सबकी आस सुभाष में है प्रोफेसर मिश्रा के चुंबकीय व्यक्तित्व की स्पष्ट झलक : नामधारी

धुंध पर भारी पड़ा साहित्यकारों का धुन

By Akarsh Aniket | December 20, 2025 8:58 PM

धुंध पर भारी पड़ा साहित्यकारों का धुन मेदिनीनगर. मेदिनीनगर प्रखंड अंतर्गत रजवाडीह मध्य विद्यालय में पलामू प्रमंडल के ख्याति प्राप्त प्रोफेसर सुभाष चंद्र मिश्रा के व्यक्तित्व व कृतित्व पर आधारित संस्मरणात्मक पुस्तक सबकी आस सुभाष का अनूठे अंदाज में लोकार्पण किया गया. भारी धुंध पर साहित्यकारों का धुन भारी पड़ा. लोकार्पण समारोह में मुख्य अतिथि झारखंड के प्रथम विधानसभा अध्यक्ष इंदर सिंह नामधारी,मुख्य वक्ता के रूप में गढ़वा के एसडीएम संजय कुमार व विशिष्ट अतिथि माटी कला बोर्ड के सदस्य सह संत मरियम आवासीय विद्यालय के अविनाश देव की मौजूदगी रही. समारोह की अध्यक्षता प्रोफेसर कमलाकांत मिश्रा ने व संचालन पुस्तक के संपादक परशुराम तिवारी ने किया.मां सरस्वती के तस्वीर के समक्ष दीप प्रज्वलित करने के उपरांत अतिथियों के हाथों एक साथ सबकी आस सुभाष पुस्तक का लोकार्पण हुआ.इसमें 64 लेखकों की रचनाएं संग्रहित हैं. इसके पहले अंगवस्त्र व सबकी आस सुभाष पुस्तक देकर सभी अतिथियों का स्वागत किया गया. मौके पर मुख्य अतिथि श्री नामधारी ने कहा कि सबकी आस सुभाष पुस्तक में प्रोफेसर सुभाष चंद्र मिश्रा के चुंबकीय व प्रेरक व्यक्तित्व की स्पष्ट झलक है.उन्होंने प्रोफेसर मिश्रा से व्यक्तिगत निकटता,कर्मठता व शैक्षिक-सामाजिक योगदान की सराहना की,किन्तु उनकी अस्वस्थता की चर्चा करते हुए वे भावुक हो गये.वहीं मुख्य वक्ता गढ़वा एसडीएम संजय कुमार ने सबकी आस सुभाष के विभिन्न रचनाओं को उद्धृत करते हुए कहा कि प्रोफेसर मिश्रा सर के बारे में खूब लिखने के बाद भी कोई रचनाकार तृप्त नहीं हुआ,जिससे उनके बहुआयामी, बहुभाषी व वृहद व्यक्तित्व की छवि परिलक्षित होती है. एसडीएम ने कहा कि प्रोफेसर मिश्रा ने न सिर्फ शिक्षा,वरन अनेक विधाओं के माध्यम से समाज में रोशनी फैलायी है , सकारात्मक प्रभाव डाला है. एसडीएम श्री कुमार ने संपादकीय की एक पंक्ति- ””””बस मैंने सागर से निकले कुछ मोतियों का भिक्षाटन कर एक जगह इकट्ठा किया और उन्हें पुनः परोस दिया”””” की व्याख्या करते हुए कहा कि संपादक परशुराम तिवारी ने इसके माध्यम से पुस्तक के मूल भाव को सफलता पूर्वक उद्घाटित कर दिया है.माटी कला बोर्ड के सदस्य श्री देव ने कहा कि यह सिर्फ पुस्तक नहीं बल्कि एक मजबूत परंपरा की शुरुआत हैं.

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