Solar Energy के क्षेत्र में आत्मनिर्भर बनने के लिए झारखंड के समक्ष हैं कई चुनौतियां, JREDA कैसे करेगा निदान?

Jharkhand Renewable Energy Development Agency : हमारे देश में कुल बिजली उत्पादन का आधार कोयला आधारित परियोजनाएं हैं, ऐसे में अगर देश में कोयले का स्टाॅक खत्म हो जाये या कम हो जाये, तो देश में बिजली संकट उत्पन्न हो सकता है इसमें कोई दो राय नहीं है.

By Prabhat Khabar Digital Desk | October 21, 2021 1:25 PM

देश में कोयला संकट की खबर इस महीने के शुरुआत में खूब चर्चा में रही और यहां तक कहा जा रहा था कि पवार प्लांट के पास कोयले की सख्त कमी है और किसी भी दिन देश में बिजली का संकट हो सकता है. देश में राज्य सरकारों ने जितनी जरूरत हो उतनी ही बिजली इस्तेमाल करने की अपील आम लोगों से की. हालांकि कोयले की कमी के पीछे बारिश को जिम्मेदवार बताया गया और कहा गया कि स्टाॅक नहीं होने की वजह से यह समस्या हुई और केंद्र सरकार ने कोयले की आपूर्ति बढ़ाकर इस समस्या का निराकरण किया.

लेकिन यहां बड़ा सवाल यह है कि क्या कोयला कभी खत्म नहीं होने ऊर्जा का स्रोत है? हमारे देश में कुल बिजली उत्पादन का आधार कोयला आधारित परियोजनाएं हैं, ऐसे में अगर देश में कोयले का स्टाॅक खत्म हो जाये या कम हो जाये, तो देश में बिजली संकट उत्पन्न हो सकता है इसमें कोई दो राय नहीं है. इस बात को सरकारें भी समझ गयीं हैं और यही वजह है कि भारत सरकार ने संकल्प लिया है कि 2030 तक बिजली उत्पादन की हमारी 40 फीसदी स्थापित क्षमता ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों पर आधारित होगी.

2001 से काम कर रही है JREDA)

ऊर्जा के स्वच्छ स्रोतों को बढ़ावा देने के उद्देश्य से झारखंड में 2001 से झारखंड अक्षय ऊर्जा विकास एजेंसी (JREDA) काम कर रही है. राज्य की ऊर्जा आवश्यकताओं को पूरा करने और राज्य में जन जागरूकता पैदा करने के लिए यह एजेंसी काम कर रही है.

जेरेडा के डायरेक्टर केके वर्मा ने बताया कि अभी झारखंड में अक्षय ऊर्जा के जिस स्रोत पर काम हो रहा है वह है सौर ऊर्जा. हालांकि अभी काम शुरुआती दौर में ही है और अगर इससे जोड़कर देखा जायेगा कि बिजली उत्पादन में इसकी कितनी भागीदारी है तो वह बहुत कम है, लेकिन हम तेजी से काम कर रहे हैं और जल्दी ही सौर ऊर्जा झारखंड में ऊर्जा के प्रमुख स्रोतों में शामिल हो जायेगा.

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2015 में बनी है सोलर पावर पाॅलिसी

झारखंड में साल 2015 में सोलर पावर पाॅलिसी अधिसूचित की गयी थी. पांच साल के बाद जेरेडा जिन योजनाओं पर प्रमुखता से काम कर रही है उसके तहत सरकारी भवनों पर सोलर पैनल लगाना, ग्रामीण इलाकों में किसानों की बंजर भूमि पर सोलर पावर प्लांट लगाना ताकि बिजली का उत्पादन हो, किसानों को मोटर पंपसेट उपलब्ध कराना और दुर्गम ग्रामीण इलाकों में बिजली की व्यवस्था मुहैया कराना प्रमुख है.

जेरेडा के कार्यपालक अभियंता मुकेश कुमार ने बताया कि झारखंड में अबतक 1000 से अधिक सरकारी भवनों पर सोलर प्लांट लगाया जा चुका है और इन कार्यालयों में बिजली की पूरी आपूर्ति सौर ऊर्जा के जरिये ही हो रही है. जेरेडा का यह रूफ टाॅप स्कीम अबतक काफी सफल रहा है. झारखंड में जिन एक हजार सरकारी भवनों पर सोलर प्लांट लगाया गया है वहां बिजली की पूरी आपूर्ति सौर ऊर्जा पर निर्भर है.

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इसके अलावा अभी जिस योजना पर फोकस करके काम हो रहा है वह है पीएम कुसुम योजना. इस योजना को तीन भागों में बांट कर काम किया जा रहा है. पहली योजना के तहत किसानों की बंजर भूमि पर सोलर प्लांट लगाकर बिजली उत्पादन किया जा रहा है. ऐसे प्लांट से बिजली का जो उत्पादन होगा उसे बिजली विभाग खरीदेगा. यह योजना किसानों के लिए बहुत कारगर हो सकती है लेकिन अभी यह अपने शुरुआती दौर में ही है.

किसानों के लिए है कई आकर्षक योजनाएं 

दूसरी योजना के जरिये किसानों को सोलर पंप देना शामिल है, जिसमें सरकार 70 प्रतिशत तक सब्सिडी दे रही है. यह योजना कृषि क्षेत्र के लिए बहुत ही लाभकारी है. तीसरी योजना भी किसानों के लिए ही है जिसमें वैसे किसानों को सहायता दी जायेगी जो अपना पंप सेट बिजली से चला रहे हैं लेकिन अब उन्हें सोलर पर ट्रांसफर करने को कहा जायेगा.

मुकेश कुमार ने बताया कि सौर ऊर्जा हमारे लिए बहुत ही लाभदायक है क्योंकि आज जबकि हम वातावरण प्रदूषण और क्लाइमेंट की समस्या से परेशान हैं, पूरी दुनिया स्वच्छ ऊर्जा की ओर बढ़ रही है. ऐसे में सौर ऊर्जा एक बेहतरीन विकल्प है.

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झारखंड जैसे राज्य जहां के कई इलाके दुर्गम पहाड़ी क्षेत्र हैं और जहां बिजली विभाग के लिए बिजली पहुंचाना बहुत कठिन है, वहां के लिए सौर ऊर्जा बेहतरीन विकल्प है. ग्रामीण इलाकों में तो लोग सौर ऊर्जा को हाथोंहाथ लेते हैं क्योंकि उन्हें इसमें खर्च ज्यादा नहीं करना पड़ता है, क्योंकि उन्हें सब्सिडी मिलती है, लेकिन शहरी आबादी सौर ऊर्जा को लेकर जागरूक नहीं है.

शहरी आबादी सौर ऊर्जा के प्रति उदासीन

शहरी आबादी में समर्थ लोग भी पैसे देकर सोलर पैनल नहीं लगवाने चाहते हैं, क्योंकि यहां बिजली आसानी से उपलब्ध है. तो यह कहा जा सकता है कि लोगों में जागरूकता की कमी है और यह झारखंड को एक आत्मनिर्भर सौर ऊर्जा बाजार बनाने में यह बड़ी बाधा है. जेरेडा जिन उद्देश्यों के साथ काम कर रही है, उसमें लोगों को सौर ऊर्जा के प्रति जागरूक करना भी शामिल है. लेकिन अबतक जो स्थिति उभरकर सामने आ रही है उससे ऐसा लगता है कि जेरेडा का सफर अभी लंबा है.

Posted By : Rajneesh Anand

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