खून की कमी और अधिकता दोनों खतरनाक, जानें क्या है इसका कारगर इलाज, डॉ अभिषेक रंजन ने बताया

झारखंड में खून की कमी सबसे ज्यादा मरीज आदिवासी बाहुल्य इलाके में हैं. इसलिए वहां जांच और जागरूकता जरूरी है. वहीं, अगर किसी मरीज को खून की कमी की समस्या हो और उसकी शादी होने वाली है

By Prabhat Khabar | November 25, 2022 10:39 AM

शरीर में खून की कमी और अधिकता दोनों खतरनाक है. लेकिन, लोग इसे हल्के में लेते हैं. जब समस्या बढ़ जाती है, तब वे अस्पताल पहुंचते हैं. लेकिन, तब तक देर हो चुकी होती है. क्लिनिकल हेमेटोलॉजी में इसका कारगर इलाज है. पर, चिंता की बात यह है कि देश के कुछ ही मेडिकल कॉलेजों में इसका इलाज संभव है. इसके विशेषज्ञ डॉक्टर भी देश में 150 से 200 के बीच हैं. ऐसे में सरकार को इस पर ध्यान देने की जरूरत है.

मेडिकल कॉलेजों में इसका विभाग खुले और विशेषज्ञ डॉक्टरों की बहाली हो. उक्त बातें गुरुवार काे प्रभात खबर से विशेष बातचीत में नागरमल मोदी सेवा सदन अस्पताल के क्लिनिकल हेमेटोलॉजिस्ट डॉ अभिषेक रंजन ने कही. प्रस्तुत है बातचीत के मुख्य अंश.

Q . पैथोलॉजी व क्लिनिकल हेमेटोलॉजी में क्या अंतर है. अक्सर लोग खून की जांच पैथोलॉजी सेंटर में ही कराते हैं. हेमेटोलॉजी विभाग कब जायें?

क्लिनिकल हेमेटोलॉजी में खून से संबंधित सभी बीमारी का इलाज किया जाता है. पैथोलॉजी में सिर्फ जांच होती है, जबकि क्लिनिकल हेमेटोलॉजी में जांच के साथ-साथ इलाज भ्की या जाता है.खून के तीन कंपोनेंट्स हिमोग्लोबीन, डब्ल्यूबीसी और प्लेटलेट्स है. इसमें कमी और अधिकता दाेनों खराब है. खून की कमी में एनीमिया, प्लास्टिक एनिमिया, थैलेसीमिया प्रमुख हैं. झारखंड के सेवा सदन में यह विभाग शुरू किया गया है, जहां लोगों का इलाज किया जा रहा है.

Q. राज्य में एनीमिया, थैलेसीमिया और सिकल सेल एनीमिया के मरीज ज्यादा हैं. इनका इलाज कैसे किया जाये?

झारखंड में इसके सबसे ज्यादा मरीज आदिवासी बाहुल्य इलाके में हैं. इसलिए वहां जांच और जागरूकता जरूरी है. वहीं, अगर किसी मरीज को खून की कमी की समस्या हो और उसकी शादी होने वाली है, तो महिला और पुरुष दोनों को खून की जांच अवश्य करा लेनी चाहिए. इससे शादी के बाद होने वाले बच्चे को जटिल समस्या का खतरा कम हो जाता है.

खून की कमी है, तो थैलेसीमिया का खतरा होता है. क्लिनिकल हेमेटोलॉजी में इसका इलाज है. ऐसे लोगों को खून चढ़ाना पड़ता है. चिनेशन थेरेपी (आयरन चढ़ाना) भी जरूरी होता है, लेकिन यह महंगा है. हीमोफीलिया के मरीजों को फैक्टर चढ़ाना पड़ता है. यह खून को रोकने का काम करता है.

Q. आप हेमेटोलॉजी में विशेषज्ञ डॉक्टर हैं. चाहते तो बड़े अस्पताल में योगदान दे सकते थे, लेकिन सेवा सदन को ही क्यों चुना?

सेवा सदन चैरिटेबल हॉस्पिटल है, जहां लाभ पर ज्यादा ध्यान नहीं दिया जाता है. मैं झारखंड का रहनेवाला हूं. इसलिए अपने राज्य के मरीजों की सेवा करना चाहता हूं. जब मैं छोटा था, तब मेरे पिता की मौत कैंसर से हो गयी थी. यहां इलाज की सुविधा नहीं थी. मैं अपने राज्य के कैंसर मरीजों को इस विपदा में नहीं लाना चाहता हूं. सेवा सदन में बोन मैरो की जांच 12 घंटे में हो जाती है. सरकार को ब्लड कैंसर के इलाज को आयुष्मान भारत योजना से जोड़ देना चाहिए, ताकि गरीब मरीजों को इसका लाभ मिल सके.

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