इमाम-ए-आजम अबू हनीफा

डॉ शाहनवाज कुरैशी इसलामी फिकह के आधार पर चार मसलक हैं. दुनिया भर के मुसलमान इन चार इमामों का ही अनुशरण करते हैं. चारों मसलक के बारे में यहां चर्चा की जायेगी. इस क्रम में आज फिकह हनफी के प्रवर्तक इमाम अबू हनीफा के जीवनी और उनके कारनामे पर संक्षिप्त प्रकाश डालने की कोशिश करूंगा. […]

By Prabhat Khabar Digital Desk | June 27, 2016 6:36 AM
डॉ शाहनवाज कुरैशी
इसलामी फिकह के आधार पर चार मसलक हैं. दुनिया भर के मुसलमान इन चार इमामों का ही अनुशरण करते हैं. चारों मसलक के बारे में यहां चर्चा की जायेगी. इस क्रम में आज फिकह हनफी के प्रवर्तक इमाम अबू हनीफा के जीवनी और उनके कारनामे पर संक्षिप्त प्रकाश डालने की कोशिश करूंगा.
इमाम अबू हनीफा (699-767 ई) को इमाम-ए-आजम भी कहा जाता है. 5 सितंबर 702 ई. (80 हिजरी) को इराक के शहर कुफा में जन्मे अबू हनीफा का असल नाम नुमान बिन साबित है. उनके पिता ताबित एक व्यापारी थे. इमाम अबू हनीफा ऐसे युग में पैदा हुए जब कुफा और बसरा में पैगंबर के कई साथी (सहाबा) जीवित थे और उन्होंने सहाबा को देखा. इसलिए अबू हनीफा ताबेइन में से हैं. ताबेइन उन्हें कहा जाता है, जिन्होंने सहाबा को देखा.
प्रारंभिक जीवन में आवश्यक ज्ञान प्राप्त कर उन्होंने व्यापार की शुरुआत किया, लेकिन आपकी बुद्धि को देख हदीस के प्रसिद्ध शख्सीयत शेख आमर शोअबी (जिन्हें पांच सौ से ज्यादा सहाबा की जियारत का गौरव प्राप्त था) ने उन्हें व्यापार छोड़ उच्च शिक्षा प्राप्त करने का सुझाव दिया. उनके सुझाव पर अबू हनीफा ने हदीस व फिकह के इल्म पर जोर दिया. कुफा, बसरा, बगदाद, मक्का और मदीना के अतिरिक्त सीरिया जाकर ज्ञान प्राप्त किया.
763 ई. में अब्बासी खलीफा अबू जाफर मंसूर (754-775 ई.) ने उन्हें राज्य के प्रमुख काजी (जज) के रूप में नियुक्त का ऑफर दिया, जिसे उन्होंने ठुकरा कर स्वतंत्र रहना पसंद किया. इमाम अबू हनीफा ने मुख्य काजी का पद इसलिए ठुकरा दिया कि खलीफा अपनी मरजी के अनुसार कोई निर्णय लेने को बाध्य न कर सके. जवाब से नाराज खलीफा ने अबू हनीफा को कैद करने का आदेश दिया. इमाम हनीफा ने जेल में भी शैक्षणिक कार्य जारी रखा.
इमाम मोहम्मद जैसे मुहद्दिस व फिकह के ज्ञाता ने जेल में ही अबू हनीफा से शिक्षा प्राप्त की. इमाम अबू हनीफा की लोकप्रियता से भयभीत होकर उन्हें जेल में जहर दिया गया. अबू हनीफा को जब जहर का असर हुआ, तो वे सज्दे में चले गये और इसी हालत में 14 जून 772 ई. (150 हिजरी) को 69 वर्ष की आयु में बगदाद में उनका निधन हुआ.
बाद में उनके छात्र अबू यूसुफ को खलीफा हारुन रशीद (786-809 ई) ने सल्तनत के मुख्य काजी के पद पर नियुक्त किया. उनका प्रमुख कार्य किताब उल आसार है. जिसे उनके अबू युसुफ व इमाम मोहम्मद ने पूर्ण किया. काजी अबू यूसुफ (731-799 ई) ने सबसे पहले फिकह हनफी की किताबें लिखी. फिकह हनफी की वास्तविक बुनियाद इमाम मोहम्मद की लिखी किताबों पर है. उन्होंने दो दर्जन से ज्यादा पुस्तकें लिखी. जब उनका निधन हुआ, तो खुद खलीफा हारुन रशीद ने नमाजे जनाजा पढ़ायी. विश्व में फिकह हनफी के माननेवालों की संख्या सर्वाधिक है.