आदिवासियों के मानवाधिकार का हनन करता है खनन उद्योग

सेमिनार. खनन उद्योग और मानवाधिकार पर बोले प्रो काबरा खनन उद्योग, लूट के अर्थशास्त्र और मानवाधिकार तीनों में आपसी संबंध रांची : इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन नयी दिल्ली के प्रो कमलनयन काबरा ने कहा कि खनन उद्योग का चरित्र समाज, देश व पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है. यह आदिवासी-दलितों के मानवाधिकारों का हनन भी […]

By Prabhat Khabar Print Desk | December 11, 2015 5:17 AM
सेमिनार. खनन उद्योग और मानवाधिकार पर बोले प्रो काबरा
खनन उद्योग, लूट के अर्थशास्त्र और मानवाधिकार तीनों में आपसी संबंध
रांची : इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ पब्लिक एडमिनिस्ट्रेशन नयी दिल्ली के प्रो कमलनयन काबरा ने कहा कि खनन उद्योग का चरित्र समाज, देश व पर्यावरण के लिए नुकसानदेह है. यह आदिवासी-दलितों के मानवाधिकारों का हनन भी कर रहा है. इस बात को न कॉरपोरेट घराने समझने के लिए तैयार हैं और न सरकार. हमने विकास की कीमत पसीना, खून और आंसू बहा कर चुकाया है, जबकि इसका लाभ कुछ लोगों को ही मिल रहा है़ जीडीपी द्वारा सिर्फ भ्रम पैदा किया जाता है़
यह अर्थशास्त्र में हमारी भागीदारी सुनिश्चित नहीं करता़ वे बिरसा माइंस मॉनिटरिंग सेंटर और नेटवर्क ऑफ एडवोकेट्स फॉर राइट्स एंड एक्शन (नारा) द्वारा ‘लूट का अर्थशास्त्र, खनन उद्योग और मानवाधिकार’ विषय पर आयोजित सेमिनार में बोल रहे थे़ आयोजन पुरुलिया रोड स्थित एसडीसी सभागार में गुरुवार को हुआ़
कृषि योग्य जमीन व जंगल की लूट बढ़ी : कहानीकार सह ‘पहल’ के संपादकीय सलाहकार जितेंद्र भाटिया ने कहा कि कृषि योग्य जमीन व जंगल की लूट बढ़ी है, जो सदियों से आदिवासियों की आजीविका के प्रमुख स्रोत रहे हैं. भारत के पास पूरी दुनिया की कुल जमीन का महज 2.4 प्रतिशत हिस्सा है, जबकि यहां कुल आबादी का 15 प्रतिशत है.
सुनिश्चित करें अपने अधिकार : सेंटर फॉर साइंस एंड इनवायरमेंट की श्रेष्ठा बनर्जी ने कहा कि लोग ग्रामसभा के जरिये अपना हक-अधिकार सुनिश्चित कर सकते हैं. जिला खनिज कोष के माध्यम से पहली बार खनन प्रभावितों को अधिकार मिला है, जिसे हमें नहीं छोड़ना है.
… इसलिए फोर्स में आदिवासियों को कर रहे शामिल : ‘खान खनिज और अधिकार’ के प्रबंध संपादक उमेश नजीर ने कहा कि खनन उद्योग, लूट के अर्थशास्त्र और मानवाधिकार, तीनों में आपसी संबंध है. प्राकृतिक संसाधनों को लूटने के लिए पूरी दुनिया में होड़ मची है. हमारा इतिहास प्राकृतिक संसाधनों की लूट के खिलाफ प्रतिरोध का रहा है. खनिजों केदोहन के लिए आदिवासियों को आपस मेें लड़ाने के उद्देश्य से झारखंड के आदिवासियों को फोर्स में शामिल किया जा रहा है.
जमीन जिसकी, खनिज उसका : मानवाधिकार कार्यकर्ता स्टेन स्वामी ने कहा कि जनप्रतिरोध के कारण झारखंड में कंपनियों की कम परियोजनाएं खुली हैं. सुप्रीम कोर्ट ने भी जमीन जिसकी, खनिज उसका की बात कही है, जिसे हमें पूरी तरह लागू कराना होगा. कंपनियों को सिर्फ लाभ से मतलब है, पर्यावरण से नहीं.
सेमिनार का संचालन मानवाधिकार कार्यकर्ता सह नारा के संस्थापक गोपीनाथ घोष ने किया़ नारा के समन्वयक अमित अग्रवाल ने आधारपत्र प्रस्तुत किया. इस मौके पर डॉ आरपी साहू, बिरसा एमएमसी के समन्वयक फिलिप कुजूर, एलिस चेरोवा, नाजिर हुसैन, दीपक किस्कू, महादेव उरांव, विमला नगेसिया, नरेंद्र नगेसिया, बिमल सोरेन, शंकर भुइयां, राज बारदा, सुरेंद्र तिर्की, सीनू हेंब्रम, लक्ष्मी कुमारी, करुणा कुमारी, फरजाना फारूकी, रीता सोरेन सहित झारखंड के विभिन्न जिलों से सैकड़ों लोग मौजूद थे़

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