रमजान में इबादत के साथ कोविड-19 के खिलाफ जंग में भी निभा रहे हैं फर्ज

गर्मी के इन दिनों में लोगों को बार-बार प्यास लगती है. इसके चलते दिन में कई बार पानी पीने की जरूरत पड़ती है. ऐसे में जिला अस्पताल, पुलिस विभाग एवं अन्य चिकित्सा कार्य में लगे मुस्लिम समाज से जुड़े पुलिस पदाधिकारी, चिकित्सक, नर्स, रमजान के पवित्र माह में रोजा रखकर पूरी मुस्तैदी से अपना धर्म और फर्ज अदा कर रहे हैं. काम के प्रति इतना जुनून है कि रमजान के रोजे का दिन कब बीत रहा है पता भी नहीं चल पा रहा है. ये पदाधिकारी लगभग 15 घंटे बाद ही पानी पीते हैं.

By AmleshNandan Sinha | May 4, 2020 7:07 PM

हजारीबाग : गर्मी के इन दिनों में लोगों को बार-बार प्यास लगती है. इसके चलते दिन में कई बार पानी पीने की जरूरत पड़ती है. ऐसे में जिला अस्पताल, पुलिस विभाग एवं अन्य चिकित्सा कार्य में लगे मुस्लिम समाज से जुड़े पुलिस पदाधिकारी, चिकित्सक, नर्स, रमजान के पवित्र माह में रोजा रखकर पूरी मुस्तैदी से अपना धर्म और फर्ज अदा कर रहे हैं. काम के प्रति इतना जुनून है कि रमजान के रोजे का दिन कब बीत रहा है पता भी नहीं चल पा रहा है. ये पदाधिकारी लगभग 15 घंटे बाद ही पानी पीते हैं. ऐसे ही कुछ लोगों से प्रभात खबर के प्रतिनिधि जमालउद्दीन ने बात की. पेश है कुछ अंश…

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मरीजों की तिमारदारी में व्यस्त : डॉ एस परवीन बताती हैं कि परिवार के साथ ड्यूटी की जिम्मेवारी भी बराबर की होनी चाहिए. सुबह 3 बजे से उठकर परिवार के महत्वपूर्ण कामकाज को निपटाती हैं. उस समय ही ये पानी ग्रहण कर अपना रोजा शुरू करती हैं. सुबह 10 बजे से अपनी ड्यूटी पर पहुंच जाती हैं. जहां पूरा दिन बिना खाये पीये मरीजों की तिमारदारी में व्यस्त रहती हैं. फिर शाम को घर जाकर अपना रोजा खोलती हैं.

मरीज की सेवा में भूल जाते हैं भूख और प्यास : इसीजी टेक्नीशियन पाकिजा खातून का कहना है कि रोजा को कई सालों से रख रहे हैं. इस बार काम का बोझ कुछ ज्यादा ही है, लेकिन कोरोना को हम सबको मिलकर ही हराना है. इस उद्देश्य से हर दिन नयी ताजगी से काम करने की अंदर से ही ललक रहती है. परिवार में पति के साथ दो बच्चे हैं. परिवार की भी जिम्मेवारी निभाकर अपना फर्ज पूरा कर रही हूं.

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फर्ज ही मेरा धर्म : एएसआइ मो शहदुल हक ने कहा कि फर्ज ही मेरा धर्म है. अभी कोरोना काल में हर कोरोना योद्धा अपना काम कर रहा है. मेरी भी ड्यूटी लगी है. सुबह सेहरी के बाद ड्यूटी में आ जाता हूं. मेरा फर्ज ही मेरी इबादत है. मुझे लगता है कि मैं ईमानदारी से अपना फर्ज निभाता रहूं, यही मेरी इबाबत भी है. रोजा इफ्तार का जो समय होता है. उस वक्त जहां भी होता हूं, वहीं रोजा खोल लेता हूं.

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