास से रामगढ़ में होना तय हुआ. त्रिपुरी अधिवेशन में गांधीजी ने नेताजी के विरुद्ध पट्टाभि सीतारामैया को अपना उम्मीदवार बनाया और कहा : सीतारामैया की हार, मेरी हार होगी. चुनाव हुआ और सुभाषचंद्र बोस ने 1377 के मुकाबले 1580 मत हासिल किये और जीत गये.

नेताजी के अध्यक्ष चुने जाने से संकट गहरा गया. समझौते का प्रयास सफल नहीं हुआ और बोस ने कांग्रेस से इस्तीफा दे दिया. इसके बाद सुभाष बाबू कांग्रेस के रामगढ़ अधिवेशन के विरोध में ‘समझौता विरोधी अधिवेशन’ की तैयारी में जुट गये. अधिवेशन की जिम्मेवारी किसान सभा के अध्यक्ष स्वामी सहजानंद को सौंपी गयी. स्वामी सहजानंद ने धनराज शर्मा को रामगढ़ में ‘समझौता विरोधी सम्मेलन’ का जिम्मा दिया. धनराज शर्मा रामगढ़ में सम्मेलन की तैयारी में जुट गये.

लेकिन, रामगढ़ क्षेत्र के उनके स्वजातीय लोग तथा जमींदारों ने नहीं के बराबर मदद की. चूंकि रामगढ़ के तत्कालीन राजा कामाख्या नारायण सिंह कांग्रेस और सुभाष बाबू दोनों के नजदीकी थे, इसलिए तत्कालीन जमींदार बाबू उमराव सिंह से धनराज शर्मा मिले, तो स्थान चयन में कांग्रेस के साथ इनकी भी मदद की गयी. साथ ही नेताजी की रांची रोड स्टेशन से अगवानी के लिए बैलगाड़ी की व्यवस्था भी उमराव सिंह और उनकी परिवार के लोगों ने की.

Posted by: Pritish Sahay

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