रांची : मर चुकी हरमू नदी, नाले से भी बदतर है हालत : जस्टिस पाठक

दुर्गंध इतनी कि मास्क लगाकर अितथियों ने किया पौधरोपण न्यायाधीश जस्टिस एसएन पाठक ने की तल्ख टिप्प्णी यह नदी कभी राजधानी का लाइफ लाइन हुआ करती थी नदी जीवित रहेगी, तभी हमारा जीवन भी चलेगा रांची : वन विभाग ने हरमू बाइपास स्थित मुक्तिधाम के समीप हरमू नदी के किनारे रविवार को पौधरोपण कार्यकम का […]

By Prabhat Khabar Print Desk | July 15, 2019 8:29 AM
दुर्गंध इतनी कि मास्क लगाकर अितथियों ने किया पौधरोपण
न्यायाधीश जस्टिस एसएन पाठक ने की तल्ख टिप्प्णी
यह नदी कभी राजधानी का लाइफ लाइन हुआ करती थी
नदी जीवित रहेगी, तभी हमारा जीवन भी चलेगा
रांची : वन विभाग ने हरमू बाइपास स्थित मुक्तिधाम के समीप हरमू नदी के किनारे रविवार को पौधरोपण कार्यकम का आयोजन किया था. खास बात यह थी कि हरमू नदी से उठनेवाली बदबू से बचने के लिए कार्यक्रम में उपस्थित अतिथियों और अन्य लोगों को वन विभाग की ओर से ही मास्क बांटा जा रहा था. कार्यक्रम में बतौर मुख्य अतिथि शामिल झारखंड हाइकोर्ट के न्यायाधीश जस्टिस एसएन पाठक ने भी मास्क लगाकर यहां पौधरोपण किया. इस दौरान जस्टिस पाठक हरमू नदी की दयनीय स्थिति देखकर काफी क्षुब्ध हुए. साथ ही तल्ख टिप्पणी करते हुए इस नदी के संरक्षण पर जोर दिया.
कार्यक्रम के बाद पत्रकारों से बातचीत करते हुए जस्टिस पाठक ने कहा कि हरमू नदी मर चुकी है. इसकी हालत नाले से भी बदतर है. मरे हुए व्यक्ति को सजाने से भी कुछ नहीं होगा. यह नदी कभी राजधानी का लाइफ लाइन हुआ करती थी. यहीं पलने-बढ़ने के कारण यह याद भी है.
पता नहीं सरकार ने इसे बचाने के लिए क्या किया, लेकिन इसकी हालत दयनीय है. यह नदी नहीं नाली हो गया है. मौके पर पीसीसीएफ (हॉफ) संजय कुमार, पीसीसीएफ शशिनंद कुलियार, एपीसीसीएफ मनोज सिंह, एपीसीसीएफ आशीष रावत, आरसीसीएफ एटी मिश्रा, डीएफओ सबा अहमद आदि मौजूद थे.
84 करोड़ रुपये खर्च करने के बाद भी नहीं बदले हरमू नदी के हालात
रांची : राजधानी रांची की जीवन रेखा कही जानेवाली हरमू नदी का सौंदर्यीकरण मुख्यमंत्री रघुवर दास का ड्रीम प्रोजेक्ट है. नगर विकास विभाग इस पर 84 करोड़ रुपये खर्च कर चुका है. लेकिन, इसका कोई फलाफल नहीं दिखता. हालत यह है कि आज भी हरमू नदी किसी बड़े नाले जैसी ही दिखती है. इसके लिए रांची जिला प्रशासन, रांची नगर निगम, जुडको और राजधानी के लोग सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं.
हरमू नदी का उद्गम लेटराइट मिट्टी से है. ये बारिश के जल पर निर्भर है. बाकी समय ये सिर्फ गंदे पानी से भरा रहता है. इधर, बीते दो दशक में हरमू नदी पर आबादी का दबाव बढ़ा है. इसके दोनों किनारों के आसपास तेजी से मोहल्ले बसे, जिससे इसके किनारों का अतिक्रमण हुआ है. वहीं, जमीन दलालों ने भी हरमू नदी के किनारों पर अतिक्रमण कर जमीन बेच दी. किनारे बने खटाल और घरों से निकलनेवाला गंदा पानी हरमू नदी में ही गिर रहा है, जिससे यह नदी पूरी तरह प्रदूषित हो चुकी है.
त्रुटिपूर्ण डीपीआर पर किया गया सौंदर्यीकरण : हरमू नदी के सौंदर्यीकरण की देखरेख के लिए नगर विकास विभाग ने एक कमेटी बनायी थी. उसी कमेटी ने जांच के बाद योजना के डीपीआर को ही त्रुटिपूर्ण करार दे दिया. इसके बावजूद उसी त्रुटिपूर्ण डीपीआर के आधार पर किये गये निर्माण कार्यों पर 84 करोड़ रुपये खर्च कर दिये गये.

Next Article

Exit mobile version