Ranchi news : 22 जिलों में वनवासियों को संसाधन पर नहीं मिला अधिकार

झारखंड में वन अधिकार कानून के तहत मिलनेवाले पट्टों और सामुदायिक वन पट्टों की स्थिति अच्छी नहीं है.धनबाद में 42 और चतरा में एक समुदाय को वन संसाधन पर अधिकार मिला.

By RAJIV KUMAR | June 19, 2025 12:20 AM

मनोज सिंह, रांची.

झारखंड में वन अधिकार कानून के तहत मिलनेवाले पट्टों और सामुदायिक वन पट्टों की स्थिति अच्छी नहीं है. 13 दिसंबर 2005 से लागू इस कानून के तहत समुदाय (वनवासियों) को वन संसाधनों पर भी अधिकार (सीएफआरआर) देने का प्रावधान है. लेकिन, झारखंड में धनबाद और चतरा को छोड़ किसी जिले ने अब तक सीएफआरआर नहीं दिया है. धनबाद जिले में 42 और चतरा में एक समुदाय को वन संसाधन पर अधिकार मिला है. राज्य सरकार की जनजातीय सलाहकार समिति (टीएसी) में भी यह मुद्दा उठा है. इस अधिनियम के तहत अनुसूचित जनजाति को छोड़ अन्य जाति के वैसे लोगों को भी पट्टा देने का प्रावधान है, जो तीन पीढ़ी से वन में रह रहे हैं. अन्य पारंपरिक वन निवासी (ओटीएफडी) के तहत अन्य जाति के लोगों को वन पट्टा देने का प्रावधान है. इसमें अब तक सिर्फ 3,217 लोगों को पट्टा दिया गया है. इसमें सबसे अधिक सिमडेगा में 2,890 लोगों को, लातेहार में 189 लोगों को, पलामू में 101 लोगों को, रांची में 27 लोगों को और साहिबगंज में पांच लोगों को पट्टा दिया गया है.

सबसे अधिक चाईबासा व सबसे कम वन पट्टा रामगढ़ में बंटा

राज्य में सबसे अधिक वन पट्टा चाईबासा जिले में बंटा. यहां अनुसूचित जनजाति समुदाय के 7086 लोगों के बीच वन पट्टा बंटा. वहीं, सबसे कम वन पट्टा रामगढ़ में बंटा. यहां अब तक सिर्फ 689 वन पट्टा ही बंटा है. वहीं, रांची में 1725 लोगों के बीच वन पट्टा बांटा जा चुका है. पूरे राज्य में अब तक 2219 सामुदायिक वन पट्टा (सीएफआर) बंटा है. इसमें साहिबगंज और कोडरमा में एक भी सामुदायिक वन पट्टा नहीं बंटा है. रांची में 50 सामुदायिक वन पट्टा बंटा है.

क्या कहते हैं विशेषज्ञ

कई जिलों में सीएफआरआर और ओटीएफडी का पट्टा तैयार हुआ है. लेकिन, वन विभाग के अधिकारी नहीं चाहते हैं कि लाभुकों को पट्टा मिले. इस कारण कई तरह के विरोध करते हैं. सीएफआरआर से वन विभाग को लगता है कि उनकी संपत्ति चली जायेगी. जब तक आदिवासियों के हाथ में जंगल था, वहां वन्य प्राणी और जंगल भी थे. जब से वन विभाग जंगल देखने लगा, वन्य प्राणी भी भाग गये और जंगल भी संकट में हैं. वन विभाग कानून की गलत व्याख्या करता है.

फादर जॉर्ज मोनोपॉली, विशेषज्ञB

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