झारखंड पंचायत चुनाव: पहले के मुखिया थे ईमानदार, अब बिना पैसा काम नहीं, बोले पूर्व मुखिया रामेश्वर सिंह

Jharkhand Panchayat Chunav 2022: पूर्व मुखिया रामेश्वर सिंह कहते हैं कि चुनाव प्रचार में उस समय पैसा खर्च नहीं होता था. वोट देने के लिए वोटर पैसा नहीं लेते थे. काम करने वाले व्यक्ति को चुनते थे. साथ चलकर प्रचार करने वालों को सिर्फ खाना खिलाते थे. जिसमें 50 से 100 रुपये खर्च होता था.

By Prabhat Khabar Digital Desk | April 15, 2022 6:29 PM

Jharkhand Panchayat Chunav 2022: झारखंड पंचायत चुनाव को लेकर सरगर्मी तेज हो गयी है. हजारीबाग जिले के इचाक प्रखंड के सुदूर जंगल में बसी डाडीघाघर पंचायत के पूर्व मुखिया गरडीह गांव के रहने वाले रामेश्वर सिंह (83 वर्ष) कहते हैं कि वे 1978 में डाडीघाघर पंचायत के मुखिया निर्वाचित हुए थे. पुरानी यादों को ताजा करते हुए रामेश्वर सिंह ने कहा कि उस वक्त प्रचार-प्रसार का हाईटेक साधन नहीं था. गांव के लोग एक दूसरे को जानते थे. पहाड़ी क्षेत्र होने के कारण चुनाव का प्रचार प्रसार अपने समर्थकों के साथ पैदल घूम-घूमकर करते थे. मुखिया पंचायत के सर्वे-सर्वा होते थे.

मुखिया को काफी अधिकार थे

पूर्व मुखिया रामेश्वर सिंह कहते हैं कि चुनाव प्रचार में उस समय पैसा खर्च नहीं होता था. वोट देने के लिए वोटर पैसा नहीं लेते थे. काम करने वाले व्यक्ति को चुनते थे. साथ चलकर प्रचार करने वालों को सिर्फ खाना खिलाते थे. जिसमें 50 से 100 रुपये खर्च होता था. चौकीदारों की गांव में बहाली मुखिया की स्वीकृति से होती थी. गांव में पढ़े लिखे युवकों को दलपति बनाया जाता था और बाद में मुखिया की स्वीकृति से पंचायत सचिव पद पर बहाली होती थी. इसके अलावा वृद्ध व्यक्तियों की पेंशन मुखिया की स्वीकृति से होती थी और पंचायत के वृद्ध महिलाओं व पुरुषों को वृद्धा पेंशन शुरू हो जाती थी.

Also Read: झारखंड पंचायत चुनाव: कभी लोकप्रियता पर मिलते थे वोट, अब है पैसा हावी, बोले पूर्व मुखिया रामधन साव

पंचायत के सर्वे-सर्वा होते थे मुखिया

पूर्व मुखिया रामेश्वर सिंह कहते हैं कि अधिकारी मुखिया की सहमति से ही पंचायत में विकास के कार्य करते थे. पंचायत में कोई भी मामला होता था तो सरपंच उसे निबटाते थे. मुखिया से राय-सलाह ली जाती थी. पुलिस के अधिकारी भी पंचायत के मुखिया की इजाजत से ही गांव आते थे. मुखिया अपने पंचायत के सर्वे-सर्वा होते थे, लेकिन अब समय बदल गया है. मुखिया को भी कानून के दायरे में रहना पड़ता है. अब तो हर काम बिना पैसे के नहीं होता है. मुखिया भी घूस लेते हैं और अधिकारियों को घूस दिलवाते भी हैं. उस वक्त हर काम में ईमानदारी थी. अब हर काम में बईमानी आ गयी है. मुखिया भी कमाने में लग गए हैं, जिस कारण सरकार का लाभ गरीबों तक आज भी नहीं पहुंच पा रहा है. गांव में आज तक बिजली नहीं पहुंची है, जिसकी चिंता ना अधिकारी को है, ना ही जनप्रतिनिधियों को. गांव के लोग आज भी मूलभूत सुविधाओं से वंचित हैं.

Also Read: झारखंड के सारंडा जंगल में फिर गांव बसाने की तैयारी, काट डाले 10 हेक्टेयर जंगल, 55 घुसपैठियों को निकाला

रिपोर्ट: रामशरण शर्मा

Next Article

Exit mobile version