पदमा राजा के महल की मिट्टी से 450 वर्षों पहले शुरू हुई चितरपुर की दुर्गा पूजा
पदमा राजा के महल की मिट्टी से 450 वर्षों पहले शुरू हुई चितरपुर की दुर्गा पूजा
सुरेंद्र कुमार/शंकर पोद्दार, चितरपुर आस्था और परंपरा की धरती चितरपुर में दुर्गा पूजा का इतिहास 450 वर्षों पुराना है. मायल बाजार स्थित प्राचीन दुर्गा मंदिर में आयोजित यह पूजा आज भी श्रद्धा और भक्ति का अनोखा उदाहरण है. यहां हर वर्ष नवरात्र में हजारों भक्त उमड़ते हैं और मां दुर्गा की आराधना में लीन हो जाते हैं. सार्वजनिक दुर्गा मंदिर के लाइसेंसधारी सह पूजा समिति के अध्यक्ष रवींद्र चौधरी ने बताया कि पुराने समय में साधु चौधरी और उनके साथी हजारीबाग के पदमा राजा के महल में दुर्गा पूजा देखने घोड़े से जाते थे. वे लोग अपने साथ रात में ठहरने की व्यवस्था लेकर जाते थे. वहां ठहर कर दुर्गोत्सव का आनंद लेते थे. करीब 450 वर्ष पूर्व साधु चौधरी व इनके साथ गये लोगों ने वहां के पुजारी से चितरपुर में भी दुर्गा पूजा कराने की इच्छा जतायी. पुजारी ने उनकी भावना का सम्मान करते हुए महल में स्थापित मां दुर्गा की प्रतिमा की मिट्टी उन्हें भेंट की. उसी पवित्र मिट्टी से चितरपुर में दुर्गा पूजा की शुरुआत हुई थी. तब से लेकर आज तक यह परंपरा लगातार जीवित है. खपरैल घर में शुरू हुई थी पूजा : शुरुआत में मिट्टी के खपरैल घर में प्रतिमा स्थापित कर पूजा की जाती थी. सीमित संसाधनों के बावजूद आस्था प्रबल थी. समय के साथ बदलाव हुआ. लगभग 40 वर्ष पूर्व यहां एक मंदिर का निर्माण किया गया. आज यह मंदिर न केवल पूजा का केंद्र है, बल्कि सामाजिक और सांस्कृतिक गतिविधियों का गढ़ भी बन गया है. सभी समाज की होती है सहभागिता : इस पूजा की सबसे बड़ी विशेषता यह है कि यह किसी एक वर्ग या जाति की पूजा नहीं है. हर समाज और वर्ग के लोग इसमें तन, मन और धन से सहयोग करते हैं. यही कारण है कि यह परंपरा चार सदियों से भी अधिक समय तक बिना रुके जीवित है. भक्ति और संस्कृति का संगम : नवरात्र के दौरान यहां केवल पूजा-अर्चना ही नहीं, बल्कि सांस्कृतिक कार्यक्रम का भी आयोजन किया जाता है. भजन-कीर्तन, रामलीला, नाट्य मंचन और संगीतमय प्रस्तुति पूरे वातावरण को भक्तिमय बना देती हैं. ढाक-नगाड़े की गूंज और भक्ति गीतों की स्वर लहरियां श्रद्धालुओं को मंत्रमुग्ध कर देती हैं. विजयादशमी के दिन प्रतिमा विसर्जन जुलूस यहां का सबसे आकर्षक आयोजन माना जाता है. इसमें हजारों लोग शामिल होते हैं. चितरपुर की पहचान बन गयी है पूजा : चार सदियों से अधिक समय से चली आ रही यह पूजा आज चितरपुर की पहचान बन चुकी है. पीढ़ी दर पीढ़ी लोग इससे जुड़े हैं. बच्चों से लेकर बुजुर्ग तक सभी उत्साहपूर्वक भाग लेते हैं. नवरात्र के दिन में चितरपुर का वातावरण पूरी तरह भक्तिमय हो उठता है और मंदिर परिसर आस्था का केंद्र बन जाता है. आने वाली पीढ़ियों के लिए बनेगी प्रेरणा : पदमा राजा के महल की मिट्टी से शुरू हुई यह पूजा आज पूरे क्षेत्र की शान है. यह केवल धार्मिक आस्था का केंद्र नहीं, बल्कि सामाजिक एकजुटता और संस्कृति का प्रतीक भी है. 450 वर्षों से लगातार हो रही यह परंपरा आने वाली पीढ़ियों के लिए प्रेरणा बनी रहेगी. चितरपुर की पहचान को और भी गौरवशाली बनायेगी. पश्चिम बंगाल के मूर्तिकार गढ़ते हैं प्रतिमा : चितरपुर मायल बाजार स्थित प्राचीन दुर्गा मंदिर में मां दुर्गा की प्रतिमा पिछले 43 वर्षों से पश्चिम बंगाल के पुरुलिया जिले के बाघमुंडी प्रखंड के चैड़दाग गांव के मूर्तिकार राधा गोविंद दत्ता बनाते आ रहे हैं. उनकी पारंपरिक कला से सजी प्रतिमा देखने योग्य होती है. हर साल आकर्षक पंडाल और पारंपरिक पूजा के साथ यह दुर्गोत्सव और भी भव्य व आनंदमय हो जाता है.
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